सिंगरेनी कोल कंपनी लिमिटेड की मालिक तेलगांना सरकार है। वहां के मजदूरों और मतदाताओं ने उसे मत देकर मालिक बनाया, जो उनके हित की रक्षा करे। अलग राज्य बनने के बाद से ही वहां उनकी ही सरकार बनती आ रही है। वे भी सरकार बनाने वालों का गम्भीरता से ख्याल रख रहे हैं। पिछले वर्ष 2018- 19 में सिंगरेनी का प्रॉफिट था 1766.66 करोड़, इसमें से कोयला मजदूरों को 28 % बोनस के रूप में दिया यानी कुल 494 करोड़। इसके अलावे जेबीसीसीआइ के मानकीकरण कमेटी द्वारा तय बोनस भी मिला। यानी एक लाख के ऊपर।
इस बार 2019-20 में सिंगरेनी का प्रॉफिट है 993 करोड़ रुपए। बोनस के रूप में 28 % देने की घोषणा मुख्यमंत्री ने किया। जिससे एक कामगार को लगभग 60 हजार मिलेगा। इसके साथ ही मानकीकरण कमेटी द्वारा तय बोनस भी। अब जोड़ लीजिए उन्हें कितना बोनस मिलेगा।
कोल इंडिया का मालिक केंद्र सरकार है। PSU और केंद्र सरकार के मुखिया हैं साहब। पहले कार्यकाल को हम सब ने देखा, समझा। और इसके कर्मियों के बारे में उनकी सोच – विचार को बहुत अच्छे से जाना, समझा। फिर भी हम सबों ने पहले कार्यकाल से अधिक मजबूती के साथ उन्हें दुबारा मालिक बनाया।और हम इतने समझदार हैं कि मालिक किसी और को बनाते हैं, और बोनस यूनियन नेताओं से मांगते हैं। कोल इंडिया अधिकारियों को बुरा भला कहते हैं।
बिना मालिक के कोल इंडिया के अधिकारी कुछ कर सकते हैं ? एक जनवरी 2017 से 20 लाख ग्रेच्युटी का मामला एक उदाहरण है। कोल इंडिया सर्वे वगैरह कर भुगतान के अनुमति के लिए मंत्रालय से स्वीकृति मांगी। बस तब से भुगतान की गाड़ी रुकी हुई है। हमलोग यूनियन को दोष दे रहे हैं। कुछ लोगों को हमारी बात अच्छी नहीं लगेगी, पर हकीकत और सच्चाई यही है। यही अंतर है सिंगरेनी और कोल इंडिया के मालिक में। हम मालिक को दोष न देकर किसी और पे रोष झाड़ते हैं। पॉवर किसी और को देते है और अधिकार किसी और से मांगते है।
सिंगरेनी में और बहुत कुछ ऐसा हुआ है, हो रहा है, जिसके बारे में कोल इंडिया में सोचा नहीं जा सकता। हजारों युवाओं को मेडिकल अनफिट के तहत नियोजन मिला। अपने यहां तो कागज में चालू है, जमीन पर बंद है। अधिकारी और यूनियन को दोष देते रहिए। सिंगरेनी के मालिक कामगारों को खुशहाल रखते हैं, और हमारे मालिक हमें बंधुआ समझते हैं। हमारे मालिक की सोच है कि हम कुछ भी करें ये बंधुआ सब हमी को मालिक बनाएगा।
(सत्येन्द्र कुमार की फेसबुक वाॅल से)