हाल ही में गठित अंतर-मंत्रालयी समिति ने भारत में कोकिंग कोल के उत्पादन में बढ़ोतरी की रणनीति तैयार करने के लिए अपनी सिफारिशें सौंपी हैं। इस समिति में उद्योग क्षेत्र के हितधारकों को भी शामिल किया गया है। इसके आधार पर, कोयला मंत्रालय ने घरेलू कोकिंग कोल के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने को लेकर एक रोडमैप बनाने के लिए मिशन कोकिंग कोल की शुरुआत की है। कोयला मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता वाली समिति ने निम्नलिखित प्रमुख सिफारिशें की हैं :
- कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और निजी क्षेत्र के उत्पादन को लेकर अतिरिक्त कोकिंग कोल ब्लॉकों की पहचान करना और सीबीएम ओवरलैप कोकिंग कोल ब्लॉकों की नीलामी करना।
- कोकिंग कोयले से लाभ प्राप्त करने के लिए मौजूदा उन्नत प्रौद्योगिकी को अपनाने और वाशरी (जहां कोयले की धुलाई होती है) से निकलने वाले अपशिष्ट व मध्यम कोयले के निपटान के लिए नीतिगत ढांचा विकसित करने की समीक्षा की जा सकती है और इसे और अधिक विस्तृत किया जा सकता है।
- सीआईएल द्वारा निजी वाशरीज को कोकिंग कोल लिंकेज का आवंटन और एग्रीगेटर मॉडल के आधार पर कोकिंग कोल वाशरीज की स्थापना करना।
- गुणवत्ता मानकों को ध्यान में रखते हुए घरेलू कोकिंग कोयले की लेनदारी लेखा-क्रय के लिए आयात समता आधारित मूल्य निर्धारण प्रणाली तैयार करने का सुझाव दिया।
- स्टाम्प चार्जिंग प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए इस्पात क्षेत्र को प्रोत्साहित करने को लेकर प्रोत्साहन आधारित ढांचे के निर्माण और घरेलू कोकिंग कोयले के उपयोग के लिए ब्लास्ट फर्नेस को फिर से डिजाइन करने को लेकर अनुसंधान व विकास संबंधित पहलों में निवेश करने का सुझाव दिया गया है।
- सीआईएल को अपनी वेबसाइट पर कोयले की कोकिंग संपत्तियों का खान-वार/स्तर-वार विवरण प्रकाशित करने और क्रेता को विशिष्ट स्रोत से चुनने की अनुमति देने की सिफारिश की गई।
- भूमिगत खनन मशीनरी और भूमिगत खनन में शामिल संस्थाओं को कर प्रोत्साहन प्रदान किया जा सकता है।
इस समिति के कुछ सुझावों को सीआईएल की सहायक कंपनियों में कार्यान्वित किया जा रहा है। इसके तहत ये कंपनियां टाटा की वाशरीज की अधिशेष क्षमता का उपयोग कर रही हैं और आपूर्ति बढ़ाने के लिए धुले हुए कोकिंग कोल प्राप्त कर रही हैं। नौ कोकिंग कोल वाशरी प्रस्तावित हैं। इनमें से चार पहले से ही निर्माणाधीन चरण में हैं। बीसीसीएल और सीसीएल में स्थापित की जा रहीं नई बिल्ड-ऑपरेट (बीओओ/बीओएम) वाशरी सफल बोलीदाताओं की सुझाई गई मौजूदा अत्याधुनिक लाभकारी प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रही हैं। देश में सस्ती दर पर कोकिंग कोल की अधिक आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ राख की मात्रा को कम करने के निर्णय और आयातित कोकिंग कोयले की कीमत पर विचार किया जा रहा है। पहली बार वाणिज्यिक कोयला नीलामी की पहली किश्त में बिना किसी अंतिम उपयोग प्रतिबंध के कोकिंग कोल के चार ब्लॉक नीलामी के लिए रखे गए थे। इनमें से तीन की सफलतापूर्वक नीलामी की गई। वहीं, वाणिज्यिक कोयला खदानों की नीलामी के दूसरे चरण में छह ब्लॉक नीलामी के लिए रखे गए थे। इनमें से एक की सफलतापूर्वक नीलामी हुई।
