लता मंगेशकर (1929-2022) : तुम मुझे यूं, भुला ना पाओगे…

लता मंगेशकर का न सिर्फ हिंदी फिल्मों के पार्श्व गायन में सबसे सुरीला नाम रहा है बल्कि हिंदी सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के और भारत रत्न से सम्मानित व्यक्तित्व थीं।

”मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे..” इस गीत को अपनी आवाज देकर अमर कर गईं महान गायिका लता मंगेशकर। भारतीय संगीत की एक छत्रप सम्राज्ञी देश की मशहूर गायिका और स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया। आज रविवार सुबह मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया। वह 92 साल की थीं। उन्हें 8 जनवरी को कोविड-19 पॉजिटिव होने के बाद अस्पताल ले जाया गया था। उनके निधन का समाचार सुनते ही पूरा देश शोकाकुल हो गया है। वहीं केंद्र सरकार ने दिग्गज गायिका लता मंगेशकर के निधन पर दो दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।

हिंदी फिल्मों के पार्श्व गायन में सबसे सुरीला नाम

लता मंगेशकर का न सिर्फ हिंदी फिल्मों के पार्श्व गायन में सबसे सुरीला नाम रहा है बल्कि हिंदी सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के और भारत रत्न से सम्मानित व्यक्तित्व थीं। उन्होंने 1 हजार से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों में पार्श्व गायन का कार्य किया।

पिता से मिली अनमोल धरोहर

लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। इनके पिता दीनानाथ मंगेशकर शास्त्रीय गायक थे और नाटकों में अभिनय किया करते थे। लता मंगेशकर अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं।

5 वर्ष की आयु से ही गाना सीखना किया शुरू

लता मंगेशकर ने 5 वर्ष की आयु से ही अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से गाना सीखना और फिर उनके नाटकों में काम करना भी आरंभ किया। वे पढ़ने के लिए विद्यालय नहीं गईं। अपने पिता और अपने गुरुओं द्वारा दी गई गायन की शिक्षा में उन्होंने आकाशवाणी को बताया था, मेरे पिताजी की ड्रामा कंपनी थी और वे उसमें काम करते थे। वे वैसे क्लासिकल भी गाते थे और उन्होंने ही मुझे क्लासिकल म्यूजिक की शिक्षा दी। एक दिन ऐसा हुआ कि उनके एक शिष्य रियाज कर रहे थे, तो मेरे पिताजी ने उन्हें कहा कि तुम थोड़ी देर इस राग पर रियाज करो, मैं थोड़ी देर में आता हूं। उस समय मैं बाहर बरामदे में खेल रही थी तो उनके शिष्य जो गा रहे थे वो थोड़ा सा गलत गा रहे थे। मैंने जाकर उन्हें ठीक किया। मैंने उन्हें बताया कि ये राग ऐसा नहीं बल्कि ऐसे होगा।

…और कुछ यूं हुई उनके हुनर की पहचान

उस समय मेरे पिताजी ने बाहर से यह सब सुना। उस वक्त मेरे पिताजी ने मुझे कुछ नहीं कहा। इसके बाद मेरी मां को रात को बुलाकर उन्होंने कहा कि इतना अच्छा सिंगर घर में है और मैं बाहर लोगों को सिखा रहा हूं तो ये तो कोई खास अच्छी बात नहीं है। दूसरे दिन मेरे पिताजी ने मुझे सुबह उठाकर कहा कि बैठो मैं तुम्हें गायन सिखाता हूं। पिताजी के इंतकाल के बाद अमान अली खान साहब और अमानत खां साहब से भी मैंने गायन सीखा है। सबसे पहले में अपने पिता को ही इसका श्रेय देती हूं। मेरा जो नाम हुआ उसके पीछे उनका ही आशीर्वाद है।

13 वर्ष की उम्र में कंधों पर आ गई बड़ी जिम्मेदारी

जब लता मंगेशकर मात्र 13 वर्ष की थी तो उनके पिता का निधन हो गया और उन्हें परिवार का बोझ उठाने के लिए गायकी को व्यावसायिक रूप में अपनाना पड़ा। 1942 में मराठी फिल्म ‘पहली मंगला गौर’ में एक छोटा सा रोल मिला और उन्होंने इसमें एक गीत भी गाया। 1943 में उन्होंने अपना पहला हिंदी गीत गाया। यह मौका उन्हें उनके पिता के मित्र विनायक दामोदर कर्नाटिकी ने दिया था।

1945 में हिंदी फिल्मों में पार्श्व गायन किया आरंभ

1945 में लता मंगेशकर मुंबई आ गई। जहां उन्होंने हिंदी चलचित्रों में पार्श्व गायन करना आरंभ किया। वे यहा संगीत निर्देशक वसंत देसाई और गुलाम हैदर के सम्पर्क में आईं। उन्होंने 1946 में फिल्म ”सुभद्रा” और 1948 में फिल्म ”मजबूर” में गीत गाए।

