नई दिल्ली, 30 मार्च। क्या सरकार ने ऊर्जा संक्रमण के प्रति देश की प्रतिबद्धता के आलोक में कोरबा आदि जैसे कोयला केंद्रित अर्थव्यवस्था वाले जिलों के लिए कोई कार्य योजना तैयार की है?
क्या ऐसे जिलों में खदानों और उद्योगों के बंद होने से गंभीर सामाजिक- आर्थिक परिणाम होंगे, जिसमें प्रमुख परिणाम अकुशल श्रमिकों के लिए बेरोजगारी है?
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क्या सरकार ने इन जिलों में कृषि- वानिकी, विनिर्माण और सेवा जैसे अन्य आर्थिक क्षेत्रों की वृद्धि के लिए उनकी निर्भरता को कम करने के लिए कोई मापकीय कदम उठाए गए हैं?
उक्त सवाल राज्यसभा में प्रियंका चतुर्वेदी ने उठाया।
सवाल का जवाब देते हुए संसदीय कार्य, कोयला एवं खान मंत्री प्रल्हाद जोशी ने बताया कि भारत में निकट भविष्य में कोयले से कोई ऊर्जा पारगमन नहीं हो रहा है। यद्यपि नवीकरणीय/ गैर जीवाश्म आधारित ऊर्जा पर जोर दिया जाएगा, लेकिन ऊर्जा बास्केट में कोयले की हिस्सेदारी आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
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श्री जोशी ने कहा कि देश में कोयले की मांग अभी चरम पर पहुंचने वाली है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021- 22 के मसौदे में वर्ष 2030 तक कोयले की मांग 1.3- 1.5 बिलियन टन श्रेणी में होने का अनुमान है, जो मौजूदा मांग से 63 प्रतिशत की वृद्धि है।
इस प्रकार अभी कोयले से ऊर्जा पारगमन का ऐसा कोई परिदृश्य नहीं है, जो कोयला खनन में शामिल किसी हितधारक को प्रवाहित करे।
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