रायपुर, 25 मई। हसदेव बचाओं संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े उमेश्वर सिंह आर्मो, आलोक शुक्ला ने जारी बयान में कहा कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) के सीएमडी द्वारा गलत तथ्यों को प्रस्तुत कर जनता व मीडिया समूह को गुमराह किया जा रहा है।
हसदेव अरण्य में कोयला खदानों के मामले में पिछले 2-3 दिनों से राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) के सीएमडी द्वारा गलत बयानबाज़ी कर जनता को गुमराह करने तथा असली मुद्दों से भटकाने की कोशिश हो रही है। गलत तथ्यों को प्रस्तुत कर नई खदानें शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है जिसके पीछे या तो RRVUNL को उसके एमडीओ (MDO) अदानी ने गलत जानकारी दी है अथवा यह सब जान-बूझ के अदानी को गैर-वाज़िब मुनाफा पहुंचाने की कवायद है।
पुरानी खदानों पे सवाल खड़ा करने के आरोप पूर्णतया गलत और भ्रमात्मक
RRVUNL के अनुसार ये खदाने पुरानी आवंटित है जिनपे कोई सवाल नही होना चाहिए | परंतु RRVUNL के सीएमडी यह बताना भूल गए कि यहाँ की ग्राम सभाएं भी 2014 से लगातार विरोध प्रस्ताव कर रही हैं। 2010 में ही इस क्षेत्र को नो-गो क्षेत्र घोषित किया गया था और 2014 में यहाँ PEKB की वन स्वीकृति को NGT ने निरस्त कर दिया था, जो मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। साफ है कि कंपनी को एक दशक से अधिक से पता था कि यह खदाने पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र में है जहां भारी जन-आक्रोश है। फिर भी उन्होने एक दशक से किसी विकल्प को तलाशना मुनासिब नही समझा और अब लोगों को उनके विरोध करने के संवैधानिक अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है। गौरतलब है कि जिन स्वीकृतियों का हवाला दिया जा रहा है वह फर्जी ग्राम सभा के तहत मिली है जिसकी जांच की मांग ग्रामीण 2018 से ही कर रहे हैं – फिर भी बिना उनकी सुनवाई किए खनन का काम आगे बढ़ाना और विरोध को कुचलने की मांग करना एक असंवैधानिक बयान है। चूंकि RRVUNL एक सरकारी उपक्रम है उसको पता होना चाहिए कि पाँचवी अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा का महत्वपूर्ण स्थान है – फिर भी जबरन खदान चालू करना यह दर्शाता है कि RRVUNL अदानी को फायदा पहुंचाने में इतना मग्न है कि उसे संविधान की भी कोई चिंता नही बची।
MDO पे निगरानी रखने का बयान हास्यप्रद है
RRVUNL के MDO अनुबंध से केवल अदानी का फायदा होता है जिसके तहत कंपनी SECL के मुक़ाबले महंगे दामों पर कोयला खरीदती है। इसका उल्लेख मीडिया ने बार बार किया है और वर्तमान मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने भी इस पर आवाज़ उठाई थी। फिर भी MDO अनुबंध को रद्द करने की बजाय उसको आगे बढ़ाया जा रहा है। दूसरी ओर कोयला रिजैक्ट अदानी द्वारा गैर-वाज़िब रूप से लगातार निकालके बेचा जा रहा है जिससे RRVUNL को वित्तीय नुकसान भी है। सवाल यह भी है की यदि RRVUNL ने मध्य प्रदेश में कोयला विकल्प खोजा होता तो उसे कहीं सस्ते में कोयला मिलता। परंतु 2011 से ही अदानी को यह ज़िम्मेदारी सौंप कर RRVUNL ने साफ कर दिया था की उसे खनन में कोई रुचि ही नही और सारे खदान-संबन्धित निर्णय अदानी अपने मुनाफे अनुसार ले सकेगा। ऐसे में RRVUNL द्वारा राजस्थान की आम जनता के नाम पर गुहाई लगाना उनके साथ धोखा है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र के कुछ ही क्षेत्र में खनन करने की बात
