इस्पात से जुड़े मामलों पर गहन चर्चा और भविष्य की कार्ययोजना पर विचार विमर्श के लिए केंद्रीय इस्पात मंत्री राम चंद्र प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में इस्पात मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक सम्पन्न हुई। शिमला में आयोजित इस बैठक में “परिवर्तन का दौर, ग्रीन इस्पात की ओर” विषय पर संसदीय सलाहकार समिति द्वारा इस्पात से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर गहन चर्चा हुई। बैठक में केंद्रीय इस्पात मंत्री ने हितधारकों से आग्रह किया कि वे एक समयबद्ध कार्य योजना के विकास के लिए एक साथ आएं और अभी तक की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप इस्पात उद्योग से उत्सर्जन को कम करने के लिए ठोस प्रयास करें ताकि ग्रीन स्टील के उत्पादन के तय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके और “आत्मनिर्भर भारत” को बढ़ावा दिया जा सके।
इस्पात के उत्पादन के तय लक्ष्य
भारत सरकार को स्टील के उत्पादन को बढ़ाने के लिए विजन इंडिया @2047 की दिशा में काम कर रही है। उत्पादन बढ़ोत्तरी में निरंतरता बनाए रखने के लिए लौह अयस्क उत्पादन और अन्य आवश्यक कच्चे माल में वृद्धि के लिए उपयुक्त नीतिगत समर्थन के साथ उचित रणनीतिक दिशा बनाई जा रही है। आत्मनिर्भर भारत को ध्यान में रखते हुए इस्पात की घरेलू खपत को सरकार ने 2030 तक 300 मिलियन टन और 2047 तक 500 मिलियन टन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए युद्धस्तर पर रणनीति तैयार की जा रही है।
कैसे होता है इस्पात का उत्पादन
इस्पात निर्माण लौह अयस्क और स्क्रैप से स्टील के उत्पादन की प्रक्रिया है। लौह अयस्क से इस्पात बनाने की प्रक्रिया के दूसरे चरण में कच्चे लोहे से में उपस्थित अतिरिक्त कार्बन तथा गंधक, फास्फोरस आदि अशुद्धियों को निकाला जाता है। लौह अयस्क से अशुद्धियों को निकालने के लिए अयस्क को पिघला कर कर कच्चे लोहे से अशुद्धियों को निकालने के बाद मैगनीज, निकिल, क्रोमियम तथा वनाडियम तत्व मिलाए जाते हैं। इस्पात के उत्पादन की प्रक्रिया में नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसी विघटित गैसों की मात्रा को सीमित करना भी उत्पादित उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
क्या है ग्रीन स्टील ?
विश्व में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन उत्पन्न समस्या को ध्यान में रखते हुए इस्पात उद्योग द्वारा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। इस्पात उत्पादन में समुचित रूप से प्राकृतिक ईंधन का प्रयोग और उत्पादित स्टील में कार्बन की मात्र में कमी लाना ही ग्रीन स्टील को श्रेणी में आता है। इस्पात उद्योग द्वारा नेचुरल गैस तथा हाइड्रोजन का उपयोग करके ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम करने में मदद मिलेगी। सरकार द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड की सघनता को कम करने के लिए हाइड्रोजन और उत्पादन के नए तरीकों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर ग्रीन स्टील के उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
केंद्र सरकार का प्रयास
देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस्पात उद्योग की जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने क्वे लिए केंद्र सरकार ने 2019 में स्टील स्क्रैप रिसाइंक्लिंग पोलिसी तथा 2021 में व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी लाई है, जिससे इस्पात उद्योग को स्क्रैप की उपलब्धता सुनिश्नित होगी, जो की ग्रीन इस्पात के उत्पादन में बड़ा कदम होगा। साथ ही वैकल्पिक ईंधन के लिए राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा हुई है जिसमें हाइड्रोजन के उत्पादन और उपयोग के बारे में परीक्षणों पर कांम चल रहा है। केंद्र सरकार 2070 तक देश के कार्बन न्यूट्रल के लक्ष्य, हाइड्रोजन मिशन और ग्रीन – क्लीन स्टील को ध्यान में रख कर भविष्य की योजनाओं पर काम कर रही है।
लगातार बढ़ रहा उत्पादन
केंद्र सरकार द्वारा निर्बाध, पारदर्शी और लचीली प्रक्रिया उपलब्ध कराने और उद्योग से मिले सुझावों पर विचार कर उन्हे व्यवस्थित रूप से करने के कारण इस्पात उत्पादन में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। सरकार के प्रयास से इस्पात उद्योग ने 1991 में 22 मिलियन टन से बढ़कर 2021-22 में 120 मिलियन टन तक उत्पादन में काफी प्रगति की है। इस्पात के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 05 श्रेणियों के स्पेशयलिटी स्टील के आयात को कम करने तथा क्षमता बढ़ाने के लिए 6,322 करोड़ रुपए की PLI स्कीम की मंजूरी प्रदान की है।
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