भिलाई (IP News). छत्तीसगढ़ में बस्तर के आंतरिक क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों में काम की तलाश में घर से बाहर निकलना वर्जित सा है और अनूठा समझा जाता है। सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र ने खदानों और इसके आसपास रहने वालों के लिए सीएसआर योजना के तहत बी.एस.सी नर्सिंग के लिये रावघाट और बस्तर के आसपास के इलाकों की विभिन्न समुदायों की कई लड़कियों को छात्रों के रूप में चुनकर यह तस्वीर को पलट दिया है। पी जी कॉलेज ऑफ नर्सिंग, भिलाई में नर्सिंग कर रही है ये दूरस्थ वनांचलों की लड़कियां।
इन लड़कियों-छात्रों को भिलाई इस्पात संयंत्र के खदान विभाग के सीएसआर विभाग द्वारा गोद लिया जाता है और उनकी उच्च शिक्षा और उनके नर्सिंग पाठ्यक्रम की पूरी अवधि के लिए भिलाई में उनके रहने व शिक्षा की पूरी व्यवस्था भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा प्रायोजित किया जाता है। शिक्षा पूरी होने के बाद कई लड़कियां भिलाई और आसपास के क्षेत्रों के अस्पतालों में नर्स के रूप में सेवा करने का विकल्प चुनती हैं, और कुछ अंतागढ़, नारायणपुर आदि के पास अपने मूल स्थानों में स्थानीय आबादी की सेवा के लिए वापस चली जाती हैं।
अपनी प्रशिक्षण अवधि के दौरान और कोर्स पूरा होने पर, ये युवा लड़कियां सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र जो आज राज्य का सबसे बड़ा कोविड अस्पताल है, में कोविड रोगियों की सेवा करके अपने कौशल का व्यवहारिक उपयोग कर रही हैं।
सरस्वती दुग्गा पिछले साल पीजी कॉलेज ऑफ नर्सिंग से शिक्षा पूरी की है। सुश्री दुग्गा ने जुलाई 2020 में जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र में इंटर्नशिप शुरू की और तब से मैटरनिटी, सर्जरी, मेडिसिन और कोविड वार्ड में काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हमें डॉक्टरों और नर्सों द्वारा दिया गया मार्गदर्शन और विभिन्न वार्डों में मरीजों की देखभाल से हमने जो सीखा है, उसने हमें स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए पर्याप्त विश्वास दिलाया है।
नारायणपुर के खडका गांव की रहने वाली सरस्वती की मां अपने ही गांव के सरकारी गर्ल्स हाई स्कूल में चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत हैं। जबकि उनके पिता एक किसान हैं। सुश्री दुग्गा ने कहा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं नर्सिंग करूंगी। लेकिन यहां मैं अब पीपीई किट पहन कर काम कर ऐसे मरीजों की देखभाल कर रही हूँ जिनको सांस लेने में कठिनाई हैं। डिस्चार्ज होने वाले मरीज हमारे साहस के लिए हमारी तारीफ करते हैं और कुछ तो यह भी कहते हैं कि किसी ने भी हमारी ऐसी देखभाल नहीं की होगी जैसे आप लोगों ने किया। उस समय हमें गर्व और संतोष महसूस होता है।
सुषमा मरकाम, जो पीजी कॉलेज ऑफ नर्सिंग की छात्रा भी हैं, ने दिसंबर 2020 में जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र में काम करना शुरू किया। उन्हें ट्रॉमा, सर्जिकल और चाइल्ड वार्ड में मरीजों की सेवा करने का अनुभव है। हमारे परिवार शुरू में हमारे बारे में कोविड रोगियों के साथ काम करने को लेकर आशंकित थे, लेकिन हमने अप्रैल 2021 में कोविड रोगियों की अत्यधिक भीड़ का भी सामना किया है और संभाला है। वे बताती है कि हम कोविड वार्डों में 7 दिनों के लिए रोटेशन पर तैनात हैं। उन्होंने कहा कि समय पर दवाएं देने और उनकी देखभाल करने के अलावा, हम मरीजों को यह भी सलाह देते हैं कि वे हाई शुगर लेवल से न डरें और उन्हें उचित आहार लेने की सलाह देते है।
सरिता पोटाई नारायणपुर जिले के अकाबेड़ा की रहने वाली हैं। 7 भाई-बहनों में दूसरी सबसे बड़ी, वह उन भाग्यशाली लोगों में से हैं जिन्हें पीजी कॉलेज ऑफ नर्सिंग में बीएससी नर्सिंग के लिए बीएसपी के सीएसआर विभाग द्वारा प्रायोजित और गोद लेने का मौका मिला है। मुझे अपना कर्तव्य निभाने में गर्व की अनुभूति होती है। उन्होंने कहा कि फ्लू क्लिनिक में काम करने और बाद में कोविड वार्ड में दवाएं और इंजेक्शन लगाने के साथ-साथ मैंने आक्रामक रोगियों से निपटना भी सीखा है। मैंने हमेशा जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र में काम करने का सपना देखा था और मुझे खुशी है कि मैं अपना सपना पूरा कर रही हूँ। उन्होंने कहा कि हमने अपनी वरिष्ठ नर्स को अस्पताल में देखकर बहुत कुछ सीखा है।
पीजी कॉलेज ऑफ नर्सिंग की चैथे वर्ष की छात्रा सुश्री झरना कश्यप को उम्मीद है कि अस्पताल में उनकी इंटर्नशिप की अवधि नवीनीकृत हो जाएगी। उसने वृद्ध पुरुष कोविड रोगियों के साथ काम किया है। शुरू में कोविड रोगियों के साथ काम करने से डरती थी, उसने अन्य नर्सों और बहनों के साथ मिलकर काम करके अपने डर पर काबू पा लिया। उन्होंने कहा कि मेरी शिक्षा का ध्यान रखने और मुझे सयंत्र के अस्पताल में काम करने का मौका देने के लिए मैं भिलाई इस्पात संयंत्र की आभारी हूँ।
अर्चना गावड़े ने साझा किया कि उन्होंने भिलाई इस्पात संयंत्र के डॉक्टरों को बहुत समय से नजदीकी से देखकर मरीजों की देखभाल की बारीकियों को सीखा। उन्होंने कहा कि हम ऑक्सीजन के स्तर की निगरानी करते हैं और संतृप्ति स्तर में सुधार के लिए उचित नींद की सलाह देते हैं। अर्चना के पिता एक किसान हैं जो अंतागढ़ के पास तडोकी गांव में गेहूं और सब्जियां उगाते हैं। वह गर्व से कहती हैं कि भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा गोद लिए जाने के बाद उनके गांव की 5 लड़कियों को नर्सिंग करने का मौका मिला है।
इन युवा नर्सों के लिए सेल-भिलाई इस्पात सयंत्र उनके जीवन में गेम-चेंजर साबित हुई है। उन्हें बस्तर में अपने दूरस्थ स्थानों से स्थानांतरित करने में मदद करना, उन्हें एक सुरक्षित वातावरण वाले शहर में कॉलेज जीवन का अनुभव करने का मौका देना, उनकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना, उनके कौशल को सुधारने में मदद करना, आत्मविश्वास पैदा करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर प्लांट के अस्पताल में मरीजों की सेवा करने का अवसर देकर सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र की माइन्स-सीएसआर विंग ने वास्तव में रावघाट के आसपास के क्षेत्रों से उनके और कई अन्य लोगों के जीवन को बदल दिया है।
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