भारत विश्व स्तर पर पांचवें सबसे बड़े कोयला भंडार से संपन्न होने के साथ कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता हो गया है। ऐसा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण हुआ है। अकेले विद्युत क्षेत्र वित्त वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक लगभग 7.5 प्रतिशत की चक्रीय वार्षिक विकास दर (सीएजीआर) से चल रहा है, जबकि अन्य क्षेत्र इसी तरह की गति दिखा रहे हैं, जिससे कोयले की मांग बढ़ रही है।
समग्र कोयला खपत स्पेक्ट्रम में हमारे भंडारों में कोकिंग कोल और उच्च ग्रेड थर्मल कोयले की अनुपलब्धता के कारण इस्पात आदि जैसे उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आयात आवश्यक हो जाता है। यद्यपि घरेलू रूप से मध्यम और निम्न-श्रेणी के थर्मल कोयले प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसीलिए देश की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करना अनिवार्य हो गया है।
पिछले एक दशक में कोयला उत्पादन बढ़ाने के ठोस प्रयासों ने सकारात्मक रुझान दिखाया है। वर्ष 2004 से 2014 के दौरान कुल खपत बास्केट में आयातित कोयले की हिस्सेदारी 13.71 प्रतिशत रही। इसके विपरीत, 2014 से 2024 तक यह आंकड़ा लगभग -2.7 प्रतिशत तक गिर गया। पिछले पांच वर्षों में कोयले के आयात की प्रवृत्ति (आयातित कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों के लिए आयात को छोड़कर) कुल खपत में आयातित कोयले की हिस्सेदारी में गिरावट दिखाती है। यह हिस्सेदारी पिछले वित्त वर्ष (अप्रैल-दिसंबर) में 21.05 प्रतिशत से घटकर चालू वित्त वर्ष की समान अवधि में 19.38 प्रतिशत हो गयी है। यह कमी से लगभग 82,264 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा की बचत हुई है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सम्मानित विजन के अनुरूप उन्नत प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों की उत्पादन क्षमता में सराहनीय वृद्धि हुई है। विशेष रूप से, कोल इंडिया लिमिटेड में वृद्धि दर 10 प्रतिशत से अधिक रही है। इसके अतिरिक्त, कोयला ब्लॉकों के लिए पारदर्शी नीलामी व्यवस्था, जिसमें अंतिम उपयोग प्रतिबंध नहीं हैं, के अपेक्षित परिणाम आने लगे हैं। पिछले पांच वर्षों में कैप्टिव और वाणिज्यिक स्रोतों से कोयला उत्पादन का लगातार बढ़ना लगभग 22.50 प्रतिशत के प्रभावशाली सीएजीआर को रेखांकित करता है, जो राज्य सरकारों द्वारा प्रदान की गई सहायक भूमिका की पुष्टि करता है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए घरेलू कोयला उत्पादन 1,111 मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि घरेलू मांग 1,290 मीट्रिक टन अनुमानित है। परिणास्वरूप आयातित कोयले का हिस्सा 15 प्रतिशत से कम होने का अनुमान है, जिससे पर्याप्त विदेशी मुद्रा बचत हो सकती है।
स्वदेशी कोयला संसाधनों का अधिकतम करके तथा नवीन तकनीकी सॉल्यूशनों का लाभ उठाने पर रणनीतिक फोकस के साथ भारत राष्ट्र की ऊर्जा सुरक्षा में आत्मनिर्भरता या आत्मनिर्भर की दिशा में अपनी यात्रा जारी रखे हुए है।