हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित परसा ओपन कास्ट कोयला खदान परियोजना को 21 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा स्टेज- II की स्वीकृति जारी की गई है। यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आबंटित है तथा एमडीओ अदानी इंटरप्रोइजेस को मिला है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने बताया कि इस खनन परियोजना से हसदेव अरण्य के 2 गांव पूरी तरह और 3 गांव आंशिक रूप से विस्थापित होंगे। 841 हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग एक लाख वृ़क्षों का विनाश होगा।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के पदाधिकारियों के अनुसार परसा खदान की वन भूमि डायवर्सन की प्रक्रिया फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों पर आधारित है। इसकी जांच और कार्रवाई की मांग को लेकर हसदेव क्षेत्र के लोगों द्वारा निरंतर आंदोलन जारी रखा गया है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने मांग की है कि आदिवासियों की आपत्तियों पर कोई संज्ञान लिए बिना सिर्फ अदानी कंपनी के दवाब में गैरकानूनी रूप से जारी की गई इस वन स्वीकृति तत्काल निरस्त किया जाए एवं फर्जी ग्रामसभाआें के प्रस्तावों की जांच कर दोषियों पर कार्रवाई की जाए।
फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव के आधार पर हासिल की गई वन स्वीकृति
आंदोलन के अनुसार परसा कोयला खनन परियोजना की स्टेज- I स्वीकृति 13 फरवरी, 2019 को केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जारी की थी जिस पर हसदेव अरण्य क्षेत्र के खनन प्रभावित ग्रामीणों ने आपति दर्ज कर इसे निरस्त करने की मांग की थी। प्रावधानुसार किसी भी परियोजना हेतु वन स्वीकृति के पूर्व “वनाधिकार मान्यता कानून 2006” के तहत वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमती आवश्यक है। ग्रामीणों का सपष्ट कहना है कि आज भी उनके वनाधिकार के दावे लंबित है और 24 जनवरी, 2018 ग्राम हरिहरपुर एवं 27 जनवरी, 2018 साल्ही एवं 26 अगस्त, 2017 को फतेहपुर गांव में दिखाई गई ग्रामसभाएं फर्जी थी। इसकी जांच के लिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपे गए हैं।
दवाब में पर्यावरण मंत्रालय ने लिया फैसला
पांचवी अनुसूची क्षेत्र और पेसा कानून के तहत ग्राम सभा के अधिकारों की धज्जियां उड़ा जिस परसा खदान को स्टेज-I स्वीकृति जारी की गई थी, जिसका लोगों ने लगातार विरोध किया। उसी प्रक्रिया को आगे बढ़ा कर बिना लोगों की शिकायतों को संज्ञान में लिए और प्रक्रियान्तर्गत केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के वन सलाहकार समिति की बैठक के बिना स्टेज-प्प् स्वीकृति जारी करना अपने आप में कई सवाल खड़े करता है।
सम्पूर्ण हसदेव अरण्य अपनी समृद्ध जैव विविधता, वनों का घनत्व और पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र होने के कारण वर्ष 2009 में नो-गो का इलाका था। वर्ष 2012 में जब परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना को स्टेज- I स्वीकृति जारी की गई थी तब उसमें भी यह शर्त थी कि हसदेव में नए किसी भी कोयला परियोजना को अनुमति नहीं दी जाएगी।
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