नई दिल्ली (IP News). भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद, सिद्ध, सोवा रिग्पा और यूनानी की वैधानिक नियामक संस्था केंद्रीय भारतीय औषधि परिषद ने आयुर्वेद शिक्षा में स्नातकोत्तर से संबंधित नियमों के संबंध में एक अधिसूचना जारी की है। इस अधिसूचना में स्पष्टीकरण और परिभाषा जोडे गए हैं।
आयुर्वेद में शल्य और शालाक्य की स्नातकोत्तर शिक्षा पर अधिसूचना में 58 चिकित्सा सर्जरी प्रक्रियाओं के बारे में बताया गया है। स्नातकोत्तर छात्रों को इनमें प्रशिक्षण लेने की जरूरत होगी जिससे वह उपाधि लेने के बाद स्वतंत्र रूप से इन गतिविधियों का संचालन कर सकें। आयुर्वेद महाविद्यालयों में शल्य और शालाक्य स्वतंत्र विभाग हैं और सर्जरी जैसी प्रक्रियाएं करते हैं।
आयुष मंत्रालय ने साफ कहा है कि इस अधिसूचना में आधुनिक शब्दावलि का इस्तेमाल करने पर कोई टिप्पणी या आपत्ति नहीं मिली है और उसे इस बारे में किसी विवाद की जानकारी नहीं है।
मंत्रालय ने कहा है कि मानक शब्दावली सहित सभी आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति पूरी मानवता के कल्याण के लिए है। इस शब्दावलि पर किसी व्यक्ति या समूह का एकाधिकार नहीं है। चिकित्सा के क्षेत्र में आधुनिक शब्दावलि आधुनिकता के संदर्भ में नहीं है। यह, प्राचीन भाषाओं- ग्रीक, लैटिन, संस्कृत और अरबी से ली गई है।
आधुनिक वैज्ञानिक शब्दावलि इस्तेमाल करने का मकसद विभिन्न पक्षों के बीच प्रभावी संवाद करना है। अधिसूचना में न केवल आयुर्वेद डाक्टर शामिल हैं बल्कि चिकित्सा- कानूनविद्, स्वास्थ्य सूचना प्रौद्योगिकी, बीमा और जन समुदाय भी शामिल हैं। आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धति के मिश्रण का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि केंद्रीय भारतीय औषधि परिषद, भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की प्रमाणिकता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।