नई दिल्ली, 13 जनवरी। पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव ने मोदी सरकार को सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक लिमिटेड (CEL) को निजी कंपनी को बेचने के निर्णय से पीछे कर दिया है। बताया गया है कि सामरिक महत्व की इस कंपनी को बेचने का इरादा फिलहाल टाल दिया है।
डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट के सचिव तुहिन कांत पांडेय ने मीडिया को बताया कि सीईएल की सौ फीसदी हिस्सेदारी निजी हाथों में सौंपने के लिए फाइनांस एंड लीजिंग का लेटर ऑफ इन्टेंट नांडल फिलहाल रोक दिया गया है।
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इस कंपनी के निजीकरण का चुनावों पर असर पड़ सकता था, क्योंकि कंपनी के कर्मचारियों ने इस निजीकरण का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया था। सूत्रों के मुताबिक सरकार को ऐसी भी आशंका थी कि अगर इस निजीकरण पर सरकार आगे बढ़ती है तो कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकते थे।
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण से कंपनी के कर्मचारियों ने इस मामले में जनहित याचिका दायर करने के लिए संपर्क किया था ताकि इस निजीकरण को रोकने का कोर्ट से आग्रह किया जा सके। कर्मचारियों का कहना था कि यह मुनाफे वाली कंपनी है और इसे इसे निजी हाथों में कौड़ियों को दामों में सौंपा जा रहा है।
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गौरतलब है कि कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कर्मचारियों की तरफ से इस मामले मं 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक अपील फाइल करते हुए निजीकरण पर सवाल उठाए थे। हाल ही में यह केस दोबारा खुला है।
किसान नेता राकेश टिकैत ने भी साहिबाबाद में प्रदर्शनकारी कर्मचारियों को संबोधित किया था। इसके बाद ही सरकार को लगा कि चुनाव मौसम में औद्योगिक कामगारों को नाराज करना मुश्किलें खड़ी कर सकता है। हालांकि इस मामले में भारतीय किसान यूनियन बहुत ज्यादा मुखर नहीं रही, लेकिन आंदोलन कर रहे कर्मचारियों को उसके समर्थन ने सरकार के कान खड़े कर दिए।
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