केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देशद्रोह कानून (धारा 124ए) के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार किया जाएगा। ये पीएम मोदी द्वारा वर्तमान समय में इस औपनिवेशिक कानून की आवश्यकता के पुनर्मूल्यांकन के निर्देश जारी करने के बाद आया है।
सोमवार को सरकार ने अदालत से औपनिवेशिक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं करने और केंद्र द्वारा किए जाने वाले पुनर्विचार अभ्यास की प्रतीक्षा करने के लिए भी कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की सुनवाई के लिए 10 मई की तारीख तय की थी।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन पेज का हलफनामा दाखिल कर कहा है कि वह देश की संप्रभुता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के साथ-साथ पुराने औपनिवेशिक कानूनों को हटाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र ने कहा कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, सरकार औपनिवेशिक बोझ को कम करने के लिए काम कर रही है।
याचिका में क्या दी गई है दलील
सुप्रीम कोर्ट में रिटायर मेजर जनरल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि आईपीसी की धारा-124 ए (राजद्रोह) कानून में जो प्रावधान और परिभाषा दी गई है वह स्पष्ट नहीं है। इसके प्रावधान संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले हुए हैं। इसके तहत अनुच्छेद-19 (1)(ए) में विचार अभिव्यक्ति की आजादी मिली हुई है। साथ ही अनुच्छेद-19 (2) में वाजिब रोक की बात है। लेकिन राजद्रोह में जो प्रावधान है वह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।
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