केन्द्र सरकार ने कोयला क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की आलोचना की है। राष्ट्रीयकरण के कारण कोल सेक्टर का दायरा सिमट गया और कोयले की बढ़ती हुई मांग को सीआईएल द्वारा पूरा नहीं किया जा सका, जिससे मांग-आपूर्ति में बहुत अधिक अंतर हो गया।
सरकार ने यह भी कहा कि दशकों तक सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभुत्व और नियंत्रण के कारण कोयला खनन में निजी क्षेत्र सिकुड़ा रहा।
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कोयला मंत्रालय ने “कोयले का वाणिज्यिक खनन – आत्मनिर्भर भारत को बड़ा प्रोत्साहन” शीषर्क से एक फोल्डर जारी किया है। इसमें वाणिज्यिक खनन के निर्णरू के पूर्व एवं बाद की स्थित की तुलना की गई है। इसमें कहा गया है कि कोयला उद्योग केवल विद्युत एवं सीमेंट क्षेत्र तक सिमट कर रह गया था।
जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में कार्यभार संभाला तो कोयला क्षेत्र के सामने चुनौती थी। पहले के शासन द्वारा केप्टिव उपयोग हेतु आवंटित कोयला ब्लॉकों को उच्चतम न्यायालय (2014) द्वारा अवैध ठहराया गया था।
दशकों तक सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभुत्व और नियंत्रण जिसके कारण कोयला खनन में निजी क्षेत्र सिकुड़ा रहा। भारत ने वर्ष 2020 में कोयला खनन नीलामियों के माध्यम से वाणिज्यिक कोयला खनन आरंभ किया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 जून, 2020 को वाणिज्यिक खनन हेतु 41 कोयला खानों की नीलामी प्रक्रिया शुरू की
जिसका उद्देश्य ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में आत्मनिर्भरता हासिल करना तथा औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना था। भारत ने 2020 में अपनी पहली वाणिज्यिक कोयला खान नीलामी संपन्न की।
कोयला मंत्रालय ने हा कि पहले दौर में कुल 19 कोयला खानों की नीलामी की गई है जो कि कोयला नीलामी के किसी भी दौर में सफलतापूर्वक नीलामी की गई खानों की संख्या से अधिक है।
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देश के पहले वाणिज्यिक खनन नीलामी की सफलता के बाद राज्यों का लक्ष्य कुल 6656 करोड़ रुपये वार्षिक का राजस्व प्राप्त करना है।
मोदी सरकार का यह कार्य कई सोचे-समझे कदमों का परिणाम है। प्रारंभ में ब्लॉकों को नीलामी के माध्यम से उद्योग को लौटाने हेतु एक विधान, कोयला खान (विशेष उपबंध) अधिनियम, 2015 के माध्यम से एक पारदर्शी तंत्र स्थापित किया गया था।
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