RRVUNL ने कहा कि पूरे क्षेत्र के मात्र 2.2 प्रतिशत क्षेत्र में खनन होगा जिससे पर्यावरण को नुकसान नही होगा। ऐसे में वो यह बताना भूल गए कि वास्तव में उनके और उनके MDO अदानी कि मंशा वर्तमान परिचालित क्षेत्र तक सीमित नहीं है बल्कि पूरे 170,000 हेक्टेयर क्षेत्र को उजाड़ने की है। क्या RRVUNL ने ही केते एक्सटेंशन परियोजना की स्वीकृति नही मांगी है? क्या उनके MDO अदानी ने उन्हे नही बताया कि बाकी कितनी खदानों के लिए उन्होने स्वीकृति का आवेदन डाला है? क्या यहाँ उत्खनन क्षेत्र को सीमित रखने के लिए RRVUNL अपनी बाकी खदानों को निरस्त करने तैयार है और अदानी को खनन आगे बढ़ाने से रोकेगा – जोकि उनकी निरस्त वन-भूमि स्वीकृति की सबसे अहम शर्त थी ? वास्तव में खदान क्षेत्र अब तक सीमित केवल इसलिए है क्यूंकी यहाँ ग्राम सभाए संगठित हैं और खनन का विरोध कर रही हैं। पूरे क्षेत्र में एक भी खदान खुलने से समस्त क्षेत्र पर गंभीर असर पड़ेगा जोकि हसदेव अरण्य संघर्ष समिति होने नही देंगी।
खदान में कोयला समाप्ति तथा पावर प्लांट बंद करने की गैर-जिम्मेदाराना धमकी
RRVUNL के अनुसार नई खदान शुरू ना करने से कोयला खतम हो जाएगा और 4340 MW पावर प्लांट बंद करना होगा। वर्तमान परिचालित PEKB खदान की क्षमता 18 MTPA है जोकि 3600 MW ऊर्जा उत्पादन के लिए पर्याप्त है – बाकी बचे 740 MW उत्पादन क्षमता के लिए भी CIL से लिंकेज उपलब्ध है। PEKB फेज 1 से अब तक केवल 83 मिलियन तन उत्खनन किया गया है, जबकि कंपनी दस्तावेज़ों तथा कोयला मंत्रालय के अनुसार वहाँ 150 MT कोयला भंडार है। तो यदि कोयला खत्म होने पे है तो यह बाकी बचा कोयला कहाँ चोरी हो गया ? इस संबंध में यह भी सवाल उत्पन्न होता है कि यदि वास्तव में PEKB खदान से कोयला खतम हो गया है तो उसने फरवरी माह में ही 15 से 18 MTPA क्षमता विस्तार की स्वीकृति क्यूँ मांगी थी ? ऐसे में पावर प्लांट बंद करने की धम्की तथ्यों से परे एक गैर-जिम्मेदाराना निर्णय होगा जिससे राजस्थान के विद्युत उपभोगता के साथ छल किए जाने की बू आती है।
पेड़ लगाना, स्कूल अस्पताल इत्यादि पर गलत बयानबाज़ी
RRVUNL ने माना कि खदान तो 9 साल से चल रही है फिर अब क्यूँ याद आया कि 9 साल पहले जो अस्पताल खोलने का वादा था वो अब पूरा किया जाएगा? इतने सालों में पर्यावरणीय स्वीकृति के उल्लंघन से जुड़े तथ्यों को क्यूँ छुपा रहे है जिस पर बार-बार ग्रामीणों ने आवाज़ उठाई और विभाग ने नोटिस भी जारी किए ? क्यूँ केवल नई स्वीकृतियों के समय ही पर्यावरण तथा विकास की बात कही जाती है? जिन 8 लाख पेड़ों को लगाने की बात कही है वे कहाँ है? ICFRE ने भी अपनी रिपोर्ट में साफ चिंता जताई कि पेड़ों को लगाने और स्थानांतरण में बहुत नजरंदाजी हुई है जिससे पेड़ों के जीवित रहने पर बड़े सवाल हैं। वैसे भी हसदेव अरण्य एक प्राकृतिक जंगल है जिसकी क्षति कभी वृक्षारोपण से पूरी नही की जा सकती।
हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्रामीण, जनता तथा मीडिया से पुनः अनुरोध करते हैं कि गलत बयानबाज़ी में ना आयें – वास्तविक हकीकत देखने स्वयं क्षेत्र के दर्शन करें और देखें कि कैसे इस जंगल को बचाने स्थानीय आदिवासी समुदाय एकत्रित होकर जल-जंगल-ज़मीन और भारतीय संविधान की रक्षा कर रहा है। RRVUNL द्वारा गलत तथ्यों को प्रस्तुत करना निंदनीय है।
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