भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट पर बढ़ रहे बोझ को लेकर काफी नाराजगी जताई है। राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दे के फैसलों की जिम्मेदारी पर CJI काफी नाराज हुए।
CJI ने कहा, “अगर मैं सहमत हो जाऊं कि आपके सभी मामलों को यहां उठाया जाना चाहिए और जो आदेश मांगे गए हैं, उन्हें पारित किया जाना चाहिए, तो फिर प्रतिनिधि किस लिए चुने जाते हैं? लोकसभा, राज्यसभा क्यों हैं?” उन्होंने पूछा, क्या अदालत अब बिल भी पास करने लगे?
दरअसल CJI की यह टिप्पणी, वकील अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आई। अश्विनी उपाध्याय ने सरकार को एक साल के भीतर सभी अवैध प्रवासियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का निर्देश देने के लिए SC में याचिका दायर की हुई है। CJI ने उपाध्याय से ये सवाल किए।
31 जनवरी, 2018 को, अदालत ने निर्देश दिया कि उनकी याचिका को सितंबर 2017 में दो रोहिंग्या शरणार्थियों की तरफ से दायर एक दूसरी याचिका के साथ टैग किया जाए। निर्देश में कहा कि इसकी एक कॉपी केंद्र सरकार के वकील को भी दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट पहुंचे दो रोहिंग्या शरणार्थी
गृह मंत्रालय की तरफ से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के मुख्य सचिवों को एक पत्र जारी किया गया था। इसके बाद दो रोहिंग्या शरणार्थियों ने अदालत का रुख किया था। इस पत्र में “सभी कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को त्वरित कदम उठाने और निर्वासन प्रक्रिया शुरू करने की सलाह दी गई थी।”
इसके बाद, दो शरणार्थियों ने जम्मू में रहने वाले रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों को निर्वासित करने के किसी भी संभावित कोशिश के खिलाफ एक वार्ता आवेदन (Interlocutory Application) दायर किया, जिसे 8 अप्रैल, 2021 को खारिज कर दिया गया।
इस बीच 26 मार्च 2021 को उपाध्याय की याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस भी जारी किया। उनकी याचिका को सुनवाई के लिए लिस्टेड नहीं किया गया था। इसलिए उपाध्याय ने गुरुवार को CJI के साथ उन घंटों का जिक्र किया, जब तत्काल सुनवाई की जरूरत वाले मामलों को CJI के ध्यान में लाया गया था।
तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए उन्होंने कहा, “पांच करोड़ अवैध अप्रवासी हमारे आजीविका के अधिकार को छीन रहे हैं।”
CJI ने तब उपाध्याय से कहा, “हर दिन मुझे आपके ही केस सुनने हैं। सभी समस्याएं, संसद सदस्यों के मुद्दे, नामांकन के मुद्दे, चुनाव सुधार आदि। ये सभी राजनीतिक मुद्दे सरकार से राहत मांगने के बजाय अदालत के सामने लाए जा रहे हैं।”
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