फाइनेंशियल टाइम्स और द गार्जियन (Financial Times and The Guardian) ने गुरुवार को ताजा सबूतों के साथ एक खुलासा किया है जिससे संकेत मिलते हैं कि गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी के करीबी लोगों और सहयोगियों ने गुपचुप तरीके से अडानी समूह (Adani Group) की कंपनियों के शेयर खरीदे। हालांकि अडानी समूह इस साल मार्च तक विनोद अडानी की समूह में सक्रिय भूमिका से इनकार करता रहा है। लेकिन जो दस्तावेज सामने आए हैं कि समूह ने इस खरीदारी का इस्तेमाल शेयरोंकी कीमतों में हेरफेर करने के लिए किया था।
ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) की इस रिपोर्ट को अंग्रेजी अखबार द गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स के साथ शेयर किया गया है। इसमें अडानी ग्रुप के मॉरीशस मे किए गए लेनदेन के बारे में खुलासा करने का दावा किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ग्रुप की कंपनियों ने 2013 से 2018 के बीच गुपचुप तरीके से अपने शेयरों को खरीदा।
नॉन-प्रॉफिट मीडिया ऑर्गेनाइजेशन OCCRP का दावा है कि उसने मॉरीशस के रास्ते हुए लेनदेन और अडानी ग्रुप के इंटरनल ईमेल्स (अंदरूनी पत्राचार) को देखा है। उसका कहना है उसकी जांच में सामने आया है कि कम से कम दो मामले ऐसे हैं जहां निवेशकों ने विदेशी कंपनियों के जरिए अडानी ग्रुप के शेयर खरीदे ओर बेचे हैं।
OCCRP की रिपोर्ट में दो निवेशकों नसीर अली शाबान अहली और चांग चुंग-लिंग का नाम लिया गया है। दावा गया है कि ये दोनों अडानी परिवार के पुराने कारोबारी साझीदार हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक OCCRP ने दावा किया है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि चांग और अहली ने जो पैसा लगाया है वह अडानी परिवार ने दिया था, लेकिन रिपोर्टिंग और डॉक्यूमेंट्स से साफ है कि अडानी ग्रुप में उनका निवेश अडानी परिवार के तालमेल से किया गया था। OCCRP ने सवाल उठाया है कि क्या इसे उल्लंघन माना जाएगा या नहीं। और इसका जवाब तब तय होगा जब पता चले कि अहली और चांग प्रमोटर्स की तरफ से काम कर रहे हैं या नहीं।
अहली और चांग ने OCCRP की रिपोर्ट पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। द गार्जियन एक रिपोर्टर को दिए इंटरव्यू में OCCRP ने कहा कि चांग का कहना था कि उन्हें गुपचुप तरीके से अडानी ग्रुप के शेयरों को खरीदे जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
इस बीच अडानी ग्रुप ने एक बयान जारी कर इन आरोपों का खंडन किया है। ग्रुप ने कहा कि यह जॉर्ज सोरोस की मदद से चलने वाले संगठनों की हरकत लग रही है और विदेशी मीडिया का एक सेक्शन भी इसे हवा दे रहा है ताकि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के जिन्न को फिर से खड़ा किया जा सके। ये दावे एक दशक पहले बंद हो चुके मामलों पर आधारित हैं। ग्रुप ने कहा है कि उस समय ओवर इनवॉइसिंग, विदेशों में फंड ट्रांसफर करने, रिलेटेड पार्टी ट्रांजेक्शंस और एफपीआई के जरिए निवेश के आरोपों की जांच की गई थी। एक इंडिपेंडेंट एडजुकेटिंग अथॉरिटी और एक अपीलेट ट्रिब्यूनल ने इस बात की पुष्टि की थी कि कोई ओवर-वेल्यूएशन नहीं था और ट्रांजेक्शंस कानूनों के मुताबिक थे। मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने हमारे पक्ष में फैसला दिया था। इसलिए इन आरोपों की कोई प्रासंगिकता या आधार नहीं है।
गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च ने जनवरी में अडानी ग्रुप के बारे में एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें अडानी ग्रुप पर शेयरों की कीमत में छेड़छाड़ करने के गंभीर आरोप लगाए गए थे। अडानी ग्रुप ने इन आरोपों का खंडन किया था। उसका कहना था कि उसने हमेशा नियमों का पालन किया है। लेकिन इस रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आई थी और उसका मार्केट कैप 150 अरब डॉलर कम हो गया था। हालांकि हाल के दिनों में ग्रुप के शेयरों में तेजी आई है।