दिल्ली: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 के राज्यसभा में पारित होने पर AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा, ” इस बिल के माध्यम से सरकार ने लोकतंत्र को कुचलने का काम किया है। अगर देश में निष्पक्ष चुनाव आयोग नहीं होगा तो क्या निष्पक्ष चुनाव हो सकता है?….सुप्रीम कोर्ट ने एक फॉर्मूला दिया और कहा कि तीन सदस्यीय समिति बनाए-प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश। यही समिति तय करेगी कि कौन चुनाव आयोग में बैठेगा या गठन कैसे होगा।
राघव चड्ढा ने कहा, आज सरकार ये बिल लाकर इस तीन सदस्यीय समिति में से भारत के मुख्य न्यायाधीश को बाहर का दरवाजा दिखाकर एक मनोनीत कैबिनेट मंत्री उसके जगह बैठा देती है यानी इस तीन सदस्यीय समिति में हमेशा दो वोट सरकार के पास होंगे।…यानी सरकार तय करेगी कि चुनाव आयोग में कौन बैठेगा।…चुनाव आयोग की भूमिका भारतीय लोकतंत्र में बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं अगर इसके इंडिपेंडेंस से खिलवाड़ होगा तो चुनावों से खिलवाड़ करने के बराबर है इसलिए हम सब मिलकर आपस में सलाह करेंगे और कानूनी राय लेंगे। अगर कानूनी राय सबकी बनती है तो इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी देंगे।…”
राज्यसभा ने पारित किया है बिल
राज्यसभा ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त-(सेवा शर्तें और कार्यकाल) विधेयक 2023 पारित कर दिया है। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे प्रस्तुत किया। यह विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य) कानून 1991 का स्थान लेगा। यह मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, वेतन और उन्हें पद से हटाने के बारे में है। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति प्रवर समिति की सिफारिश पर की जाएगी।
इस समिति में प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता या लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता शामिल होगा। विधेयक पर बहस का जवाब देते हुए विधि और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि पहले के विधेयक में नियुक्ति का प्रावधान नहीं था इसलिए सरकार यह विधेयक लेकर आयी। उन्होंने कहा कि सरकार चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
श्री मेघवाल ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि देश की सभी संस्थाएं निष्पक्ष तरीके से काम करें। उन्होंने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की सुरक्षा के लिए विधेयक में एक प्रावधान जोड़ा गया है। विधि और न्याय मंत्री ने कहा कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त ड्यूटी के दौरान कोई आदेश देते हैं तो न्यायालय उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता।
श्री मेघवाल ने कहा कि विधेयक को सर्वाेच्च न्यायालय की भावना के अनुरूप लाया गया है। विधेयक पर बहस के दौरान विपक्ष सदन से वाकआउट कर गया।
इससे पहले कांग्रेस पार्टी के सांसद रणदीप सुरजेवाला ने विधेयक के प्रावधानों पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि यह संविधान की मूल भावना के अनुरूप नहीं है। नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि नियुक्ति समिति सिर्फ औपचारिकता है, क्योंकि सरकार का इस समिति पर पूर्ण नियंत्रण रहेगा। उन्होंने कहा कि सरकार स्वतंत्र चुनाव आयोग नहीं चाहती और विधेयक आयोग की स्वायत्ता, निर्भीकता और स्वतंत्रता का हनन करता है। तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार ने कहा कि यह विधेयक मुख्य चुनाव आयुक्त के दर्जे को कम करता है। डीएमके तिरूचि शिवा ने भी विधेयक का विरोध करते हुए इसे अनैतिक और अलोकतांत्रिक बताया। उन्होंने कहा कि नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया जाना चाहिए।