रायपुर, 22 अप्रेल। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में अपना निर्धारित उत्पादन लक्ष्य पाने की दिशा में जोर-शोर से कार्य प्रारंभ कर दिया है।
नए वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही से ही अनेक योजनाओं पर अमल किया जा रहा है। एसईसीएल की खदानों का अवलोकन कोयल मंत्रालय के आला अफसर तक कर चुके हैं। उन्होंने उत्पादन बढ़ाने के स्पष्ट निर्देश एसईसीएल को दे दिए हैं परंतु इसके साथ ही आ रही खबरें कुछ और ही इशारा कर रही हैं।
14 अप्रैल, 2022 को एसईसीएल ने साउथ ईस्टर्न सेंट्रल रेलवे, बिलासपुर को एक पत्र लिखा है जिसमें यह कहा गया है कि रेल मोड से नॉन पावर सेक्टर को पूरी तरह से कोयला ठप्प कर दिया जाए ताकि पावर सेक्टर को मानसून के मौसम में भी कोयले की निरंतर आपूर्ति जारी रह सके। यानी केंद्रीय शासन के स्तर पर सारा ध्यान इंडीपेंडेंट पावर प्लांट (आईपीपी) पर दिया जा रहा है। देश मंे पिछले साल कोयले की बड़ी किल्लत हुई थी।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में एसईसीएल अपने उत्पादन लक्ष्य से ही लगभग 30 फीसदी पीछे रह गई थी। इसकी वजह से कोल इंडिया ने अपनी नाकामियों पर परदा डालने के लिए नॉन पावर सेक्टर के हिस्से के कोयले में धीरे-धीरे कटौती की और अब तो पूरी तरह से रेल मोड का कोयला बंद ही कर दिया है।
आंकड़ों की जबानी देखें तो पूरे देश में सितंबर, 2021 में आईपीपी का औसत कोयला भंडारण चार दिनों का था। तब एसईसीएल का औसत कोयला उत्पादन 2.22 लाख टन प्रतिदिन था। ऐसे में औसतन 27.6 रैक प्रतिदिन लोड किए जाते थे।
अक्टूबर, 2021 से आईपीपी के कोयला भंडारण में सुधार आना शुरू हुआ और मार्च, 2022 तक यह 9 दिनों के औसत पर पहुंच गया। मार्च, 2022 तक उत्पादन भी लगभग ढाई गुना बढ़कर औसतन 6.09 लाख टन प्रति दिन के स्तर पर पहुंच गया। प्रदर्शन में सुधार के साथ ही औसत रैक लोडिंग मार्च, 2022 तक बढ़कर 36.2 प्रतिदिन के स्तर पर पहुंच गई।
सितंबर, 2021 के मुकाबले अब उत्पादन में बढ़ोत्तरी होने तथा देशभर के आईपीपी में पर्याप्त कोयला भंडारण के बावजूद एक सोची समझी रणनीति के तहत छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों को कोयला नहीं दिया जा रहा है।
राज्य के बाहर हजारों किलोमीटर दूर दूसरे विद्युत संयंत्रों को रेल के जरिए कोयल की लगातार आपूर्ति की जा रही है जिससे छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लग गया है। अधिक दूरी तक सारा कोयला भेजने की वजह से भारतीय रेल तथा छत्तीसगढ़ सरकार को बहुमूल्य राजस्व की हानि हो रही है।
छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादन और रैक लोडिंग में बढ़ोत्तरी के बावजूद अगर कुछ नहीं सुधरा तो वह है सीपीपी आधारित संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति। पहले तो समय पर ई-ऑक्शन और स्पॉट ऑक्शन नहीं हुए। ऑक्शन की तारीखों को एसईसीएल ने मनमाने तरीके से या तो बढ़ा दिया या फिर रद्द ही कर दिया।
फ्यूल सेल एग्रीमेंट के तहत उपभोक्ताओं को मिलने वाले कोयले की मंथली शेड्यूल्ड क्वांटिटी (एमएसक्यू) को 100 फीसदी से कम करके 75 फीसदी कर दिया गया। और अब तो रेल मोड का कोयला पूरी तरह से बंद हो जाने के बाद छत्तीसगढ़ में स्थिति यह है कि सीपीपी आधारित संयंत्र एक-एक कर बंद हो जाने की स्थिति में पहुंच गए हैं।
छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि उन्हें कोल इंडिया और उसकी अनुषंगी कंपनियों के सामने क्यों गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। जबकि तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है।
देश के कोयला उत्पादन में एसईसीएल की भागीदारी 25 फीसदी है लेकिन एसईसीएल और कोल इंडिया लिमिटेड छत्तीसगढ़ का संसाधन राज्य के ही उद्योगों के साथ साझा करने को तैयार नहीं है बल्कि कोयले की आपूर्ति लगातार बाहरी राज्यों को हो रही है। छत्तीसगढ़ के जो सीपीपी फिलहाल उत्पादन में हैं उनके पास दो-तीन दिन का कोयला बचा रह गया है।
प्रदेश के नॉन पावर सेक्टर को बचाने की दिशा में आज प्रदेश सरकार के स्तर पर ठोस पहल करने की जरूरत है। यदि तत्काल इस मुद्दे को नहीं सुलझाया गया तो राज्य में औद्योगिक अशांति की स्थितियां निर्मित होने की आशंका है। उद्योगों में कोयले के अभाव में तालाबंदी से हजारों नागरिकों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। देश में बेरोजगारी के आंकड़े में इससे वृद्धि ही होगी।
प्रदेश के नागरिक और औद्योगिक संगठन एसईसीएल की नीतियों के खिलाफ लगातार अभियान चला रहे हैं। सीपीपी आधारित उद्योगों को कोयले की कम आपूर्ति के मुद्दे को छत्तीसगढ़ विधानसभा में उठाया जा चुका है। बिलासपुर में एसईसीएल मुख्यालय के समक्ष विशाल धरना प्रदर्शन आयोजित किए जा चुके हैं।
बावजूद इसके एसईसीएल और कोल इंडिया ने छत्तीसगढ़़ के सीपीपी आधारित उद्योगों की रेलवे मोड से कोयला आपूर्ति को ठप्प कर दिया। अब देखना यह है कि अस्तित्व की लड़ाई में छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों की सुनवाई कब और कैसे होगी।
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