मुंबई, 19 मई। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने समाज सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए राज्य में विधवा प्रथा खत्म करने का निर्णय लिया है। अब विधवा होने पर महिला की चूड़ी तोड़ने, सिंदूर पोंछने और मंगलसूत्र निकालने की प्रथा अब महाराष्ट्र में नहीं रहेगी। महाराष्ट्र सरकार ने इसे पूरे राज्य में लागू करने का फैसला किया है।
महाराष्ट्र सरकार ने प्रथा को खत्म करने का निर्णय लेते हुए इसके लिए सर्कुलर भी जारी कर दिया है। सरकार ने 17 मई, 2022 को एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें सभी ग्राम पंचायतों को विधवा होने के पुराने रिवाजों से छुटकारा पाने का निर्देश दिया गया है। राज्य के ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री हसन मुश्रीफ ने कहा कि भारत एक वैज्ञानिक और प्रगतिशील देश हैष। ग्रामीण महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में पति की मृत्यु के बाद भी महिलाओं की चूड़ियां तोड़ने, माथे से सिंदूर पोंछने और मंगलसूत्र को हटाने की प्रथा चल रही थी। इसलिए ऐसी प्रथाओं को रोकने का फैसला लिया गया है।
दरअसल, कोल्हापुर जिले में हेरवाड़ ग्राम पंचायत के विधवा प्रथा को रोकने के फैसले की सराहना करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने पूरे राज्य में इसे लागू करने का फैसला किया है। हेरवाड़ ग्राम पंचायत की ग्राम विकास अधिकारी पल्लवी कोलेकर और सरपंच सुरगोंडा पाटिल और ग्राम सभा ने इस प्रथा को खत्म करने की सबसे पहले पहल की थी। कोल्हापुर में बाढ़ और उसके बाद महामारी के दौरान ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में मौतों के बाद चारों तरफ विधवा प्रथा के दृश्य सामने आने पर ग्राम सभा ने इसे रोकने का संकल्प लिया।
सरपंच पाटिल ने कहा कि यह क्रांतिकारी निर्णय राजश्री शाहू महाराज की ओर से विधवाओं के लिए किए गए कार्यों के कारण लिया गया है। पाटिल ने कहा कि विधवा महिलाओं को भी अन्य महिलाओं की तरह सम्मान से जीने का पूरा अधिकार है। विधवा प्रथा का पालन करना गरिमापूर्ण जीवन के मानवीय और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। इसलिए ग्रामीण विकास विभाग ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य में महिलाओं के अधिकारों का हनन न हो और इसके लिए सर्कुलर जारी कर दिया है।
चौंकाने वाली बात ये है कि कई महिला संगठन भी इस प्रथा को रोकने की कोशिश कर रही थीं। लेकिन ऐसी प्रथाओं को रोकने के लिए कानून का डर जरूरी था। इसीलिए सरकार ने अब सर्कुलर जारी कर सभी ग्राम सभाओं में हेरवाड़ ग्राम पंचायत के पैटर्न को लागू करने का निर्देश दिया है।
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साभार : नवजीवन