अपने गाए गीतों को लेकर होती थी बेहद रोमांचित

अपने आरंभिक दिनों में वे अपने गाए गीतों को लेकर कितनी रोमांचित होती थी उन्होंने इस बारे में बताया था कि ”मैंने जब पहले-पहले रिकॉर्डिंग की थी और मेरा पहला रिकॉर्ड आया था तो मैं रेडियो के पास बैठी रहती थी कि कहीं फरमाइश में वो बजे और कहीं सुनूं मैं अपनी आवाज। पर अब मेरे इतने गाने बजते हैं कि मेरे ऊपर इसका कोई खास असर नहीं होता है।”

गाने का मूड समझने के लिए सीखी उर्दू जुबान

उस समय के हिंदी फिल्मों के गीत उर्दू शब्दों से भरे होते थे। इसलिए लता मंगेशकर ने उर्दू भाषा भी सीखी और गीत के भावों को समझना और समझ कर गाना भी आरंभ किया जिससे उनका गायन निखरने लगा। इस विषय में लता मंगेशकर ने कहा था ” आर्टिस्ट के लिए सबसे जरूरी चीज है कि गाने का मूड क्या है, वो समझ ले और कविता जो होती है उसे समझ कर गाना बहुत जरूरी होता है। शुरू-शुरू में मुझे मास्टर साहब ने कहा था कि मेमसाहब पहले आप गाने का मतलब जो है उसे समझ लिया करो और फिर उसे गाओ। तो वो मुझे याद रहा और उस वक्त से मैंने यह शुरू किया कि जो गाने का मतलब है पहले मैं उसे समझ लेती थी और फिर मैं महसूस करती हूं, जब भी मैं गाती हूं कि अगर मैं वो कैरेक्टर होती और मैं इस तरह अगर सिचुएशन मेरे साथ पेश आती तो मैं क्या करती। यही सोचकर मैं गाती हूं।”

नूरजहां के अंदाज में गाना किया शुरू, फिर बदली अपनी गायन शैली

लता मंगेशकर ने आरंभ में उस समय की सुप्रसिद्ध गायिका नूरजहां के अंदाज में गाना आरंभ किया और जब उनकी भेंट नूरजहां से हुई तो उन्होंने नूरजहां के सुझाव को मानते हुए अपनी गायन शैली बदल दी। इस संबंध में लता मंगेशकर कहती हैं कि “नूरजहां जी मुझे पहली मर्तबा कोल्हापुर में मिली थी जब मैं 15 साल की थी। मैं जिस कंपनी में काम करती थी वहां एक हिंदी पिक्चर वही प्रोड्यूसर बना रहे थे जिसमें नूरजहां जी हीरोइन थीं और मैं एक छोटी सी लड़की का रोल कर रही थी। जब मैं पहली मर्तबा उनको स्टूडियो में मिलने गई तो नेचुरली मुझे तो उनके लिए बहुत ही ज्यादा इज्जत और मैं उनका गाना बहुत ही ज्यादा पसंद करती हूं, तो उस समय मैं एक दम चुप हो गई और वहां बैठी रही। तो हमारे प्रोड्यूसर ने आकर कहा नूरजहां जी ये लता हैं और बहुत अच्छा गाती हैं। उस पर नूरजहां जी ने कहा कि भई तब तो हम भी सुनेंगे तो मैंने उनको एक क्लासिकल चीज जय-जयवंती राग में सुनाई थी। इस पर वे बहुत खुश हुईं और कहने लगी कि मेहनत करो, अगर मेहनत करोगी तो तुम भी हमारी तरह सिंगर बन जाओगी। मैंने उनकी यह बात याद रखी। उसके बाद मैं उनसे ज्यादा मिल नहीं सकी। एक मर्तबा मैं उनसे वाघा बॉर्डर पर मिली थी। हम लोग वहां एक-आधा घंटा मिल सके थे। उसके बाद फिर मेरी और उनकी मुलाकात नहीं हुई लेकिन इसके बाद हम टेलीफोन पर बातें किया करते थे। नूरजहां मुझे हमेशा प्यार करती रही हैं। फिल्म म्यूजिक में उनके गाने सुन-सुन कर ही मैंने कैसे बोल कहने चाहिए ये सब मैंने सीखा है और उनको बेहद पसंद करती रही हूं।”

नामी संगीत निर्देशकों के साथ किया काम

लता मंगेशकर का गाया 1949 में आई फिल्म ”महल” का गीत ”आएगा आने वाला बहुत प्रसिद्ध हुआ। इसके संगीत निर्देशक खेमचंद प्रकाश थे। इसके बाद तो 1950 के दशक में लता मंगेशकर ने नामी संगीत निर्देशकों अनिल बिस्वास, गुलाम हैदर, शंकर जयकिशन,नौशाद, सचिन देव बर्मन, हुस्नलाल भगतराम, सी. राम चंद्र, सलिल चौधरी, खय्याम, रवि, रोशन, कल्याण जी आनंद जी, मदन मोहन आदि के साथ गीत रिकॉर्ड किए।

लता दीदी के सुर की पकड़ के बारे में उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने कहा था…

