भारत के पहले समर्पित खगोल विज्ञान अभियान-एस्ट्रोसैट दुरबीन ने आज तड़के पांच सौवीं बार ब्लैक होल बनते हुए देखा। ब्लैक होल, दुनिया भर के खगोलविदों की गहन जांच का विषय रहा है।
हालांकि, भारतीय वैज्ञानिक स्वदेशी रूप से निर्मित अंतरिक्ष दूरबीन- एस्ट्रोसैट का उपयोग करके ब्लैक होल के जन्म का अध्ययन करने में काफी प्रगति कर रहे हैं।
कैडमियम जिंक टेलुराइड इमेजर-सीजेडटीआई के वर्तमान प्रधान अन्वेषक प्रोफेसर दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है।
28 सितंबर 2015 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एक हजार पांच सौ 15 किलोग्राम के साथ एस्ट्रोसैट का प्रक्षेपण किया गया था। यह दुनिया की सबसे संवेदनशील अंतरिक्ष दुरबीन है। जो पांच उपकरणों से मिलकर बनी है।
यह एक साथ पराबैंगनी, ऑप्टिकल और एक्स-रे विकिरण में ब्रह्मांड का अध्ययन कर सकती है। इनमें से एक उपकरण कैडमियम जिंक टेलुराइड इमेजर-सीजेडटीआई है, जो ब्लैक होल के जन्म का पता लगाता है। सीजेडटीआई का एक अनूठा पहलू एक्स-रे के ध्रुवीकरण को मापने की क्षमता है।
आकाशवाणी समाचार से विशेष बातचीत में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बम्बई के एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर वरुण भालेराव ने कहा कि इसरो के एस्ट्रोसैट ने एक बार फिर इस क्षेत्र में भारत के कौशल को सिद्ध किया है।
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