कोल इंडिया ने कैप्टिव बिजली संयंत्रों (सीपीपी) को कोयले की आपूर्ति और रेल रैक कम कर दिया है और घरेलू एल्युमीनियम उद्योग के पास महज 3 से 5 दिन के लिए कोयले के भंडार बचा है। एल्यूमिनियम उद्योग के एक अधिकारी ने बताया कि, ’एफएसए (ईंधन खरीद समझौता) के बावजूद हमें कोल इंडिया की तरफ से कोयले की आपूर्ति में कमी के संकट से जूझना पड़ रहा है। ऐसा करीब हर मॉनसून में होता है। 2018 और 2019 में भी कुछ अलग नहीं था। ऐसे में एफएसए का क्या मतलब है?
एल्यूमिनियम उद्योग के सीपीपी ने कोल इंडिया और इसकी सहायक कंपनियों के साथ बिजली खरीद समझौता किया था, जिससे दीर्घावधि के हिसाब से कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके। अगर सुरक्षित कोयला आपूर्ति में कोई रुकावट आती है तो उद्योग का काम ठहर जाता है और इसका सीधा असर इसका इस्तेमाल करने वाले एसएमई उद्योग पर पड़ता है और इससे तैयार माल के दाम बढ़ जाते हैं। दाम बढऩे का बोझ उपभोक्ताओं को उठाना पड़ता है।
एल्यूमिनियम को पिघलाने के लिए बाधारहित और बेहतर गुणवत्ता की बिजली आपूर्ति की जरूरत होती है, जिसकी जरूरत सिर्फ परिसर में स्थित सीपीपी से पूरी की जा सकती है। एल्यूमिनियम एसोसिएशन आफ इंडिया (एएआई) ने भी अपना प्रतिनिधिमंडल भेजकर कोल इंडिया से सहयोग की मांग की और कहा कि कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जानी चाहिए। एएआई ने कहा कि उद्योग के सतत संचालन के लिए सुरक्षित लिंकेज जरूरी है और कोयले की आपूर्ति के लिए पर्याप्त रैक आवंटित किए जाने चाहिए।
एसोसिएशन ने यह भी अनुरोध किया है कि सुरक्षित कोयला आपूर्ति में कटौती करने या आपूर्ति रोकने का फैसला यूं ही नहीं लिया जाना चाहिए.। सीपीपी आधारित उद्योगों को 2-3 महीने पहले नोटिस देना चाहिए, जिससे कि वे कोयला या बिजली आयात की योजना बनाकर वैकल्पिक व्यवस्था कर सकें। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, ’इतनी कम अवधि की सूचना में आयातित कोयले का प्रबंध करना कठिन है। कोयला खदानें रह मॉनसून में पानी से भर जाती हैं और उद्योग को कोयले की आपूर्ति कम कर दी जाती है क्योंकि कोयला बिजली संयंत्रों को भेज दिया जाता है।’
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भारत में आदित्य बिड़ला समूह की हिंडालको इंडस्ट्रीज, अनिल अग्रवाल की वेदांता लिमिटेड और सरकारी कंपनी नैशनल एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (नालको) प्रमुख एल्यूमिनियम उत्पादक हैं।एल्यूमिनियम का उत्पादन बिजली पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जहां एल्यूमिनियम के कुल उत्पादन लागत में कोयले का खर्च 40 प्रतिशत आता है। एल्यूमिनियम की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए इस क्षेत्र में 1.2 लाख करोड़ रुपये का भारी निवेश किया गया है, जिससे घरेलू उत्पादन क्षमता 2 गुनी होकर 4.1 एमटीपीए हो सके।
भारत के एल्युमीनियम उद्योग ने 9,000 मेगावॉट क्षमता के सीपीपी स्थापित किए हैं, जिससे स्मेल्टर और रिफाइनरी परिचालन के लिए बिजली की जरूरत पूरी हो सके और पॉवर ग्रिडों पर निर्भरता कम रहे।
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