नई दिल्ली, 09 अक्टूबर। डीपीई (Department of Public Enterprises) की गाइडलाइन कोयला कामगारों के 11वें वेतन समझौते को लेकर चल रही वार्ता में एक बड़ी बाधा है। नियमों को शिथिल करने यानी छूट देने को लेकर कोल इंडिया (CIL) ने कोयला मंत्रालय ये गुहार लगाई है, लेकिन जवाब अब तक नहीं मिला है।
इधर, भारतीय मजदूर संघ (BMS) के कोल प्रभारी एवं जेबीसीसीआई सदस्य के. लक्ष्मा रेड्डी इससे सहमत नहीं है। श्री रेड्डी ने एसईसीएल क्षेत्र में आगमन के दौरान कोरबा में मीडिया से चर्चा करते हुए कहा था कि 11वें वेतन समझौते में डीपीई कोई बाधा नहीं है। उनके अनुसार अन्य श्रमिक संगठनों द्वारा इसको लेकर अनावश्यक मुद्दा बनाया जा रहा है।
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2 अगस्त को नई दिल्ली में चारों यूनियन नेताओं की कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी के साथ बैठक हुई थी। इसमें सीटू नेता रामनंदन ने डीपीई गाइडलाइन का मुद्दा उठाया था और नियमों में छूट को लेकर अपनी बात रखी थी। इस मुद्दे पर एचएमएस, एटक नेताओं ने रामनंदन का साथ दिया था, लेकिन बैठक में मौजूद बीएमएस के कोल प्रभारी के. लक्ष्मा रेड्डी वेतन समझौते में देरी को लेकर बार- बार सीआईएल प्रबंधन को कोसने में लगे थे। कोयला मंत्री ने डीपीई सहित अन्य मुद्दों को लिखित में कोल सचिव को देने कहा था। मंत्री के निर्देशानुसार 8 अगस्त को कोल सचिव के नाम एक पत्र तैयार किया गया। इसमें डीपीई की गाइडलाइन और अन्य बिन्दुओं को उल्लेखित किया गया था। पत्र में एचएमएस, सीटू, एटक नेता क्रमशः नाथूलाल पांडे, डीडी रामनंदन, रमेन्द्र कुमार ने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन श्री रेड्डी ने हस्ताक्षर नहीं किए। इसके लिए दूसरे यूनियन के नेताओं ने रेड्डी से संकर्प भी किया था।
बताया गया है कि बीएमएस के कोल प्रभारी श्री रेड्डी कोयला मंत्री की नजर में अच्छा बनने के लिए डीपीई के मुद्दे से दूरी बना कर रखी है। रेड्डी को लगता है इस मुद्दे पर वे बोलेंगे तो मंत्रीजी नाराज हो जाएंगे। यहां बताना होगा कि कई मौकों पर लक्ष्मा रेड्डी का व्यक्तिगत स्वार्थ सामने आ चुका है। बीएमएस के राष्ट्रीय महामंत्री रहे बिनय कुमार सिन्हा भी कोल प्रभारी के व्यक्तिगत स्वार्थ को भांप चुके थे और उन्होंने सीआईएल प्रबंधन को पत्र लिखा था। इसके बाद श्री सिन्हा को पद से इस्तीफा देना पड़ गया था। हालांकि पद से त्यागपत्र देने का कारण स्वास्थ्यगत बताया गया था।
डीपीई की गाइडलाइन वेतन समझौते में बाधा बन रही है, जेबीसीसीआई की तीसरी बैठक में यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका था। इस बाधा के कारण ही मिनिमम गारंटी बेनिफिट पर सहमति नहीं बन पा रही है। डीपीई की गाइडलाइन के अनुसार कामगारों का वेतन अधिकारियों से अधिक नहीं हो सकता।
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कोल इंडिया के निदेशक (कार्मिक एवं औद्योगिक संबंध) विनय रंजन ने 7 सितम्बर को कोयला मंत्रालय को लिखे पत्र में डीपीई की गाइडलाइन में छूट मिलने के बाद ही 11वां वेतन समझौता संभव हो पाने की बात कही है।
बावजूद इसके बीएमएस के कोल प्रभारी डीपीई को कोई मुद्दा नहीं मानते हैं। रेड्डी ने कोयला मंत्रालय को लेकर विरोधाभाषी वाले विषयों से अपने आप को दूर बना कर रखा हुआ है। जबकि बीएमएस के अन्य नेता भी समझ रहे हैं कि डीपीई की गाइडलाइन वेतन समझौते में कितनी बड़ी फांस है।
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