इस साल बजट में आम लोगों के साथ उद्योग जगत को जीवन बीमा और पेंशन उत्पादों पर कर छूट का दायरा बढ़ने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का कहना है कि आयकर की धारा 80सी के तहत मिलने वाली मौजूदा टैक्स छूट पर्याप्त नहीं है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अपना चौथा बजट एक फरवरी को पेश करेंगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना संकट में बढ़ते खर्च को देखते हुए यदि करदाताओं को टैक्स में अधिक छूट मिलेगी तभी वह जीवन बीमा समेत अन्य विकल्पों में निवेश कर पाएंगे। साथ ही उनके पास खर्च के लिए जो राशि बचेगी वह अंतत: बाजार में आएगी जिससे अर्थव्यवस्था को भी गति मिलेगी। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि मौजूदा स्थिति में कर ढांचा जटिल है।
कई सारे उपकर, अधिभार, कर की दरें और स्लैब हैं। इसके अलावा छूट के बिना कम दर पर कर देने की सुविधा या छूट के साथ सामान्य दर पर कर के भुगतान की व्यवस्था ने करदाताओं के लिये कर संरचना को जटिल बना दिया है। उन्होंने कहा, ऐसे में यह बेहतर होगा कि सरकार चार दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू करे और उपकरों तथा अधिभारों को समाप्त करे। यह राज्यों के लिये भी न्यायसंगत होगा। बजट में सरकार के लिये प्राथमिकता के बारे में पूछे जाने पर पूर्व वित्त सचिव ने कहा कि वित्त मंत्री के लिये मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में बढ़ती खाद्य, उर्वरक सब्सिडी के साथ मनरेगा पर बढ़े हुए खर्च को काबू में लाने की होगी।
धारा 80सी में छूट पर्याप्त नहीं
आयकर की इस धारा के तहत ईपीएफ, पीएफ, आवास ऋण के मूलधन का भुगतान, जीवन बीमा प्रीमियम का भुगतान, सुकन्या समृद्धि खाता समेत अन्य बचत पर टैक्स छूट मिलती है जिसकी मौजूदा सीमा 1.50 लाख रुपये है। टैक्स सलाहकार के.सी.गोदुका का कहना है कोई व्यक्ति होम लोन का भुगतान कर रहा है और उसने 1.50 लाख रुपये की छूट उसपर ले लेता है तो वह 80सी के तहत अन्य बचत उत्पादों में छूट का हकदार नहीं होगा। इसी तरह कोई व्यक्ति जीवन बीमा प्रीमियम, ईपीएफ, पीएफ पर कुल 1.50 लाख रुपये की छूट ले लेता है तो वह होम लोन के मूलधन पर टैक्स छूट का दावा नहीं कर सकता है। उनका कहना है कि मौजूदा समय में महंगाई, कोरोना संकट में बढ़ते खर्च को देखते हुए धारा 80सी के तहत वर्तमान छूट पर्याप्त नहीं है और इसे बढ़ाने की जरूरत है।
जीवन बीमा के लिए अलग श्रेणी बनाने का सुझाव
जीवन बीमा उद्योग ने आगामी आम बजट में धारा 80सी के तहत दी जाने वाली छूट में जीवन बीमा प्रीमियम के लिए अलग श्रेणी बनाने का सुझाव दिया है। एजिस फेडरल लाइफ इंश्योरेंस के सीएमओ और उत्पाद प्रमुख कार्तिक रमन ने बताया कि इस समय कर छूट के लिए 1.5 लाख रुपये श्रेणी काफी अव्यवस्थित है और इसमें जीवन बीमा प्रीमियम के जरिये कर छूट का पूरा लाभ पाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। उद्योग ने अपनी बजट सिफारिशों में ‘एन्यूइटी’ या पेंशन उत्पादों को कर छूट के दायरे में लाने का अनुरोध किया है। इस समय पेंशन उत्पादों को वेतन के रूप में देखा जाता है, और इसलिए यह कर योग्य है। हालांकि, आमतौर पर यह उन लोगों को मिलती है, जो आय के नियमित स्रोत से बाहर चले गए हैं और वे ‘एन्यूइटी’ को आय के वैकल्पिक स्रोत के रूप में देखते हैं।
क्रिप्टो कारोबार पर कर लगाने विचार
सरकार आगामी आम बजट में क्रिप्टोकरंसी की खरीद-बिक्री को कर के दायरे में लाने पर विचार कर सकती है। कर क्षेत्र के एक विश्लेषक ने यह राय जताई है। नांगिया एंडरसन एलएलपी के कर प्रमुख अरविंद श्रीवत्सन ने कहा कि सरकार आगामी बजट में एक निश्चित सीमा से ऊपर क्रिप्टोकरंसी की बिक्री और खरीद पर टीडीएस / टीसीएस लगाने पर विचार कर सकती है और इस तरह के लेनदेन को विशेष लेनदेन के दायरे में लाया जाना चाहिए, ताकि आयकर अधिकारियों को इनकी जानकारी मिल सके। साथ ही उन्होंने कहा कि क्रिप्टोकरंसी की बिक्री से होने वाली आय पर लॉटरी, गेम शो, पहेली की तरह 30 प्रतिशत की उच्च कर दर से कर लिया जाना चाहिए। श्रीवत्सन ने कहा कि इस समय भारत में विश्व स्तर पर क्रिप्टो मालिकों की संख्या सबसे अधिक लगभग 10.07 करोड़ है, और एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक भारतीयों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी में निवेश बढ़कर 24.1 करोड़ डॉलर तक हो सकता है।
उपकर-अधिभार हटाने की जरूरत : गर्ग
पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने सरकार को सुझाव दिया है कि आगामी बजट में नौकरीपेशा और आम लोगों को राहत देने के लिए चार कर दरों का एक सरल आयकर ढांचा लागू किया जाए और विभिन्न उपकरों तथा अधिभार को समाप्त कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि यह राज्यों के लिए भी न्यायसंगत होगा। गर्ग ने यह भी कहा कि वित्त मंत्री के लिए मुख्य चिंता 2022-23 के बजट में राजकोषीय घाटे को सामान्य स्तर पर लाने के साथ-साथ बढ़ती खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को काबू में लाने की होगी। अभी आयकरदाताओं को स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपकर के अलावा सालाना 50 लाख रुपये से अधिक आय पर अधिभार भी देना होता है। साथ ही उपकर और अधिभार से प्राप्त राजस्व राज्यों के बीच विभाजित नहीं होता, जिसको लेकर वे समय-समय पर सवाल उठाते रहे हैं।
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