नई दिल्ली, 16 फरवरी। कोयला कामगारों के 11वें वेतन समझौता के लिए गठित ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज (जेबीसीसीआई) की तृतीय बैठक ने इसका संकेत दे दिया है कि सम्मानजनक एमजीबी के लिए बहुत ज्यादा मशक्कत करनी होगी।
सीआईएल प्रबंधन ने जेबीसीसीआई सदस्यों के समक्ष दिए गए प्रेजेंटेशन में प्रतिशवार आंकड़ों के जरिए बताया कि कंपनी पर कितना वित्तीय भार पड़ेगा। यानी प्रबंधन ने आर्थिक स्थिति का रोना रोने का काम किया है।
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यहां बताना होगा कि यूनियन ने संयुक्त रूप से सौंपे गए चार्टर ऑफ डिमांड में 50 फीसदी मिनिमम गारंटी बेनिफिट (एमजीबी) की मांग रखी है। प्रबंधन ने बताया कि 5 फीसदी एमजीबी देने पर कंपनी पर सालाना 2369 करोड़ रुपए का वित्तीय भार आएगा। इसी तरह 7 प्रतिशत पर 2988, 10 प्रतिशत पर 3916, 15 प्रतिशत पर 5464, 20 प्रतिशत पर 7011 तथा 25 फीसदी एमजीबी देने पर 8558 करोड़ रुपए सालाना वित्तीयभार पड़ेगा। यदि यूनियन की मांग के अनुसार 50 प्रतिशत एमजीबी दिया जाता है तो पांच साल में औसतन 54 हजार 958 करोड़ रुपए का वित्तीयभार कंपनी पर पड़ेगा।
इधर, यूनियन ने कंपनी के 10 साल के वेतन समझौते के प्रस्ताव को खारिज करने और प्रबंधन को पांच साल के लिए ही वेतन समझौता किए जाने के लिए तैयार कर लिया। मामला अब एमजीबी पर अटका है। प्रबंधन की मंशा तो 10वें वेतन समझौते से 8 आठ प्रतिशत कम यानी 5 फीसदी एमजीबी देने की है। हालांकि यूनियन को यह किसी भी स्थिति में मंजूर नहीं होगा। दरअसल प्रबंधन एमजीबी को लेकर खुलकर अपनी बात नहीं रख रहा है। आंकड़ों को सामने रख वित्तीयभार का रोना रोया जा रहा है।
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बैठक में एक और बात रखी गई कि वेतन समझौता डीपीई गाइडलान के तहत हो और उप समितियों का गठन हो। यूनियन ने पुरजोर तरीके से इसे खारिज कर दिया।
बहरहाल, अब यूनियन को पुरी एकजुटता के साथ एमजीबी के लिए लड़ाई लड़नी होगी। चौथी बैठक अप्रेल में होगी, लेकिन इसकी तारीख निश्चित नहीं की गई है।
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