नई दिल्ली, 29 जून (एमएस शेख)। विधानसभा चुनाव के पांच माह पहले छत्तीसगढ़ में उपमुख्यमंत्री के तौर पर टीएस सिंहदेव की नियुक्ति को कांग्रेस में संतुलन साधने के तौर पर देखा जा रहा है। वहीं कांग्रेस पार्टी साहसिक फैसले लेने से गुरेज नहीं कर रही है, इस नियुक्ति से यह भी संदेश देने का प्रयास किया गया है।
नई दिल्ली में बुधवार को दिनभर चली बैठक के बाद इस आशय का निर्णय लिया गया और देर रात उपमुख्यमंत्री के पद पर टीएस सिंहदेव की नियुक्ति का आदेश निकाला गया।
यहां बताना होगा कि टीएस सिंहदेव यानी टीएस बाबा छत्तीसगढ़ कांग्रेस के आधार स्तंभों में से एक हैं। भाजपा के 15 साल के राज को उखाड़ फेंकने में भूपेश बघेल के साथ टीएस बाबा, डा. चरणदास महंत जैसे नेताओं की महती भूमिका रही थी। 2018 में जब कांग्रेस को भारी बहुमत मिला तब भूपेश बघेल, टीएस, डा. महंत और ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर उभरे। कांग्रेस हाईकमान ने राज्य की कमान भूपेष बघेल को सौंपी। डा. महंत विधानसभा अध्यक्ष बनाए गए। श्री साहू को गृह मंत्रालय मिला तो टीएस को स्वास्थ्य एवं पंचायती राज।
16 अगस्त, 2022 को टीएस बाबा ने पंचायत एवं ग्रामीण मंत्रालय छोड़ दिया। मंत्रालय छोड़ने का कारण जनघोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा नहीं करना और आवासविहीन लोगों को आवास नहीं मिलना बताया। मुख्यमंत्री को चार पन्नों का एक पत्र भी लिखा था। इस दौरान ढाई- ढाई साल के सीएम पद का मुद्दा जमकर उछला और शक्ति प्रदर्शन जैसी स्थिति भी बनी।
इधर, इस नियुक्ति से कांग्रेस ने भाजपा को भी चौंका दिया है। भाजपा टीएस की नाराजगी का फायदा उठाने की आस में थी। खासकर सरगुजा क्षेत्र में टीएस बाबा का खासा प्रभाव है। 2018 के चुनाव में इस इलाके से कांग्रेस को खासी बढ़त मिल थी। टीएस बाबा की छवि एक मृदुभाषी और सौम्य राजनीतिक नेता की है। नाराजगी के बावजूद उन्होंने सचिन पायलट की तरह न ही अपनी सरकार और न ही पार्टी से टकराने की कभी कोषिष की। अपनी बात भी रखी तो बेहद सहज तरीके से।
कनार्टक चुनाव में जीत हासिल करने के बाद मुख्यमंत्री को लेकर पेंच फंस गया था और आपसी टकराव की स्थिति निर्मित हो गई थी। पार्टी ने सिद्धरमैया को सीएम बनाते हुए डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी।
पूरे देश पर नजर दौड़ाई जाए तो इस वक्त 10 राज्यों में उपमुख्यमंत्री की तैनाती है। छत्तीसगढ़ 11वां राज्य बन जाएगा। कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही दल उपमुख्यमंत्री के फार्मुले को अपनाते हैं। आंध्र प्रदेश में तो मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने क्षेत्रवार पांच- पांच उपमुख्यमंत्री बना रखे हैं। वैसे देखा जाए तो उपमुख्यमंत्री की नियुक्ति के पीछे की वजह राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश कहीं अधिक होती है।
राजनीतिक दल चाहे पूर्ण बहुमत से सत्ता में हों या गठबंधन सरकार चला रहे हों, दोनों स्थितियों में उपमुख्यमंत्री बनाए जाते हैं। इस समय आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मेघालय, नागालैंड में डिप्टी सीएम काम कर रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ में भी उपमुख्यमंत्री बना दिया गया है। यदि संविधान की बात की जाए तो इसमें उपमुख्यमंत्री और उपप्रधानमंत्री के पद का कोई उल्लेख नहीं है।
राज्यों में उपमुख्यमंत्री के अलावा देश में उपप्रधानमंत्री भी बन चुके हैं। 15 अगस्त, 1947 को जब पं. जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में आजाद भारत की पहली सरकार बनी तो सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री बनाए गए थे। इसे बाद 1967 में इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को उपप्रधानमंत्री बनाया था। 1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली केन्द्र की सरकार में दो उपप्रधानमंत्री चरण सिंह और जगजीवन राम बनाए गए। इसके बाद की केन्द्र सरकारों में यषवंत राव चाव्हाण, देवीलाल, लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री के पद पर रह चुके हैं।