नई दिल्ली, 19 अप्रेल। कोयला कामगारों का वेतन समझौता के लिए गठित ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज- 11 (जेबीसीसीआई) की चौथी बैठक 22 अप्रेल को होगी। बैठक का कोयला कामगारों को बेसब्री से इंतजार है। दरसअल इस बैठक में मिनिमम गारंटी बेनिफिट (एमजीबी) को लेकर चर्चा षुरू हो सकती है।
यूनियन द्वारा संयुक्त रूप से सौंपे गए चार्टर ऑफ डिमांड में 50 एमजीबी की मांग रखी गई है। जेबीसीसीआई सदस्य यह देखेंगे कि प्रबंधन एमजीबी को लेकर क्या ऑफर देता है। प्रबंधन के ऑफर के बाद ही आगे की चर्चा होगी।
इधर, बताया गया है कि सीआईएल प्रबंधन यूनियन की एमजीबी की मांग पर कतई सहमत नहीं है। इसके पीछे की वजह केन्द्र सरकार है। सरकार की मंषा 10 साल के वेतन समझौते की कहीं अधिक है। हालांकि सीआईएल द्वारा तीसरी बैठक में 10 साल के वेतन समझौते के ऑफर को ठुकरा दिया गया। वेतन समझौता पांच वर्ष के लिए इस पर सहमति बन चुकी है।
कोल एक सेक्टर है जहां 20 प्रतिषत एमजीबी पर वेतन समझौता हुआ था। कोल सेक्टर के अलावा इस दौर में करीब 19 पब्लिक सेक्टर या इससे संबंधित औद्योगिक प्रतिष्ठानों में जो वेतन समझौते हुए हैं वहां एक कंपनी (17 प्रतिषत) को छोड़ किसी में भी 15 फीसदी से अधिक एमजीबी नहीं दिया गया है। 10 से 15 प्रतिषत के बीच ही वेतन समझौते किए गए हैं। 80 फीसदी संस्थानों में 10 साल के लिए वेतन समझौता हुआ।
इसलिए माना जा रहा है कि कोल सेक्टर में इसी औसत पर वेतन समझौता करने सरकार का सीआईएल पर दबाव है। हलांकि कोयला उद्योग की अन्य सार्वजनिक कंपनियों के मुकाबले स्थिति कुछ अलग है। क्योंकि कोल सेक्टर में यूनियन कही अधिक मजबूत है। यहां हड़ताल होने से बिजली, स्टील सहित अन्य सेक्टर पर प्रभाव पड़ता है। अर्थव्यवस्था डगमगाने की स्थिति रहती है। ऐसी स्थिति सरकार पर एक दबाव भी रहेगा। अब जेबीसीसीआई पर दारोमदार होगा कि इसके सदस्य एमजीबी के आंकड़े को पिछले वेतन समझौते से कितने ऊपर तक ले जाते हैं।
इस संदर्भ सीटू नेता डीडी रामानंदन ने industrialpunch.com से कहा कि बेहतर वेतन समझौता तभी होगा जब कि चारों यूनियन एकजुटता के साथ प्रबंधन पर दबाव बनाए। श्री रामानंदन ने कहा कि सीआईएल के ऑफर के बाद ही आगे बात हो सकेगी।
यहां बताना होगा कि जेबीसीसीआई की पहली बैठक 17 जुलाई को हुई थी, लेकिन इस बैठक में वेतन समझौते को लेकर किसी प्रकार की कोई चर्चा नहीं हो सकी थी। 15 नवम्बर हो आयोजित हुई द्वितीय बैठक में भी वेतन समझौते को लेकर सार्थक चर्चा की शुरुआत नहीं हो सकी थी।
16 फरवरी का आयोजित हुई तीसरी मीटिंग में वेतन समझौता पांच वर्ष के लिए ही होगा यह तय हुआ था। एमजीबी को लेकर यूनियन की मांग पर प्रबंधन ने वित्तीय संकट का रोना रोया था।
यूनियन ने संयुक्त रूप से सौंपे गए चार्टर ऑफ डिमांड में 50 फीसदी मिनिमम गारंटी बेनिफिट (एमजीबी) की मांग रखी है। प्रबंधन ने बताया था कि 5 फीसदी एमजीबी देने पर कंपनी पर सालाना 2369 करोड़ रुपए का वित्तीय भार आएगा। इसी तरह 7 प्रतिशत पर 2988, 10 प्रतिशत पर 3916, 15 प्रतिशत पर 5464, 20 प्रतिशत पर 7011 तथा 25 फीसदी एमजीबी देने पर 8558 करोड़ रुपए सालाना वित्तीयभार पड़ेगा। यदि यूनियन की मांग के अनुसार 50 प्रतिशत एमजीबी दिया जाता है तो पांच साल में औसतन 54 हजार 958 करोड़ रुपए का वित्तीयभार कंपनी पर पड़ेगा।
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