छत्तीसगढ़ के 250 उद्योगों पर संकट, एसईसीएल ने कोयला आपूर्ति का नवीनीकरण लटकाया, राज्य सरकार ने भी साधी चुप्पी

उद्योग पिछले दो हफ्ते से कोयले की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने इन उद्योगों का फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) अधर में लटका रखा है।

छत्तीसगढ़ राज्य में लगभग 250 ऐसे उद्योग हैं जो अपनी जरूरत की बिजली खुद बनाते हैं। यानी इन उद्योगों की ऊर्जा का आधार कैप्टिव पावर प्लांट (सीपीपी) हैं। ये सब उद्योग पिछले दो हफ्ते से कोयले की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने इन उद्योगों का फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) अधर में लटका रखा है।

एफएसए कब होगा, इस पर कोई भी बात नहीं कर रहा। स्थिति यह है कि अब प्रदेश के अलग-अलग सीपीपी में कोयला लगभग खत्म हो चुका है। जैसे ही सीपीपी बंद होंगे, इन पर आधारित उद्योगों का प्रचालन पूरी तरह से बंद हो जाएगा। यदि समय रहते शासन-प्रशासन ने इस स्थिति को न संभाला तो बड़ी संख्या में लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।

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एसईसीएल ने एफएसए के बजाए ई-ऑक्शन से कोयला आपूर्ति का रास्ता तो चुना लेकिन बिना किसी तैयारी के। अब तक कोयले के ऑक्शन का टेंडर जारी नहीं हो पाया जबकि सीपीपी आधारित उद्योगों में हाहाकार मचा हुआ है। वहीं पड़ोसी राज्य उड़ीसा की बात करें, तो वहां महानदी कोल फील्ड्स लिमिटेड (एमसीएल) ने उड़ीसा में संचालित सीपीपी आधारित उद्योगों को ऑक्शन के जरिए बड़ी मात्रा में कोयले की आपूर्ति के लिए नोटिस भी जारी कर दिया है।

एसईसीएल ने हाल-फिलहाल जो ऑक्शन किए भी उससे सीपीपी उपभोक्ताओं को उनकी जरूरत का एक फीसदी कोयला ही मिल सकता है। जबकि स्थिति यह है कि राज्य के सीपीपी आधारित उद्योगों को एफएसए के तहत तत्काल प्रभाव से हर वर्ष 80 लाख टन कोयले की जरूरत है। इसके विपरीत एसईसीएल का ऑक्शन नोटिस सिर्फ 3.50 लाख टन का है।

यह भी सवाल है कि कोल इंडिया लिमिटेड की दो अनुषंगी कंपनियों की कार्य शैली में इतना अंतर कैसे है ? एसईसीएल न तो एफएसए के नवीनीकरण के लिए तैयार है और न ही ऑक्शन के जरिए उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में कोयला आपूर्ति के लिए कोई सकारात्मक पहल ही कर रहा है जबकि एमसीएल सीपीपी आधारित उद्योगों की जरूरत का पूरा कोयला देने की तैयारी में है।

सूत्र बताते हैं कि एसईसीएल का प्रति वर्ष का उत्पादन लक्ष्य लगभग 150 मिलियन मीट्रिक टन है जबकि इस वित्तीय वर्ष में अभी तक लगभग 45 मिलियन मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ है। यानी इस वित्तीय वर्ष के दो तिमाहियों के लगभग बीत जाने के बाद एसईसीएल सिर्फ 30 फीसदी कोयले का उत्पादन कर सका है। 20 फीसदी उत्पादन में कमी इसके उपभोक्ताओं के हितों पर विपरीत असर डाल रही है। अंदरखाने की खबर तो यह भी है कि उत्पादन की अनियमितताओं के कारण कुछ माह पूर्व केंद्रीय स्तर की एक जांच टीम कुसमुंडा और गेवरा खदानों में छानबीन कर चुकी है। नतीजे का तो पता नहीं लेकिन इतना जरूर है कि राज्य के सीपीपी आधारित उद्योगों की नब्ज एसईसीएल के ढीले रवैए से धीमी पड़ती जा रही है।

वैश्विक आंकड़ों की बात करें तो बिजली की मांग में बढ़ोत्तरी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत देते हैं परंतु बिजली उत्पादन के लिए जरूरी कच्चा माल यानी कोयले की तंगी अर्थव्यवस्था को धीमा ही कर रही है। सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी से जारी आंकड़ों के अनुसार देश के 135 में से दो तिहाई कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों में अब एक सप्ताह से कम का कोयला बचा है। 43 विद्युत संयंत्रों में तो सिर्फ तीन दिन का कोयला है जबकि चार संयंत्रों में बीते रविवार यानी 5 सितंबर तक कोयले का स्टॉक शून्य हो चुका था।

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विडंबना है कि भारत में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयले का भंडार है जबकि विश्व में सर्वाधिक कोयला आयातक देशों में भारत का स्थान दूसरा है। कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों से देश की तीन-चौथाई मांग की पूर्ति होती है। सीपीपी आधारित उद्योगों का देश की प्रगति में बड़ा योगदान है। कोयले के अभाव में उनका बंद होना पटरी पर वापस आ रही अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल होगा।

छत्तीसगढ़ में आज जरूरत इस बात की है कि राज्य शासन एसईसीएल पर इस बात के लिए दबाव डाले कि राज्य के सीपीपी आधारित उद्योगों को उनके हक का पूरा कोयला मिले। राज्य से बाहर भेजे जा रहे कोयले पर तत्काल रोक लगाई जाए। छत्तीसगढ़ के मुखिया श्री भूपेश बघेल को प्रदेश के उद्योगों के हित में निर्णय लेकर राज्य के कोयले को राज्य के ही उद्योगों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है।

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