मिलखा सिंह (Milkha Singh) इस दुनिया से कूच कर गए। कोरोना वायरस से एक महीने लंबी लड़ाई के बाद चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में उनका निधन हो गया। कुछ दिन पहले ही उनकी पत्नी निर्मल कौर गुजर गई थीं। वह भी कोरोना से जूझ रही थीं। मिलखा सिंह का नाम भारत में किसी के लिए अनजाना नहीं है। हर पीढ़ी उन्हें जानती है, उनकी रफ्तार को जानती है उनकी कामयाबी को जानती है। हो भी क्यों न उन्होंने देश को उनपर गर्व करने के कई मौके दिए। ओलिंपिक खेलों में वह भले ही मेडल जीतने से चूक गए थे लेकिन एक ऐसा समय था जब दुनिया भर में ढंका बजता था। कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में उन्होंने सभी दिग्गजों को मात देकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया था। दुनिया में उनके वर्चस्व का आलम यह था कि कहा जाता है कि उन्होंने एक समय अपने करियर में केवल तीन ही रेस हारी थीं।
जाने मिलखा के बारे में :
ओलम्पिक खेलों में दौड़ प्रतियोगिताएं भी काफी लोकप्रिय रही हैं। पहले ये प्रतियोगिताएं घास के प्राकृतिक मैदान में होती थीं, अब ये कृत्रिम टार्टन ट्रेक पर होती हैं। 5 प्रकार की इस प्रतियोगिता में विभिन्न दूरियों में 100 मीटर से लेकर 10 हजार मीटर तक की सामान्य दौड़ों के अलावा 25-30 हजार की दौड़े, रिले दौड़, बाधा दौड़ तथा रटीपल चेस दौड़ होती है।
इन दौड़ों के समय मापन के लिए इलेक्ट्रॉनिक यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। हमारे देश के जिस खिलाड़ी ने 1960 के ओलम्पिक खेल में 400 मीटर की दौड़ में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर देश का गौरव बढ़ाया, वह थे- उड़न सिख मिलखा सिंह।
मिलखा सिंह का जन्म 20 नवम्बर, 1935 को अविभाजित पाकिस्तान में हुआ था। 1947 में जब ये अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दिल्ली आये, तब इनकी अवस्था 12 वर्ष की थी। मिलखा सिंह के परिवार के अधिकतर लोग सेना में थे, जिनमें इनके बड़े भाई माखन सिंह सेना में हवलदार थे। नवमी कक्षा तक शिक्षा प्राप्त करने वाले मिलखा सिंह का ध्यान पढ़ाई-लिखाई में न होकर खेल में था।
अपनी आजीविका के लिए ये पढ़ाई छोड़कर एक ढाबे में काम करने लगे। इनके भाई ने 1953 में इन्हें सेना में भर्ती करा दिया। सौभाग्यवश उस समय सेना में खिलाड़ियों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता था। सेना की ओर से खेलते हुए एक बार इन्होंने 5 मील की दौड़ प्रतियोगिता में भार्ग लिया, जिसमें ये दूसरे क्रम में थे। इनके प्रशिक्षकों ने इन्हें सुझाव दिया कि इन्हें छोटे फासले की दौड़ों में हिस्सा लेना चाहिए।
अत: ये 400 मीटर की दूरी वाली दौड़ का अभ्यास करने लगे। सेना में नौकरी के बाद अभ्यास के दौरान ये 400 मीटर की दौड़ को 1 मिनट 30 सेकेण्ड में पूरा करते थे। उस समय का भारतीय रिकार्ड 48 सेकेण्ड का था। निरन्तर अभ्यास, कठिन परिश्रम के बाद जब इन्होंने पटियाला की एक दौड़ में हिस्सा लेकर 47.9 सेकेण्ड का नया राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया, तो इन्हें 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक में भेजा गया।
वहां 48.9 सेकेण्ड में जो दूरी इन्होंने तय की, वह विश्व रिकार्ड से काफी पीछे थी। उस समय के उस समय के 400 मीटर के विश्व विजेता अमेरिकी खिलाड़ी जैंकिन्स ने इन्हें जो सुझाव दिये, उस पर चलते हुए मिला ने 1957 की 22वीं राष्ट्रीय एथेलेटिक्स प्रतियोगिता में इस दौड़ को 47.5 सैकण्ड में पूर्ण कर नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया।
1958 के टोकियो में आयोजित एशियाई खेलों में इन्होंने यह दूरी 470 सेकेण्ड में पूरी की। 200 मीटर दौड़ 21.6 सेकेण्ड में पूरी कर दोनों में प्रथम स्थान अर्जित किया। वेल्स के पांचवें राष्ट्रमण्डलीय खेलों में यह दूरी इन्होंने 46.6 सेकेण्ड में पूरी की थी।
1960 के ओलम्पिक खेलों में 400 मीटर की फाइनल दौड़ में ये कास्य पदक जीतने से {0.1 सेकेण्ड से} बाल-बाल चूक गये। चौथे स्थान पर रहे। 45.6 सेकेण्ड का इनका जो राष्ट्रीय रिकार्ड है, यह रिकार्ड 46 तक कोई नहीं तोड़ सका था। मिलखा सिंह एक प्रशिक्षक के तौर पर अपनी सेवाएं देश को दे रहे थे।
एक बार बीबीसी से बात करते हुए मिल्खा सिंह ने याद किया, ‘रोम ओलिंपिक जाने से पहले मैंने दुनिया भर में कम से कम 80 दौड़ों में भाग लिया था. उसमें मैंने 77 दौड़ें जीतीं जिससे मेरा एक रिकॉर्ड बन गया था. सारी दुनिया ये उम्मीद लगा रही थी कि रोम ओलिंपिक में कोई अगर 400 मीटर की दौड़ जीतेगा तो वो भारत के मिल्खा सिंह होंगे. ये दौड़ ओलिंपिक के इतिहास में जाएगी जहाँ पहले चार एथलीटों ने ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ा और बाक़ी दो एथलीटों ने ओलिंपिक रिकॉर्ड बराबर किया. इतने लोगों का एक साथ रिकॉर्ड तोड़ना बहुत बड़ी बात थी.’
उड़न सिख मिलखा सिंह पर सारे देश को हमेशा गर्व रहेगा कि इन्होंने एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में अपनी इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि से सारे राष्ट्र को प्रेरणा दी।
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