लता मंगेशकर ने अनेक फिल्मों में रागों पर आधारित गीत सहजता से गाए हैं। उनकी शास्त्रीय संगीत पर पकड़ के कारण संगीत निर्देशक शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों के लिए उन्हें ही चुनते थे। इसके अतिरिक्त लता मंगेशकर ने भजन और गजल भी सहजता से गाए हैं। उनकी सुर की पकड़ के बारे में एकबार उस्ताद बड़े गुलाम अली खां ने कहा था कि इसका सुर तो कभी भटकता हीं नहीं है। इस पर लता मंगेशकर ने कहा था ” मुझे भजन गाना ज्यादा अच्छा लगता है और गजल भी। क्लासिकल टाइप पर अगर कोई भी गीत हो तो मुझे ज्यादा अच्छा लगता है गाने में।”

”ए मेरे वतन के लोगों” गीत भारत के लोगों की जुबान पर चढ़ा

1960 के दशक में लता मंगेशकर के गाए भजन ”अल्लाह तेरो नाम और प्रभु तेरो नाम” अत्यधिक प्रसिद्ध हुए। 1963 में उनका गाया भारत-चीन की पृष्ठभूमि में कवि प्रदीप का गीत ”ए मेरे वतन के लोगों” भारत के लोगों की जुबान पर चढ़ गया।

फिल्मी व्यावसायिक जीवन में हजारों एकल-युगल और सामूहिक गीत गाए

लता मंगेशकर ने अपने फिल्मी व्यावसायिक जीवन में हजारों एकल-युगल और सामूहिक गीत गाए। उन्होंने लगभग हर गायक के साथ गीत गाए जिनमें प्रमुख कहें किशोर कुमार, मन्ना डे, मुकेश, मोहम्मद रफी, महेंद्र कपूर, कुमार सानू, एस.पी बालासुब्रमण्यम, मोहम्मद अजीज, सोनू निगम, उदित नारायण आदि।

आर. डी बर्मन का ये गाना करती थीं बेहद पसंद

अपने गाए हुए कुछ प्रिय फिल्मों गीतों के बारे में लता मंगेशकर ने बताया था ” मुझे मेरे फिल्मों गीतों में जो पसंद हैं उसमें ”बीती न बिताई रैना” आर. डी बर्मन का गाना है जो मुझे बहुत पसंद है।” इसके अलावा उनके पसंदीदा गीतों में ”इन्हीं लोगों ने…इन्हीं लोगों ने…इन्हीं लोगों ने… ले लेना दुपट्टा मेरा” भी शामिल है।

हिंदी और मराठी के अलावा 36 भारतीय और विदेशी भाषाओं में गाया

लता मंगेशकर ने न सिर्फ हिंदी और मराठी में गाया बल्कि 36 भारतीय और विदेशी भाषाओं में गाया। उन्होंने न केवल भारत बल्कि विदेश में भी कई संगीत कॉन्सर्ट किए। इसके अलावा लता मंगेशकर के गाए कई गीतों की एल्बम भी निकली हैं।

लता मंगेशकर के पसंदीदा कलाकार

उनको कौन-कौन से कलाकार पसंद थे इस बारे में लता मंगेशकर ने बताया था ” मैं अपने रिकॉर्ड्स तो बहुत कम सुनती हूं। मेरे पास रिकॉर्डिंग का कलेक्शन तो है जिसमें मेरे गीतों का कलेक्शन कम बल्कि अन्य आर्टिस्टों का कलेक्शन ज्यादा है। जैसे- रविशंकर जी, भीमसेन जोशी, गुलाम अली खां साहब और सलामत नजाकत हैं। इसके अलावा कुछ और लाइट म्यूजिक आर्टिस्ट का कलेक्शन भी मेरे पास मौजूद है और मैं उनके रिकॉर्ड जरूर सुनती हूं।”

अपनी गायन यात्रा में पाए ये पुरस्कार

अपनी गायन यात्रा में लता मंगेशकर को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है जिनमें चार फिल्म फेयर पुरस्कार, तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, फिल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार शामिल हैं। वे राज्य सभा की सदस्य भी रह चुकी हैं। लता मंगेशकर को 1999 पद्म विभूषण, 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 2009 में फ्रांस सरकार ने उन्हें ऑफिसर ऑफ फ्रेंच लीजियो ऑफ ऑनर से सम्मानित किया।

प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी सदा रही सादगी पसंद

इतने प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी लता मंगेशकर को सदा सादगी पसंद रही। इस बारे में लता मंगेशकर ने कहा था कि मैं बचपन से घाघरा चोली पहनती थी। फिर मैंने सफेद साड़ी पहनना शुरू किया। बीच में मैंने कलरफुल साड़ी पहनना शुरू किया था जिसमें हर रंग की साड़ी मैं पहनती थी। लेकिन फिर एक दो साल के बाद ऐसे ही बैठे-बैठे मैंने सोचा कि इस बात का तो कोई अंत नहीं है कि आज मुझे गुलाबी पसंद आई तो कल नीली और परसो पीली। इसलिए मैंने एक ही दिन में डिसाइड किया कि मैं आज से सफेद के सिवा कुछ नहीं पहनूंगी।”

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