नई दिल्ली, 12 जुलाई। मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में चार श्रम संहिताओं (four labor codes) को लागू करने की तैयारी में है। इधर, बताया गया है कि केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस संदर्भ में 25- 26 जुलाई के श्रमिक संगठनों की एक बैठक बुलाई है। मनसुख मंडाविया की तैयारी राज्यों के साथ चार श्रम संहिताओं को लेकर चर्चा करने की भी है।

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दूसरी ओर कहा जा रहा है कि सरकार की प्राथमिकता लेबर कोड को लागू करने की है, लेकिन इसमें कुछ माह का समय और लग सकता है। कहा गया है कि कई राज्य सरकारों को इस नए लेबर कोड में किए गए सुधारों और उनके दायरे की पूरी समझ नहीं है और केन्द्र सरकार उन राज्यों के साथ बातचीत कर सारी चीजें स्पष्ट करना चाहती है। औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020, और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 पर राज्यों के साथ चर्चा महत्वपूर्ण है।

यहां बताना होगा कि कोराना काल (2019- 2020) के दौरान बिना बहस कराए गए कृषि क़ानूनों के साथ ही चार लेबर कोड को संसद में मोदी सरकार ने पारित करा लिया था।

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मोदी सरकार का तर्क था कि नया लेबर कोड 29 केंद्रीय पुराने श्रम कानूनों के एक जटिल जाल को आसान करता है। इसके साथ ही यह भारत के जॉब मार्केट में व्यापक बदलाव लाने का प्रयास है। देश के दशकों पुराने श्रम मानदंडों में सुधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निवेश को बढ़ाने और रोजगार सृजन के कदमों का एक केंद्रीय हिस्सा हैं’।

इधर, नया लेबर कोड अभी तक लागू नहीं हो पाया है क्योंकि आठ राज्यों ने अभी तक प्रत्येक कोड के तहत नियम नहीं बनाए हैं। साथ ही ट्रेड यूनियन चार श्रम संहिताओं का विरोध कर रहे हैं। यूनियन का कहना है कि, ’नए कानून कामगार से उसकी नौकरी की सुरक्षा पूरी तरह से छीन लेता है, यह मज़दूर को काम पर रखने और निकालने यानी हायर एंड फायर को आसान बनाता है।’

श्रमिक संगठन नए कानून के ज्यादातर प्रावधानों को लेकर इसका विरोध कर रहे हैं। मसलन औद्योगिक संबंध संहिता के तहत, 300 तक कर्मचारियों को रोजगार देने वाली फर्मों को कर्मचारियों को छंटनी तालाबांदी के लिए सरकार मंजूरी लेनी होगी, जबकि पहले यह सीमा 100 थी। यह संहिता ट्रेड यूनियन को फैक्ट्री या कारखाने में 30 प्रतिशत सदस्यता वाले ट्रेड यूनियन को ही सामूहिक बातचीत के लिए अधिकृत करती है जबकि कई यूनियनें होने की स्थिति में यह सीमा 51 प्रतिशत है। यानी ट्रेड यूनियन को सिर्फ कागज की रद्दी बना दिया जाएगा।

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10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन (इंटक, एचएमएस, सीटू, एटक व अन्य) के मंच ने इन लेबर कोड में किए गए बदलावों को मज़दूर विरोधी करार देते हुए उन्हें रद्द करने की मांग की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने कुछ मामूली संशोधनों के साथ इन लेबर कोड को लागू करने का समर्थन किया है।

(workersunity से इनपुट)

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