CIL Head Office
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कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) ने अगले 5 वर्षों में 36 नई कोयला परियोजनाएं विकसित करने की योजना बनाई है। सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) ने अगले 5 वर्षों में 7 नई कोयला खदानें खोलने की योजना बनाई है। एनएलसी इंडिया लिमिटेड (एनएलसीआईएल) ने 2 नई कोयला खदानें खोलने की योजना बनाई है।

कोयला मंत्रालय ने कुल 175 कोयला ब्लॉक आवंटित किए हैं। इनमें से 65 कोयला ब्लॉकों को खदान खोलने की अनुमति मिल चुकी है, जिनमें से वर्तमान में 54 ब्लॉक चालू हैं। ये कोयला ब्लॉक भारत के विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में स्थित हैं।

कोयला खनन परियोजनाओं के कारण आम लोगों के जीवन पर पड़ने वाले लाभकारी प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार का सृजन।
  • परियोजना के आस-पास सामाजिक और आर्थिक विकास।
  • परियोजना क्षेत्र में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास।

कोयला खनन परियोजनाओं के लिए व्यापक भूमि की आवश्यकता होती है, जिसमें प्रायः वन क्षेत्र भी शामिल होते हैं। इसके कारण बस्तियों का विस्थापन होता है, आजीविका का नुकसान होता है तथा पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

हालांकि, पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के क्रम में प्रत्येक परियोजना के लिए खनन पूर्व और खनन पश्चात की स्थितियों पर विचार करते हुए एक विस्तृत पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) किया जाता है। ईआईए के आधार पर, एक पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) तैयार की जाती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत पर्यावरण मूल्यांकन समिति (ईएसी) ईएमपी की समीक्षा करती है और पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान करती है।

2006 के ईआईए अधिसूचना के अनुसार, सुनवाई सहित सार्वजनिक परामर्श भी पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया का हिस्सा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय पर्यावरणीय मंजूरी प्रदान करते समय विशिष्ट शर्तें और शमन उपाय लागू करता है, जिन्हें चरणों में लागू किया जाता है और निर्धारित शर्तों के अनुसार अनुपालन की रिपोर्ट दी जाती है। जहां तक ​​भूमि के अधिग्रहण और कब्जे का संबंध है, इसके लिए मुआवजा कंपनी की मौजूदा नीति के अनुसार प्रदान किया जाता है।

प्रत्येक कोयला खदान की एक निर्धारित खदान क्षमता मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) है, जिसे पीक रेटेड क्षमता कहा जाता है। स्वीकृत खनन योजना के अनुसार वर्षवार उत्पादन कार्यक्रम की परिकल्पना की गई है।

नई कोयला खनन परियोजनाओं में पानी की खपत बढ़ सकती है, जो परियोजना-विशिष्ट और उसकी तकनीक पर निर्भर करता है। पानी की खपत परियोजना-विशिष्ट होती है और यह खदान की ज्यामिति पर निर्भर करती है, जैसे परियोजना क्षेत्र, खदान की गहराई, खदान का डिजाइन जैसे बेंचों की संख्या, इसकी चौड़ाई आदि, खनन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक जैसे खुदाई, परिवहन आदि के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनरी।

आम तौर पर, पानी का इस्तेमाल धूल को दबाने, घरेलू उपयोग आदि के लिए किया जाता है। प्रत्येक परियोजना के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार से लिया जाता है। विस्तृत हाइड्रोजियोलॉजिकल रिपोर्ट और भूजल मॉडलिंग के आधार पर एनओसी दी जाती है।

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