नई दिल्ली, 29 जून। भारत का कोयला क्षेत्र तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए कोयला उत्पादन को और बढ़ाने के निरंतर प्रयास कर रहा है। साथ ही, कोयला क्षेत्र भी पर्यावरण की देखभाल और वनों तथा जैव विविधता की रक्षा के उपायों पर जोर देने के साथ सतत विकास के मार्ग को अपनाने की दिशा में विभिन्न पहल कर रहा है।
विभिन्न सतत् गतिविधियों के हिस्से के रूप में, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने कोयला खदान झीलों का संरक्षण किया है, आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक चरित्र का रखरखाव किया है और संबंधित राज्य सरकारों एवं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की सहायता से प्रतिष्ठित रामसर सूची में ऐसी खदान झीलों को शामिल किया है।
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रामसर सूची में शामिल करने के लिए कोयला खदान झीलों की उपयुक्तता पर नोडल मंत्रालय, एमओईएफसीसी के साथ आर्द्रभूमि की पहचान पर चर्चा की गई थी। एमओईएफसीसी के मार्गदर्शन के अनुसार, सीआईएल ने रामसर सूची में शामिल करने पर विचार करने के लिए पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और मध्य प्रदेश राज्यों में पांच खदान गड्ढे वाली झीलों की पहचान की है।
सीआईएल रामसर सूचना पत्र (आरआईएस) तैयार करने की प्रक्रिया में है। इन खदान जल निकायों का नियमित रूप से पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों द्वारा दौरा किया जाता है। बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और अन्य मृदा नमी संरक्षण गतिविधियों के माध्यम से सीआईएल के प्रयासों के कारण इन जल निकायों के आसपास के वातावरण में सुधार हुआ है।
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इसके अलावा, कोयला मंत्रालय; विश्व बैंक, जीआईजेड और अन्य वैश्विक संस्थानों का समर्थन और सहायता प्राप्त कर रहा है, ताकि परित्यक्त खदानों को सुरक्षित, पर्यावरण की दृष्टि से स्थिर और व्यावसायिक उपयोग हेतु उपयुक्त बनाने के लिए उनका फिर से उपयोग किया जा सके। सौर पार्क, पर्यटन, खेल, वानिकी, कृषि, बागवानी, टाउनशिप आदि जैसे आर्थिक उपयोग के लिए पुनः हासिल की गई भूमि का फिर से से बेहतर उपयोग किया जाएगा।
विभिन्न देशों में खदान बंद करने के मामलों को संभालने में इन संस्थानों का लम्बा अनुभव अत्यधिक फायदेमंद होगा और भारतीय कोयला खदानों के फिर से उपयोग निर्धारित करने में सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपनाने की सुविधा प्रदान करेगा।
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