नई दिल्ली, 11 अगस्त। भारत के कोल सेक्टर में जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन (Just Energy Transition) का मुद्दा फिर सामने आया है। 22 जुलाई, 2024 को राज्यसभा में सांसद बाबूभाई जेसंगभाई देसाई ने पूछा था कि क्या सरकार कोयला आधारित ऊर्जा को 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में परिणत करने के लिए उठाए गए कदमों पर विशेष बल देते हुए आईफॉरेस्ट रिपोर्ट में उल्लिखित जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन प्लान पर विस्तार से जानकारी देगी?
इस सवाल पर कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी (Coal Minister G Kishan Reddy) ने लिखित जवाब प्रस्तुत करते हुए बताया था कि कोयला मंत्रालय ने जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन प्लान पर ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया है।
इसके पहले भी पूर्व कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने 7 दिसंबर, 2023 को लोकसभा में कहा था कि फिलहाल सरकार की जस्ट ट्रांजिशन (न्यायोचित परिवर्तन) पॉलिसी शुरू करने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा था, ‘निकट भविष्य में कोयले से ट्रांजिशन नहीं हो रहा है’ और भले ही नवीकरणीय ऊर्जा पर जोर दिया जा रहा हो, लेकिन देश के ‘ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण रहने वाली है’।
इसके बाद 12 दिसंबर, 2023 को बिजली मंत्रालय, नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) और सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी एजेंसी (सीईए) के अधिकारियों के बीच एक बैठक हुई। बैठक में ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने निर्देश दिया कि 2030 तक और थर्मल पावर इकाइयों को रिटायर न किया जाए। बल्कि जो संयंत्र रिटायर होने की कगार पर हैं उनके कार्यकाल में विस्तार करने के उपाय किए जाएं। क्योंकि इस दशक में देश में ऊर्जा की मांग बढ़ सकती है।
दरअसल, जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन का विषय विश्व पटल पर आ चुका है। इस पर बात करने की इसलिए जरूरत है, क्योंकि सैकड़ों कोयला खदानें और बिजली संयंत्र पहले ही बंद हो चुके हैं और सवाल उठता है कि उनके बंद होने के बाद क्या हुआ? आने वाले समय में खदानें और पॉवर प्लांट बंद होंगे तो क्या होगा?
कोयला मंत्रालय के अनुसार लगभग तीन सौ कोयला खदानें बंद हो चुकी हैं। इनमें से अधिकांश कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा संचालित थीं। केन्द्रीय विद्यफत प्राधिकरण (CEA) की रिपोर्ट देखें तो थर्मल पावर स्टेशनों की 259 इकाइयां बंद हो चुकी हैं। इनमें 191 इकाइयां (जिनकी क्षमता लगभग 17 गीगावाट थी) कोयले और लिग्नाइट पर चल रही थीं। एक रिपोर्ट के अनुसार इसमें से अधिकांश कोयले के भंडार (या बिजली संयंत्रों के मामले में कोयले की आपूर्ति) में कमी या वित्तीय कारणों से बंद हुए हैं। राष्ट्रीय विद्युत् योजना में कोयला आधारित ऐसे विद्युत संयंत्रों को सूचीबद्ध किया गया, जिन्हें 2022 2027 के बीच सेवानिवृत्त किया जाना है। इनकी कुल क्षमता 4.6 गीगावाट से अधिक है। हालांकि बाद में 2030 तक विद्युत संयंत्रों को बंद नहीं करने संबंधि एक निर्देश जारी किया गया।
2070 तक नेट-जीरो तक पहुंचने के लिए भारत को किस पैमाने पर कोयले का उपयोग कम करने की जरुरत है, भले ही ऐसा तुरंत न किया जाए। यदि सरकार यह सपष्ट रूप से स्वीकार करती है कि भविष्य में कोयला-जनित ऊर्जा का उपयोग कम हो जाएगा, तो फिर क्यों देश के पास कोई स्पष्ट राष्ट्रव्यापी जस्ट ट्रांज़िशन रणनीति नहीं है?
वहीं ज्यादातर कोयला मजदूर भी इसकी जरूरत नहीं समझते। हालांकि बीते साल इंटक ने जस्ट ट्रांज़िशन को लेकर एक कार्यक्रम जरूर किया था। इधर, भारत कोयले पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इसलिए सरकार जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन जैसे विषय पर बात नहीं करना चाहती है। सरकार ने विश्व स्तर पर इसको लेकर चल रहे प्रयासों का समर्थन नहीं किया है।
क्या है जस्ट ट्रांज़शिन?
जस्ट ट्रांज़शिन उस प्रक्रिया को नाम दिया गया है, जो नेट जीरो एमिशन हासिल करने के लिए कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं, कोयला खदानों, आदि को बंद करने के लिए तैयार की गई है। सही मायने में दखा जाये, तो प्रक्रिया को अंतिम रूप अभी तक नहीं दिया गया है।