एसईसीएल की मनमानी से एक बार फिर छत्तीसगढ़ में नॉन पावर सेक्टर पर छाए संकट के बादल

खबरें आ रही हैं कि दिनांक 28 जनवरी, 2022 से एसईसीएल ने मनमाना निर्णय लेते हुए रोड सेल बंद करने की तैयारी कर ली है। कोरबा की खदानों में रोड सेल की ट्रकों को बिना किसी पूर्व सूचना प्रवेश करने से रोक दिया गया है।

रायपुर, 28 जनवरी। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और उसकी अनुषंगी कंपनियां अपने उत्पादन लक्ष्य से बुरी तरह से पिछड़ चुकी हैं। इतना कि, अब सीआईएल की नाकामियों की दहक से एक बार फिर छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योग झुलसने लगे हैं।

खबरें आ रही हैं कि दिनांक 28 जनवरी, 2022 से एसईसीएल ने मनमाना निर्णय लेते हुए रोड सेल बंद करने की तैयारी कर ली है। कोरबा की खदानों में रोड सेल की ट्रकों को बिना किसी पूर्व सूचना प्रवेश करने से रोक दिया गया है। नतीजा यह होगा कि आज रात से ही रोड सेल से सीपीपी आधारित उद्योगों तक आने वाला कोयला पूरी तरह ठप्प हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है अगले कुछ दिनों में छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर फिर से वेंटिलेटर पर जाने वाले हैं।

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कोयले के धंधे को करीब से जानने वाले बताते हैं कि एसईसीएल ने वर्तमान चल रहे वित्तीय वर्ष में उत्पादन का जो लक्ष्य रखा था उससे वह काफी पीछे है। चौथी तिमाही में ही 15 जनवरी से 31 मार्च, 2022 के दौरान 75 दिनों में 75 मिलियन टन का उत्पादन लक्ष्य पाने की बड़ी चुनौती है। बीते वर्ष के दौरान एसईसीएल के लक्ष्य पाने का प्रयास लचर प्रबंधन के कारण औंधे मुंह गिर चुका है।

वर्तमान उत्पादन दर के हिसाब से माना जा रहा है कि एसईसीएल 75 मिलियन टन के आधे स्तर तक ही पहुंच पाएगा। लक्ष्य से कोसों दूर होने के कारण चूंकि देश के बाकी बिजली उत्पादकों तक कोयला नहीं पहुंच पा रहा ऐसे में कोल इंडिया ने फौरी तौर पर यह नीति अपना ली कि छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों को पहले ही कम मिल रहे कोयले में से और कटौती की जाए। आज कोरबा क्षेत्र से एसईसीएल हर दिन लगभग तीन लाख टन के आसपास कोयले का उत्पादन करता है परंतु इसका लगभग 50 फीसदी हिस्सा यानी लगभग डेढ़ लाख टन कोयला छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर के उद्योगों को भेजा जा रहा है।

बताते चलें कि सितंबर, 2021 से ही कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियां देश भर में कोयले के उत्पादन के संकट से जूझ रही हैं। इसकी वजह से अक्टूबर के आसपास देश भर में और छत्तीसगढ़ राज्य के सीपीपी आधारित उद्योग कोयले की क्रिटिकल कमी से जूझ रहे थे। मानसून के बाद जब स्थिति थोड़ी ठीक हुई तो माना जा रहा था कि कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनियां तेजी से काम करते हुए अपने उत्पादन लक्ष्य को पा लेंगी, लेकिन हुआ ठीक इसके उलटा। कोल इंडिया लिमिटेड के पास न तो संसाधनों की कमी है और न ही पेशेवर नजरिए कि, बावजूद इसके वह उस मात्रा में कोयला उत्पादन नहीं कर पा रही है, जितनी की देश भर के उद्योगों को जरूरत है।

हालांकि, इन सब के बीच यह बात समझ से परे है कि छत्तीसगढ़ के उद्योगों के हितों की अनदेखी करते हुए आखिर क्यों एसईसीएल प्रबंधन राज्य का कोयला दूसरे राज्यों को भेजने पर राजी हो जाता है। बड़ा सवाल यह भी है कि छत्तीसगढ़ का कोयला प्राथमिकता के आधार पर राज्य के उद्योगों को क्यों नहीं दिया जा रहा।

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यदि छत्तीसगढ़ राज्य शासन के स्तर पर उद्योगों के हित में फैसले लिए जाते हैं तब ऐसी स्थितियां क्यों बन जाती हैं कि एसईसीएल राज्य के उद्योगों की अनदेखी करते हुए बाहर कोयला भेजने तैयार हो जाता है? इन सब के पीछे कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उत्तरप्रदेश में चुनाव सिर पर हैं। वहां पहले ही अनेक मुद्दे हैं जिन पर विपक्ष और सरकार के बीच घमासान है। यदि कोयले की कमी का मुद्दा कहीं उत्तरप्रदेश में उठा तो फिर सत्तापक्ष के लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है। ऐसे में केंद्र और उत्तरप्रदेश सरकार दोनों ही नहीं चाहतीं कि किसी एक नए मुद्दे पर विपक्ष मुखर होकर उन्हें कटघरे में खड़ा कर दे।

सूरते-हाल यह है कि एसईसीएल ने रोड सेल की ट्रकों को आज से ही रोक दिया है। छत्तीसगढ़ में सीपीपी आधारित जो उद्योग कोयले की आपूर्ति के लिए एसईसीएल पर निर्भर हैं वे लगातार इस भय में हैं कि पता नहीं कब कोयले की कमी उनके प्रचालन की बलि ले ले। देखना होगा कि राज्य के उद्योगों के हित में छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल क्या निर्णय लेते हैं ?

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