कोयला उत्पादक राज्य बनने का बिहार का सपना टूट गया है। बिहार में आबंटित दो कोल ब्लॉक को घाटे का सौदा बताकर बीसीसीएल ने कोयला उत्पादन नहीं करने का निर्णय लिया है। उक्त कोल ब्लॉक को सरेंडर करने पर बीसीसीएल बोर्ड में स्वीकृति दी गई है। बताया गया है कि यहां कोयले का ग्रेड बढ़िया नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार जी-12 ग्रेड का कोयला भंडरित है, जिसकी मांग ज्यादा नहीं है। इसी तरह कोयले के सीम काफी नीचे हैं। इस कारण अधिक ओबी हटाने की जरूरत होती और मिट्टी को रखने के लिए कहीं अधिक मात्रा में जमीन की जरूरत पड़ती। खनन शुरू करने के पहले 20 हजार से अधिक लोगों का पुनर्वास भी करना होता। बरसात में इन क्षेत्र में जलजमाव होने का खतरा भी बताया गया।

सीएमपीडीआईएल की स्टडी रिपोर्ट के आधार पर कोल ब्लॉक को सरेंडर करने का निर्णय लिया गया है। सीएमपीडीआईएल ने बिहार के मंदार व पीरपैंती कोल ब्लॉक को घाटे का सौदा बताया है, इसलिए भविष्य में कोई और कंपनी शायद ही इन कोल ब्लॉक में खनन के लिए राजी हो।

हाल ही में बिहार और उससे सटे झारखंड के क्षेत्र में आबंटित चार नए कोयला ब्लॉकों से खनन शुरू करने के लिए बीसीसीएल उस इलाके में अपना क्षेत्रीय कार्यालय शुरू करने वाला था। नए एरिया का नाम विक्रमशिला दिया गया था। आबंटित चार-चार कोल ब्लॉक में तीन बिलियन टन कोयले का भंडार होने की बात कही गई थी। करीब 85 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस क्षेत्र में छोटे-बड़े 86 गांव हैं। खनन शुरू करने के पूर्व उक्त गांवों का सर्वे किया गया था। सबसे पहले पीरपैंती-बाराहाट स्थित कोल ब्लॉक से कोयला का उत्पादन शुरू करने की योजना थी। 22 स्क्वॉयर किलोमीटर में फैले ब्लॉक में जियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 850 मिलियन टन कोयले का भंडार है। मालूम हो कि 2018 में बीसीसीएल को बिहार व संताल परगना के राजमहल कोयला क्षेत्र में चार कोल ब्लॉक आबंटित किए गए थे। इन कोल ब्लॉकों के अलावा बोकारो के चंदनकियारी स्थित पर्वतपुर कोयला खदान शुरू करने के पक्ष में भी बीसीसीएल नहीं है। फिलहाल इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।

बता दें कि कंपनी इसी इलाके में दो ब्लॉक पहले भी लौटा चुकी है। इनमें भागलपुर जिले के मिर्जागांव और गोड्डा जिले का धुलियानार्थ ब्लॉक शामिल है। तब बताया गया था कि वहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी नहीं कि खनन किया जा सके। दरअसल इलाका बलूई मिट्टी वाला है। ओबी का ढेर वहां नहीं बनाया जा सकता। बनाया गया तो बारिश में वह ढह कर खदान में चला जाएगा और फिर भयानक खदान हादसा की आशंका हमेशा रहेगी। यदि मिट्टी दूरस्थ इलाकों में डंप किया गया तो लागत काफी अधिक हो जाएगी। बारिश के दिनों में भी खदान में हमेशा जल भराव और मिट्टी धंसने का खतरा बने रहने से भी खनन में परेशानियां बताई गई थी।

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Source : Hindustan, Jagran

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