कोरबा, 23 दिसम्बर। राजस्थान सरकार द्वारा कोयला संकट बताकर परसा कोल ब्लॉक की जबरन स्वीकृति हासिल करने की कोशिशों के खिलाफ हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने प्रदर्शन किया। रैली निकालकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अदानी कंपनी का पुतला फूंका गया।
पिछले कुछ दिनों से राजस्थान के मुख्यमत्री अशोक गहलोत पत्रों के माध्यम से राजस्थान में कोयला संकट का हवाला देकर हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा कोयला ब्लॉक की वन स्वीकृति देने छत्तीसगढ़ सरकार पर दवाब बना रहे हैं। इसके खिलाफ हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम फतेहपुर हरिहरपुर और साल्ही के आदिवासियों गांव में ही रैली निकालकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अदानी कंपनी पुतला जलाया गया।
सैकड़ों की संख्या में शामिल महिलाओं ने कहा कि पिछले 5 वर्षों से परसा कोल खनन परियोजना के खिलाफ ग्रामसभाओं के विरोध, कानून के हर दरवाजे को खटखटाने के बाद भी न्याय नहीं मिलने पर हसदेव के आदिवासी अपने जंगल- जमीन- गांव- पर्यावरण बचाने 300 किलोमीटर पैदल चलकर रायपुर पहुंचे थे।
मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिला, क्योंकि पिछले दो महीनों बाद भी फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव पर कार्रवाई तो दूर जांच तक नहीं हुई। इसके विपरीत 7 दिवस के अंदर ही राज्य सरकार की सहमति से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने वन स्वीकृति जारी कर दी थी।
सरपंच जयनन्द पोर्ते ने कहा कि अशोक गहलोत अदानी के लिए मिलीजुली कुश्ती लड़ते हुए कोयला संकट का माहौल बनाकर खनन शुरू करना चाह रहे हैं। राज्य सरकार का पक्ष सिर्फ मीडिया के द्वारा सामने आ रहा है कि वे आदिवासियों के साथ हैं, लेकिन एक भी कागजी निर्णय हसदेव के आदिवासियों के पक्ष में नहीं चलाया गया। इसलिए अब हसदेव के आदिवासी विशेष रूप से महिलाओं ने अपनी लड़ाई को गांव में ही लड़ना तय किया है।
ग्राम साल्ही के आनंद राम खुसरो ने कहा कि यदि सरकारें यदि हमसे जबरन जमीन जंगल छीनने की कोशिश करेगी तो में अपने महिला बच्चों के साथ जेल जाने तैयार है।
ग्रामीणों ने कहा कि राजस्थान सरकार को 10 मिलियन टन कोयला प्रतिवर्ष निकालने की अनुमति के साथ परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान आवंटित हुई थी स वर्ष 2018 में इसकी क्षमता भी 15 मिलियन टन हो गई है। अभी कंपनी ने इसे 21 मिलियन टन बढ़ाने पर्यावरण मंत्रालय में आवेदन लगाया है। इसके बावजूद भी राजस्थान और नई कोयला खदाने क्यों खोलना चाहता है ? राजस्थान सरकार चाहे तो सस्ते दर पर कोल इंडिया से कोयला खरीद सकती है।
ज्ञात हो कि परसा कोल ब्लॉक की जमीन का अधिग्रहण कोल बेयरिंग एक्ट 1957 से हो रहा है। वह भी बिना ग्रामसभा की सहमति लिए, जबकि यह क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल है। प्रस्तावित खनन क्षेत्र की सीमा में 841 हेक्टेयर वन भूमि के व्यपवर्तन की स्वीति भी केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय द्वारा 21 अक्टूबर को जारी की गई थी जबकि प्रभावित गांव की ग्रामसभाओं ने खनन का सतत विरोध किया है।
300 किलोमीटर की पदयात्रा करके रायपुर पहुंचे हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने खनन कंपनी द्वारा फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर वन स्वीकृति हासिल करने की शिकायत राज्यपाल और मुख्यमंत्री से की थी। आदिवासियों के निवेदन पर राज्यपाल ने मुख्यसचिव को पत्र लिखते हुए समस्त कार्य रोकने और ग्रामसभा प्रस्ताव की जांच के आदेश दिए हैं।
प्रस्तावित परसा कोयला खनन परियोजना मध्य भारत के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य में स्थित है और इस सम्पूर्ण वन क्षेत्र को ही वर्ष 2010 में केन्द्रीय वन पर्यावरण, एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा खनन हेतु नो गो घोषित किया गया था। नो गो घोषित होने का तात्पर्य ही यही था कि यह एक समृद्ध वन है जो जैव विविधता से परिपूर्ण, वन्य प्राणियों का रहवास, हसदेव नदी का जलागम क्षेत्र और पर्यावरण रूप से बहुत ही संवेदनशील क्षेत्र हैं।
पिछले दिनों ही हसदेव अरण्य वन क्षेत्र की जैव विविधता अध्ययन में भारतीत वन्य जीव संस्थान ने कहा है की हसदेव अरण्य समृद्ध वन क्षेत्र है। हाथी सहित महत्वपूर्ण वन्य पप्राणियों का रहवास है। यदि यहां खनन हुआ तो प्रदेश में मानव हाथी द्वन्द का संकट बहुत विकराल हो जायेगा।
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