नई दिल्ली, 23 जनवरी। नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट- 11 के तहत गठित ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज (जेबीसीसीआई) की तृतीय बैठक पर कोरोना का साया पड़ चुका है। सीआईएल प्रबंधन साफ कर चुका है कि हालात सुधरने पर ही बैठक संभव हो सकेगी। प्रबंधन के इस जवाब से निश्चित तौर पर कोयला कामगारों में निराशा के भाव जागृत हुए हैं।
इधर, देखने में यह आ रहा है कि महामारी के थर्ड वेव के बीच कोल इंडिया प्रबंधन के आला अधिकारियों का मूवमेंट जारी है। अधिकारी बकायदा विभिन्न परियोजनाओं का दौरा कर रहे हैं और तमाम तरह के कार्यक्रमों में जाने से कोई परहेज नहीं कर रहे हैं।
दो दिनों पहले ही सीआईएल चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने बीसीसीएल, धनबाद में दस्तक दी। उन्होंने खदानों का दौरा किया और अधिकारियों के साथ बैठक की। रांची में सीसीएल और सीएमपीडीआई के अफसरों के साथ मीटिंग की। बैठकों और खदानों की तस्वीरें अच्छी खासी उपस्थिति भी बताती हैं।
साथ ही यह भी देखने को मिला कि बैठकों में सीआईएल चेयरमैन मास्क से परहेज करते नजर आए। अब सवाल यह उठता है कि जेबीबीसीसीआई की बैठक से परहेज क्यों किया जा रहा है। सीआईएल प्रबंधन ने जेबीसीसीआई की तृतीय बैठक को लेकर श्रमिक नेता नाथूलाल पांडेय को जो पत्र भेजा है उसमें उल्लेख किया गया है कि सदस्यों के स्वास्थ्यहित को ध्यान में रखते हुए बैठक बुलाया जाना संभव नहीं है।
सीआईएल चेयरमैन व अन्य आला अधिकारियों का दौरा और फिजिकली मीटिंग्स के दौरान स्वास्थ्यहित जैसा विषय शायद लागू नहीं होता है। यह केवल कोयला कामगारों के वेतन समझौते पर चर्चा करने वाली बैठक पर ही प्रभावशील है।
इन दो नेताओं ने लिखी थी चिठ्ठी
जेबीसीसीआई की तृतीय बैठक को लेकर एचएमएस के नेता शिवकुमार यादव ने पहले चिठ्ठी लिखी, इसके बाद नाथूलाल पांडेय ने सीआईएल चेयरमैन को पत्र भेजा। एचएमएएस के इन दो नेताओं के अलावा दूसरी यूनियन के नेताओं द्वारा तृतीय बैठक को लेकर किसी प्रकार का कोई पत्र व्यवहार नहीं किया गया है।
नाथूलाल पांडेय ने अपने पत्र में एक अच्छी बात लिखी थी कि कोरोना के कारण बैठक आयोजित किया जाना जोखिम भरा जरूर है, लेकिन हमें महामारी के बीच अपना सामान्य जीवन आगे बढ़ाना होगा। कोयला श्रमिक महामारी के बीच जोखिम उठाकर उत्पादन कर रहे हैं। उद्योग हित में तथा कामगारों का मनोबल ऊंचा बनाए रखने के लिए वेतन समझौता हेतु सौंपे गए चार्टर ऑफ डिमांड पर चर्चा करने जेबीसीसीआई की तृतीय बैठक बुलाया जाना आवश्यक है।
पहली व दूसरी बैठक में सार्थक चर्चा नहीं
यहां बताना होगा कि कोयला कामगारों का वेतन समझौता के लिए गठित ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज – 11 (जेबीसीसीआई) की पहली बैठक 17 जुलाई को हुई थी, लेकिन इस बैठक में वेतन समझौते को लेकर किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं हो सकी थी। 15 नवम्बर हो आयोजित हुई द्वितीय बैठक में भी वेतन समझौते को लेकर सार्थक चर्चा की शुरुआत नहीं हो सकी थी। इसी बैठक में जनवरी में तृतीय मीटिंग प्रस्तावित की गई थी।
इसलिए तो बैठक नहीं टाल रहे
द्वितीय बैठक में सीआईएल प्रबंधन ने मंशा जाहिर की थी, कि वो 50 प्रतिशत मिनिमम गारंटी बेनिफिट (एमजीबी) पर चर्चा नहीं करना चाहता है। चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने यूनियन के समक्ष वित्तीय संकट का रोना रोया था और कहा था कि 50 फीसदी एमजीबी से 18 हजार करोड़ रुपए का वित्तीय भार आएगा।
सीआईएल चेयरमैन ने इस बैठक के जरिए यूनियन और कोयला कामगारों के भीतर भय उत्पन्न करने का भी काम किया था। श्री अग्रवाल ने कहा था बीसीसीएल, सीसीएल, ईसीएल जैसी कंपनियों की स्थिति ठीक नहीं है। 50 प्रतिशत वेतन वृद्धि कर दी तो इन कंपनियों में तालाबंदी की नौबत आ जाएगी।
प्रबंधन ने जेबीसीसीआई के समक्ष 10 वर्षों के लिए वेतन समझौते का प्रस्ताव रखा था। साथ ही एमजीबी, सामाजिक सुरक्षा, सीपीआरएस, भत्ते आदि के लिए पृथक- पृथक सब कमेटियां गठित करने की बात कही गई थी। हालांकि यूनियन ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और कहा था कि उनके द्वारा सौंपे गए कॉमन चार्टर ऑफ डिमांड पर ही चर्चा होगी। इस बैठक से यह जाहिर हुआ था कि प्रबंधन अपनी शर्तों पर वेतन समझौता करना चाहता है।
सोशल मीडिया पर अपडेट्स के लिए Facebook (https://www.facebook.com/industrialpunch) एवं Twitter (https://twitter.com/IndustrialPunch) पर Follow करें …