कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की अनुषंगी कंपनी साऊथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) इस वित्तीय वर्ष की दो तिमाहियों में अपने उत्पादन लक्ष्य से लगभग 20 फीसदी पीछे चल रही है। वर्तमान में उसकी कुसमुंडा और गेवरा खदानें दैनिक उत्पादन लक्ष्य का सिर्फ 50 प्रतिशत ही उत्पादन कर रही हैं। कार्यदक्षता का अभाव कहें या फिर संसाधनों को ऑप्टिमाइज कर पाने के कौशल में कमी, एसईसीएल आज इस स्थिति में नहीं है कि वह अपने उपभोक्ताओं को पर्याप्त मात्रा में कोयले की आपूर्ति कर सके। सीपीपी आधारित जो उद्योग कोयले की आपूर्ति के लिए एसईसीएल पर निर्भर हैं वे लगातार इस भय में हैं कि पता नहीं कब कोयले की कमी उनके प्रचालन की बलि ले ले।
खबरों के अनुसार एसईसीएल अपने उपभोक्ताओं के साथ फ्यूल सेल एग्रीमेंट (एफएसए) के लिए तैयार हो गया है। एसईसीएल के हवाले से प्रकाशित सूचना में बड़ी ही सफाई से अनेक तथ्य छिपा लिए गए हैं। एसईसीएल का प्रस्तावित एफएसए एक बड़ा छलावा है जिसका खामियाजा आने वाले कई महीनों तक छत्तीसगढ़ प्रदेश के 250 से अधिक सीपीपी आधारित उद्योगों को चुकाना पड़ेगा।
एसईसीएल के निर्णयों से उसके उपभोक्ताओं को कैसे नुकसान झेलना पड़ रहा है, यह समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा। एफएसए के अंतर्गत वर्ष 2016 में एसईसीएल ने ट्रांच-1 का लिंकेज ऑक्शन किया था। इस ऑक्शन से छत्तीसगढ़ प्रदेश के लगभग 250 सीपीपी आधारित उद्योगों को पांच वर्षीय दीर्घकालिक अनुबंध के अंतर्गत वर्ष 2021 तक लगभग 70 लाख टन कोयला मिलना था, जो मिला भी। एफएसए के अनेक प्रावधानों में से एक प्रावधान यह भी होता है कि आपूर्तिकर्ता और उपभोक्ता पारस्परिक विचार-विमर्श से इस अनुबंध को अगले पांच वर्षों के लिए बढ़ा सकते हैं।
वर्ष 2021 में जैसे ही ट्रांच-1 के एफएसए के नवीनीकरण की बारी आई, एसईसीएल ने अपने एकाधिकार जनित शक्तियों का एकपक्षीय प्रयोग करते हुए 6 अगस्त, 2021 को नोटिस नंबर 582 के अंतर्गत अपने उपभोक्ताओं को यह सूचना दे दी कि ट्रांच-1 के एफएसए का नवीनीकरण अगले पांच वर्षों के लिए नहीं किया जाएगा। बताते चलें कि ट्रांच-1 के एफएसए से सीपीपी आधारित उद्योगों को उनकी जरूरत का लगभग 60 फीसदी कोयला मिलता था। चूंकि एसईसीएल ने अपना फरमान सीपीपी आधारित उद्योगों की आसन्न परेशानियों को नजरअंदाज करके जारी किया, जाहिर है ये उद्योग सीधे अपने घुटनों पर आ गए।
प्रश्न यह भी है कि यदि एसईएसीएल एफएसए के लिए तैयार है तो सीपीपी आधारित उद्योगों को क्या तकलीफ है? इसका जवाब 6 अगस्त, 2021 के उसी नोटिस नंबर 582 में मौजूद है। इस नोटिस में एसईएसीएल ने यह साफ कहा है कि सीपीपी आधारित उद्योग एसईसीएल के ई-ऑक्शन, स्पॉट ऑक्शन और एक्सक्लूसिव्ह ऑक्शन के तहत कोयले का उठाव कर सकते हैं। पेंच यह है कि 13 सितंबर, 2021 को एसईसीएल ने छह महीने की अवधि के लिए मात्र 3 लाख टन कोयले का एक्सक्लूसिव्ह ऑक्शन निकाला। मतलब यह कि सीपीपी आधारित उद्योगों को अगले छह महीने तक प्रतिमाह मात्र 50 हजार टन कोयले की आपूर्ति की जाएगी जबकि प्रदेश के सीपीपी आधारित उद्योगों को हर महीने लगभग 8 लाख टन कोयले की जरूरत है। यानी सीपीपी को हर महीने जरूरत का मात्र सवा छह फीसदी ही कोयला मिल पाएगा। सीपीपी आधारित उद्योगों की बड़ी जरूरत के सामने यह मात्रा ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
एसईएसीएल का यह भी कहना है कि वह कोल लिंकेज के लिए ट्रांच-5 ऑक्शन नोटिस निकालेगा। ट्रांच-5 ऑक्शन के बाद एफएसए के नवीनीकरण की बात कही जा रही है। खबर है कि स्पंज आयरन और सीमेंट उद्योगों के लिए ट्रांच-5 ऑक्शन नोटिस जारी किया गया है। सूत्र बताते हैं कि ट्रांच-5 के ऑक्शन से मिलने वाले कोयले पर हाई प्रीमियम चार्ज किया जाएगा। यानी यदि ट्रांच-5 के ऑक्शन के बाद एफएसए का नवीनीकरण होगा तब उपभोक्ताओं को मिलने वाला कोयला महंगा होगा। ट्रांच-5 के ऑक्शन का नोटिस अभी तक सीपीपी के लिए जारी नहीं हुआ। कब होगा यह भी पता नहीं।
ट्रांच-5 के ऑक्शन के बाद कोयले की आपूर्ति की प्रक्रिया पूरी होने तक अंदाजन चार से पांच महीने लग जाएंगे। तब तक एसईसीएल पर निर्भर सीपीपी आधारित उद्योगों का क्या होगा ? इसमें शक नहीं कि सीपीपी आधारित उद्योगों के हितों पर प्रतिकूल असर डालते हुए एसईसीएल मुनाफा तो कमा लेगा परंतु उसकी इस नीति के कारण उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ जाएगी जिसका प्रतिकूल असर देश की अर्थव्यवस्था और नागरिकों पर पड़ेगा।
आज एसईसीएल के पास उपभोक्ताओं की जरूरत की पूर्ति के लिए कोयला नहीं है। जब कोयला ही नहीं है तो उत्पादन के आंकड़ों की बात ही बेमानी है। ऐसे में एफएसए की बात कहें या फिर ऑक्शन के दूसरे तरीकों से उपभोक्ताओं तक कोयला पहुंचाने की बात, सब कुछ जुबानी जमा खर्च ही है। देखना होगा कि राज्य के उद्योगों के हित में छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया श्री भूपेश बघेल क्या निर्णय लेते हैं।
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