आज जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना के आघात से उबरने की प्रक्रिया में है और उद्योगों में उत्पादन बढ़ने के साथ कोयले की मांग में तेजी से वृद्धि हो रही है ऐसे में सीपीपी आधारित नॉन पावर सेक्टर के उद्योगों में कोयला आपूर्ति की कमी अर्थव्यवस्था के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है।
अगस्त, 2021 के बाद से देश में स्टील, सीमेंट, पेपर और अन्य उद्योग कोयले की भीषण कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में इन उद्योगों को जहां बड़े आर्थिक नुकसान की आशंका है वहीं कामगारों के लिए रोजगार का संकट उत्पन्न हो सकता है।
भारतीय निजी ऊर्जा उत्पादक संघ (आईसीपीपीए), भारतीय खनिज एवं उद्योग महासंघ (एफआईएमआई) के साथ अनेक वाणिज्यिक तथा श्रमिक संगठनों ने नॉन पावर सेक्टर के समर्थन में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू कर दिया है। ये संगठन कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) द्वारा पावर सेक्टर को तरजीह देने का विरोध कर रहे हैं वहीं अपनी अपील में कोयला उत्पादन एवं आपूर्ति की विसंगतियों को दूर करने की मांग कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों में चल रहे कोयला संकट के खिलाफ छत्तीसगढ़ युवक कांग्रेस ने 7 फरवरी, 2022 को साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) के बिलासपुर स्थित मुख्यालय का घेराव और धरना प्रदर्शन किया। हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं की मौजूदगी में कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने एसईसीएल के सीएमडी से मुलाकात की और राज्य के नॉन पावर सेक्टर को प्राथमिकता के आधार पर कोयला देने के संबंध में ज्ञापन सौंपा। प्रदेश युवक कांग्रेस ने कहा है कि यदि समस्या का जल्दी समाधान नहीं किया गया तो उग्र प्रदर्शन किया जाएगा।
सीआईएल की अनुषंगी कंपनी एसईसीएल अनुबंध के तहत छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर को 65 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति के लिए बाध्य है। पिछला अनुबंध अक्टूबर, 2021 में समाप्त हो चुका है जबकि ट्रांचे-5 के लिए नया अनुबंध अभी तक नहीं हो पाया है।
छत्तीसगढ़ के नॉन पावर सेक्टर को एसईसीएल ने यह आश्वासन दिया था कि पूर्व में हुए अनुबंध की समाप्ति के पश्चात एवं ट्रांचे-5 के अनुबंध के बीच के समय में एसईसीएल द्वारा ऑक्शन के जरिए कोयले की आपूर्ति नॉन पावर सेक्टर को की जाएगी। परंतु एसईसीएल ने नॉन पावर सेक्टर को विगत चार महीने में मात्र 30 लाख टन कोयला ऑक्शन के जरिए आबंटित किया है।
सीआईआई छत्तीसगढ़ ने प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को भेजे गए अपने पत्र में इस बात की ओर ध्यान दिलाया था कि कोयले की कमी से सीपीपी आधारित उद्योगों के प्रचालन के साथ ही उनके विस्तार पर बुरा असर होगा। राज्य में सीपीपी आधारित नॉन पावर सेक्टर के उद्योग लगभग 4000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करते हैं।
इन उद्योगों को प्रतिदिन 88000 टन कोयले की आवश्यकता है। दरअसल, छत्तीसगढ़ के उद्योगों के हित में राज्य सरकार को ऐसे निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है जिससे राज्य के संसाधन प्राथमिकता के साथ राज्य के ही उद्योगों को प्राप्त हों।
भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) की छत्तीसगढ़ इकाई ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है।
एसईसीएल का वार्षिक उत्पादन लक्ष्य 165 मिलियन टन है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के विद्युत संयंत्रों को एसईसीएल में उत्पादित होने वाले कोयले का सिर्फ 40 प्रतिशत मिल पा रहा है जबकि 60 प्रतिशत कोयला बाहर के राज्यों को भेजा जा रहा है।
कोरबा ट्रक एंड ट्रेलर संघ (केटीटीओए) ने भी प्रधानमंत्री को भेजे गए अनुरोध पत्र में यह मांग की है कि छत्तीसगढ़ से दूसरे राज्यों को भेजे जा रहे कोयले पर रोक लगाकर छत्तीसगढ़ प्रदेश के सीपीपी आधारित उद्योगों को कोयले की आपूर्ति की जाए ताकि कोयले की कमी से जूझ रहे उद्योगों को राहत मिल सके। केटीटीओए का यह भी कहना है कि कोयला संकट से स्थानीय व्यापार प्रभावित हो रहा है तथा इससे बेरोजगारी की समस्या में वृद्धि होने की आशंका है।
कुछ इसी तर्ज पर ओडीशा की वाणिज्यिक एवं औद्योगिक इकाइयों ने कोयला संकट पर राज्य सरकार और राष्ट्रीय नेतृत्व का ध्यान खींचा है। प्रधानमंत्री एवं ओडीशा शासन के अलावा सीआईएल की अनुषंगी कंपनी महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड प्रबंधन को भेजे गए अनेक पत्रों के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
पिछले दिनों स्थिति तब बिगड़ गई जब कोयले की कमी से प्रभावित होने वाले स्थानीय उद्योगों और उससे जुड़े नागरिकों ने महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड से बाहरी राज्यों को भेजे जाने वाले रेल रैक का रास्ता रोक दिया। लोग इस बात पर अड़े रहे कि ओडीशा के स्थानीय उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर कोयले की आपूर्ति की जाए।
वस्तुस्थिति यह भी है कि पिछले आठ महीने में महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ने एक्सक्लूसिव्ह और स्पॉट ऑक्शन के जरिए उद्योगों के लिए लगभग 19.26 मिलियन टन कोयला उद्योगों के लिए उपलब्ध कराया जबकि एसईसीएल सिर्फ 4.88 मिलियन टन कोयला उपलब्ध करा पाई।
इंडियन इंडस्ट्रियल वैल्यू चेन काउंसिल (आईआईव्हीसीसी) के मुताबिक यदि नॉन पावर सेक्टर के सामने कोयले का संकट ऐसे ही बना रहा तब 5000 से अधिक छोटे एवं मझोले उद्योग भारी नुकसान झेलने के साथ ही तालाबंदी की नौबत तक पहुंच जाएंगे।
अपने प्रचालन के लिए कोयले पर पूरी तरह से निर्भर बड़े उद्योग, डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्रीज और एसएमई देश के लाखों नागरिकों के लिए रोजगार का बड़ा जरिया हैं। कोरोना की लहर के बाद यदि कोयले की कमी से देश की औद्योगिक रफ्तार कम हुई तो बिला शक इसका दुष्प्रभाव केंद्र के साथ राज्य सरकारों पर भी होगा।
एक और अनचाहे मुद्दे को लेकर सड़कों पर होंगे। जाहिर है राष्ट्रहित के प्रतिकूल ऐसी स्थिति किसी को भी स्वीकार्य नहीं होगी।
सोशल मीडिया पर अपडेट्स के लिए Facebook (https://www.facebook.com/industrialpunch) एवं Twitter (https://twitter.com/IndustrialPunch) पर Follow करें …