नई दिल्ली। गुरुवार को आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन के 96वें वार्षिक अधिवेशन में रेल मंत्री अश्वनि वैष्णव ने कहा कि हमें सरकार की भावनाओं को समझना होगा, उसी के अनुरूप काम करके हम देश की तरक्की में अपना योगदान दे सकते हैं। अधिवेशन में एआईआरएफ के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने साफ कर दिया कि भारतीय रेल की रक्षा के लिए रेल कर्मचारी अपनी जान दे देंगे, लेकिन रेल को नीलाम नहीं होने देंगे।
रेल मंत्री इस अधिवेशन में वर्चुअल तरीके से जुड़े। रेल मंत्री ने भारतीय रेल पर अधिक फोकस नहीं किया, बल्कि ज्यादातर समय सरकार की भावनाओं पर चर्चा की और कहा कि आज हमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रास्ते पर चलना होगा, जिनका मंत्र है, सबका साथ सबका विकास।
आज सरकार की मंशा और सोच है कि हम किसानों, दलितों, वंचितों के जीवन में कैसे सुधार लाकर उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा के साथ जोड़ सकते हैं। ये तभी संभव है जब हम अपने से पहले राष्ट्र को सामने रखेंगे। जिस दिन हमारे भीतर “ नेशन फर्स्ट “ की भावना का उदय होगा, हम देश की तरक्की में अपना योगदान और बेहतर तरीके से दे सकेंगे।
रेल मंत्री ने कहाकि हमें संकीर्ण सोच से हर हाल में बाहर आना ही होगा। देशहित में हो सकता है कि रेल कर्मचारियों को भी समझौता करना पड़े और अफसरों को भी। श्री वैष्णव ने कहा कि मैंने आज अपने दिल की बात आप सभी के साथ साझा किया है।
इसके पूर्व एआईआरएफ के महामंत्री शिवगोपाल मिश्रा ने अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया कि आज भारतीय रेल को नीलाम करने की साजिश की जा रही है, रेलकर्मचारी जान दे देंगे लेकिन रेल को नीलाम तो नहीं होने देंगे। महामंत्री ने कहाकि अगर प्राइवेट लोग सक्षम हैं ट्रेन चलाने में तो वो अपनी पटरी बिछाएं, अपनी ट्रेन लाएं और उसका संचालन करें। ये संभव नहीं हो सकता है कि मेहनत रेल कर्मचारी करें और व्यावसायिक गतिविधियां प्राइवेट पार्टनर के हवाले कर दिया जाए।
उन्होंने कहा कि डेडीकेटेड फ्रेट कांरीडोर का एक बड़ा हिस्सा लगभग तैयार है, सरकार की साजिश है कि इस पर प्राइवेट सेक्टर की गुड्स ट्रेन का संचालन हो, स्टेशन डेवलपमेंट अथारिटी के जरिए 100 रेलवे स्टेशन का कामर्शियल इस्तेमाल करने की भी तैयारी है। कॉनकोर और प्रिंटिग प्रेस पर भी सरकार की बुरी नियत है, ये सब कुछ चलने वाला नहीं है।
महामंत्री ने कोरोना महामारी की चर्चा करते हुए कहाकि इस दौरान ड्यूटी करते हुए हमारे तीन हजार से अधिक रेल कर्मियों की मौत हो गई, हालाकि रेल मंत्रालय ने कोशिश की है कि सभी मृतकों के आश्रितों को नौकरी दी जा सके, अब तक लगभग दो हजार लोगों को नौकरी दे भी दी गई है, कुछ लोग बाकी है, उसकी प्रक्रिया भी चल रही है। महामंत्री ने कहाकि कोरोना वारियर्स जिनकी ड्यूटी के दौरान मौत हुई, उनके परिवार को 50 लाख रुपये एक्सग्रेसिया देने की मांग फेडरेशन ने की है। अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ जो दुखद है।
फेडरेशन के अध्यक्ष डा. एन कन्हैया ने सरकार की कथनी और करनी में अंतर बताते हुए कहा कि एक तरह दावा किया जाता है कि भारतीय रेल का निजीकरण नहीं होगा, लेकिन प्रधानमंत्री सार्वजनिक कार्यक्रमों में निजीकरण की पैरवी करते हैं। ऐसे में सरकार रेल कर्मचारियों का भरोसा खोती जा रही है। सरकार को निजीकरण और निगमीकरण के मामले में रेल कर्मियों को स्पष्ट बताना चाहिए कि आखिर सरकार की मंशा क्या है, छिपे एजेंडे पर चलकर भारतीय रेल का विकास संभव नहीं है।
वार्षिक अधिवेशन को संबोधित करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष जे आर भोसले ने कहा कि रेल कर्मियों से बढ़कर राष्ट्रभक्त कौन हो सकता है। मुश्किल समय में सबसे आगे रेल के कर्मचारी ही होते हैं। उन्होंने कहाकि कोरोना महामारी के दौरान प्राइवेट आपरेटर्स ने अपनी ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया, जबकि भारतीय रेल के कर्मचारियों ने इस दौरान दोगुनी मेहनत कर सरकार का खजाना भरने का काम तो किया ही, साथ ही आक्सीजन स्पेशल ट्रेन चलाकर देश भर में आक्सीजन की कमी को दूर किया, इतना ही नहीं श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के जरिए लाखों प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का काम किया।
इस अधिवेशन को रेलवे बोर्ड सीईओ- चेयरमैन सुनीत शर्मा ने संबोधित करते हुए रेल कर्मियों की तारीफ की और कहा कि मैंने महसूस किया है जब चुनौती का समय होता है तो हमारे साथी रेल कर्मी और जोश जज्बे के साथ काम करते हैं। इस अधिवेशन को कई और वरिष्ठ अधिकारियों ने भी संबोधित किया।
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