FSA नवीनीकरण नहीं किया तो कोयला आधारित उद्योगों में तालाबंदी की नौबत न आ जाए, एसईसीएल की मनमानी रोकने राज्य सरकार को करना होगा हस्तक्षेप

3 सितंबर, 2021 को ही एसईसीएल ने सीपीपी के लिए एक्सक्लूसिव्ह ऑक्शन का नोटिस जारी किया है जिससे उद्योगों को बमुश्किल 10 फीसदी कोयला ही मिल पाएगा। राज्य की सीपीपी की क्षमताओं के सामने यहा आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है।

छत्तीसगढ़ के कैप्टिव पावर प्लांट (सीपीपी) आधारित उत्पादक उद्योगों के साथ कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) के नवीनीकरण से मना कर दिया है। राज्य की कंपनियों के साथ यह विडंबना तब है जबकि छत्तीसगढ़ राज्य देश के 18 फीसदी कोयले का उत्पादन करता है। हालांकि अब यह खबर आ रही है कि एसईसीएल सीपीपी को कोयला ई-ऑक्शन के आधार पर देने के लिए तैयार तो है. लेकिन नियंत्रित तरीके से।

3 सितंबर, 2021 को ही एसईसीएल ने सीपीपी के लिए एक्सक्लूसिव्ह ऑक्शन का नोटिस जारी किया है जिससे उद्योगों को बमुश्किल 10 फीसदी कोयला ही मिल पाएगा। राज्य की सीपीपी की क्षमताओं के सामने यहा आंकड़ा ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है।

छत्तीसगढ़ के सीपीपी और नागरिकों के हितों की अनदेखी कर एसईसीएल कोयले की आपूर्ति लगातार बाहर के राज्यों को कर रही है। इसका दुष्प्रभाव यह है कि जो छत्तीसगढ़ के सीपीपी एक के बाद एक बंद होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। जो सीपीपी फिलहाल उत्पादन में हैं उनके पास तीन-चार दिन का कोयला बचा रह गया है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्र भूपेश बघेल के नेतृत्व में यदि तत्काल इस मुद्दे को नहीं सुलझाया गया तो राज्य में औद्योगिक अशांति की स्थितियां निर्मित होने की आशंका है। यदि उद्योगों में कोयले के अभाव में तालाबंदी हुई तो हजारों को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ेगा। देश में बेरोजगारी के आंकड़े में इससे वृद्धि ही होगी।

छत्तीसगढ़ के नागरिकों का स्पष्ट यह मानना है कि प्रदेश के उद्योगों को संसाधनों की कृत्रिम कमी के चलते किसी भी हालत में बंदी के मुहाने पर नहीं जाने दिया जाएगा। राज्य के संसाधनों पर छत्तीसगढ़ की जनता का पहला अधिकार है। किसी भी सूरत में उनके इस अधिकार पर प्रदेश के बाहर के उद्योगों की सर्वोच्चता को स्वीकार नहीं किया जाएगा। एसईसीएल प्राथमिकता के आधार पर प्रदेश के उद्योगों को उनकी जरूरत का पूरा कोयला देने के लिए बाध्य है।

कोल इंडिया लिमिटेड और उसकी अनुषंगी कंपनी एसईसीएल कहती हैं कि उनके पास कोयले का उत्पादन पर्याप्त है परंतु इसके उलट अपने उपभोक्ताओं को यह सलाह भी देती हैं कि वे अपने इंडिपेंडेंट पावर प्लांट (आईपीपी) के लिए ब्लेंडेड कोल का इस्तेमाल करें। इसके लिए उपभोक्तओं को कोयले के आयात की सलाह दी जाती है। यदि उपभोक्ता कंपनियां ऐसा करें तो देश की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी। कोयले का आयात सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति की भावना के विरुद्ध है।

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बिजली उत्पादन के क्षेत्र में ऐसा माना जाता है कि यदि विद्युत संयंत्र के पास तीन हफते से कम का कोल स्टॉक है तो यह खतरे की स्थिति है। भारत को यदि लगातार प्रगति करनी है तो इसे अपनी स्थापित ऊर्जा उत्पादन 170 गीगावॉट को बढ़ाकर वर्ष 2025 तक 400 गीगावॉट करना होगा।

देश में कोयले की मांग और आपूर्ति में 143 मिलियन टन का अंतर है जिसकी आपूर्ति आयात से की जाती है। इसी साल अप्रैल में देश के तापीय विद्युत संयंत्रों को 32 मिलियन टन कोयले की आपूर्ति की गई। यह मांग से करीब 4 मिलियन टन कम रहा। देश में कोयले का भंडार 250 बिलियन टन उपलब्ध है। यह भंडार दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा है। कोल इंडिया के कैप्टिव ब्लॉक की भंडारण क्षमता 100 बिलियन टन है यानी 40 फीसदी।

कोयले के खदानों पर कोल इंडिया के एकाधिकार का ही परिणाम है कि आज देश के सीपीपी आधारित उद्योग कोयले की कमी के चलते अव्यवस्थाओं का शिकार हो रहे हैं। केंद्र सरकार की अपनी प्रतिबद्धताएं हैं जिसके कारण वह हमेशा ही सीपीपी के बजाए आईपीपी को तरजीह देती हैं। सीपीपी आधारित उद्योगों को कोयला देने की जिम्मेदारी से कोल इंडिया और उसकी अनुषंगी कंपनियां बच रही हैं जो सीपीपी आधारित उद्योगों के भविष्य के लिए खतरनाक है। जो उद्योग-धंधे देश की अर्थव्यवस्था की निरंतरता सुनिश्चित करते हैं उन्हीं के साथ सौतेला व्यवहार देश के आर्थिक स्वास्थ्य का बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है।

लगातार छह सालों से घरेलू कोयले की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ लेकिन फरवरी, 2021 में कीमतों में 30 फीसदी का उछाल आया। कोरोना के दुष्प्रभाव के बाद जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही है, वैसे-वैसे कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल आया है। पिछले एक साल में कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। दूसरी ओर पर्यावरणीय मंजूरी के अभाव में कोल इंडिया लिमिटेड नए खदानों को खोलने की दिशा में काम ही नहीं कर पा रही है।

ये सभी तथ्य इस बात की ओर स्पष्ट इशारा है कि यदि सीपीपी घरेलू कोयले के कृत्रिम अभाव के दबाव में कोयला आयात करेंगे तो उनके उत्पादन लागत में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाएगी जिससे उनके अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग जाएगा। आयात की प्रक्रिया में महीनों का समय लगेगा, सो अलग।

ऐसे में व्यावहारिकता यही है कि जो कोयला छत्तीसगढ़ प्रदेश के खदानों से निकाला जा रहा है उसे अधिक मुनाफ के लिए बाहर के प्रदेशों में भेजने की बजाए तत्काल छत्तीसगढ़ प्रदेश के ही सीपीपी आधारित उद्योगों के लिए आरक्षित कर लिया जाए। आखिर छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पादित कोयले और बिजली पर पहला अधिकार यहीं के निवासियों का है। प्रदेश के औद्योगिक हितों की रक्षा के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ठोस पहल करनी होगी।

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