रायपुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का 7वां राज्य सम्मेलन कोरबा में 21-22 दिसंबर को कोरबा में संपन्न हुआ। संजय पराते पुनः 23 सदस्यीय राज्य समिति के सचिव निर्वाचित किये गए।
सम्मेलन का उदघाटन माकपा के पोलिट ब्यूरो सदस्य तपन सेन ने किया। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन ने देश का राजनैतिक एजेंडा बदल दिया है। इस आंदोलन ने दिखा दिया है कि कॉर्पोरेट लूट पर अंकुश लगाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए मजदूर-किसान एकता को मजबूत बनाते हुए वर्ग संघर्ष तेज करना होगा। वर्ग संघर्ष ही समाज में बुनियादी परिवर्तन का हथियार है। पूर्व में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ भी हमने लड़ाई जीती है। अब इस लड़ाई को उसके राजनैतिक अंजाम तक पहुंचाना होगा और आगामी हर चुनाव में आरएसएस नियंत्रित भाजपा की हार सुनिश्चित करनी होगी।
उन्होंने कहा कि जब शासक वर्ग अपनी जन विरोधी नीतियों के कारण अलगाव की स्थिति में जाता है, तो वह आम जनता को विभाजित करने की कोशिश करता है। आज यही खेल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके भाजपा-आरएसएस खेल रही है।इसलिए सांप्रदायिकता और हिन्दुत्व के हमले के खिलाफ जमीनी और वैचारिक स्तर पर लड़ाई लड़नी होगी। छत्तीसगढ़ में वामपंथी आंदोलन का यही महत्व है कि एक कमजोर ताकत होने के बावजूद वह प्रदेश की राजनीति के हर क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही है और आम जनता के प्रतिरोध को संगठित करके समाज परिवर्तन की लड़ाई को तेज कर रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि अपनी जन पक्षधर नीतियों और संघर्षों के कारण आने वाले दिनों में माकपा एक प्रभावशाली राजनैतिक ताकत के रूप में उभरेगी।
इससे पूर्व पार्टी के वयोवृद्ध नेता गजेंद्र झा द्वारा झंडारोहण और शहीद वेदी पर पुष्पांजलि के साथ सम्मेलन शुरू हुआ। वी एम मनोहर ने स्वागत भाषण देते हुए कोरबा में पार्टी के दिशा-निर्देशन में चल रहे भूविस्थापितों के संघर्षों का जिक्र किया और मजदूर-किसान एकता को मजबूत करने का आह्वान किया।
पार्टी राज्य सचिव संजय पराते ने राजनैतिक-सांगठनिक रिपोर्ट पेश की, जिसमें प्रदेश के राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को सामने रखते हुए आने वाले दिनों में पार्टी संगठन और आंदोलन विस्तार की रणनीति पेश की गई थी। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने वर्तमान राजनैतिक चुनौतियों का जिक्र करते हुए जन संगठनों के निर्माण और कार्यकर्ताओं के वैचारिक प्रशिक्षण पर बल दिया है, ताकि पार्टी के राजनैतिक जनाधार का विस्तार किया जा सके। माकपा सचिव की इस रिपोर्ट को प्रतिनिधियों ने बहस के बाद पारित किया।
सम्मेलन के समापन सत्र को पार्टी के राज्य प्रभारी और केंद्रीय समिति सदस्य जोगेंद्र शर्मा ने संबोधित करते हुए कहा कि जन संघर्षों को संगठित किये बिना संगठन का निर्माण नहीं किया जा सकता और और बिना संघर्ष के संगठन भी नहीं बनाया जा सकता। संगठन जितना मजबूत होगा, जन संघर्षों के विस्तार भी उतनी ही तेजी से होगा। छत्तीसगढ़ में माकपा और वामपंथ को मजबूत करने की यही कुंजी है। यही वह रास्ता है, जिससे माकपा को छत्तीसगढ़ के राजनैतिक नक्शे पर स्थापित किया जा सकता है।
अपने संबोधन में उन्होंने प्रदेश में बड़े पैमाने पर जन संगठनों के विस्तार पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमारे जन संगठनों का चरित्र ऐसा होना चाहिए कि आम जनता का हर तबका बिना किसी डर के संगठन में काम कर सके। आज हमारी गरीब जनता उदारीकरण और निजीकरण की जिस चक्की में पिस रही है, उसके खिलाफ लड़ने के लिए योजनाबद्ध ढंग से संघर्ष विकसित करने की जरूरत है। भूविस्थापन, वनाधिकार, मनरेगा, आदिवासियों पर दमन आदि जिन मुद्दों को हमने चिन्हित किया है, इनमें से हर समस्या अखिल भारतीय मुद्दे से जुड़ती है। इसलिए इन स्थानीय मुद्दों पर आयोजित संघर्षों की धमक दूर तक जाती हैं। उन्होंने इन मुद्दों पर संघर्षों को निरंतरता में आयोजित करने और उसे सकारात्मक नतीजों तक पहुंचाने पर जोर दिया।
सम्मेलन ने आगामी तीन सालों के लिए 23 सदस्यीय राज्य समिति का भी चुनाव किया, जो इस प्रकार है : संजय पराते (सचिव), एम के नंदी, बी सान्याल, धर्मराज महापात्र, वकील भारती, बाल सिंह, डीवीएस रेड्डी, समीर कुरैशी, प्रदीप गभने, एस सी भट्टाचार्य, प्रशांत झा, एस एन बनर्जी, वी एम मनोहर, ऋषि गुप्ता, कृष्ण कुमार लकड़ा, पी एन सिंह, ललन सोनी, सुरेन्द्रलाल सिंह, इंद्रदेव चौहान, आर वी भारती और धनबाई कुलदीप, विशेष आमंत्रित सदस्य गजेंद्र झा।
अप्रैल में पार्टी के केरल में होने जा रहे आगामी महाधिवेशन के लिए भी 6 प्रतिनिधियों का चुनाव किया गया।
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