सीआईएल और अन्य निजी क्षेत्र के लिए प्रस्तावित उपायों और नीतिगत पहलों के साथ कोकिंग कोल के महत्वपूर्ण नए व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक के रूप में उभरने की संभावना है।
मिशन कोकिंग कोल को शुरुआत करने के पीछे की सोच कोकिंग कोयले के आयात को कम करने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने की है। इस कार्य योजना में अन्वेषण, उत्पादन में बढ़ोतरी, नई प्रौद्योगिकियों को अपनाना, निजी क्षेत्र के विकास के लिए कोकिंग कोल ब्लॉकों का आवंटन, नई कोकिंग कोल वाशरीज की स्थापना, उन्नत अनुसंधान व विकास गतिविधियां और गुणवत्ता मानकों में सुधार शामिल हैं। यह हमारे देश में कोकिंग कोयले के उत्पादन को जरूरी बढ़ावा देगा और आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करेगा। इससे कोकिंग कोल के आयात में पर्याप्त कमी लाने में सहायता मिलेगी और यह हमें आत्मनिर्भर भारत बनने के रास्ते पर ले जाएगा।
कोकिंग कोल और इस्पात क्षेत्र का एक दूसरे के साथ मजबूत आपसी संबंध है। कोकिंग कोल का उपयोग मुख्य रूप से ब्लास्ट फर्नेस के जरिए इस्पात के विनिर्माण में किया जाता है। घरेलू कोकिंग कोल उच्च राख वाला कोयला है (अधिकांश 18 फीसदी -49 फीसदी) और यह ब्लास्ट फर्नेस में सीधे उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे देखते हुए राख की मात्रा को कम करने के लिए कोकिंग कोल को धोया जाता है और ब्लास्ट फर्नेस में इसका उपयोग करने से पहले इसे आयातित कोकिंग कोल (<9 फीसदी राख) के साथ मिश्रित किया जाता है। देश में वार्षिक आधार पर लगभग 50 मीट्रिक टन कोकिंग कोयले का आयात किया जाता है और वित्तीय वर्ष 2020-21 में 45,435 करोड़ रुपये के कोकिंग कोयले का आयात किया गया था। इस तरह, घरेलू कोकिंग कोल की आपूर्ति बढ़ाने से न केवल कोकिंग कोल के आयात को कम करने में सहायता मिलेगी, बल्कि विदेशी मुद्रा की बचत होने से हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने में भी यह सहायक होगा।
देश में कोकिंग कोयले का उत्पादन वित्तीय वर्ष 2019 में 41 मीट्रिक टन था। यह वित्तीय वर्ष 2020 में बढ़कर 53 मीट्रिक टन हो गया। पिछले 4 वर्षों में, उत्पादित कोकिंग कोयले का केवल 20-30 फीसदी हिस्सा ही उपयोग से पहले धोया गया था। यह औसत उत्पादन का ~47 फीसदी था। राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2029-30 तक इस्पात उत्पादन का लक्ष्य 300 मीट्रिक टन है। इसमें से 181 मीट्रिक टन इस्पात का उत्पादन ब्लास्ट फर्नेस के जरिए होगा। यानी ब्लास्ट फर्नेस के जरिए इस्पात उत्पादन की क्षमता को 3 गुना बढ़ाने का लक्ष्य है। इसके लिए घरेलू कोकिंग कोयले की आपूर्ति में कई गुना बढ़ोतरी करने की जरूरत होगी, जिससे लक्षित इस्पात उत्पादन को प्राप्त किया जा सके और कोकिंग कोल के आयात को सीमित किया जा सके।
सोशल मीडिया पर अपडेट्स के लिए Facebook (https://www.facebook.com/industrialpunch) एवं Twitter (https://twitter.com/IndustrialPunch) पर Follow करें …