एटक की स्थापना 31 अक्तूबर, 1920 को मुंबई में हुई थी। यह वह समय था, जब देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो रहा था। जालियांवाला बाग कांड की स्मृति अभी ताजा थी। वह घटना जिस रॉलेट एक्ट के खिलाफ हुई थी, एटक के गठन से जुड़े तमाम श्रमिक संगठन भी उस एक्ट के खिलाफ लड़ रहे थे।
मुंबई के अधिवेशन में लाला लाजपत राय एटक अध्यक्ष चुने गए थे। वह रॉलेट ऐक्ट के खिलाफ थे और बाद में साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन करते शहीद हुए थे। उसका बदला लेने के लिए ही भगत सिंह एवं उनके साथियों ने सैंडर्स पर गोलियां चलाई थीं। मजदूर आंदोलन से भगत सिंह का रिश्ता इतना ही नहीं था, बल्कि जिन दो विधेयकों को केंद्रीय असेंबली में पेश किए जाने को रोकने के लए उन्होंने बटुकेश्वर दत्त के साथ असेंबली में बम फेंका था, उनमें एक ट्रेड सेफ्टी बिल भी था। भगत सिंह ने अपने लेखों में लगातार श्रमिक-किसान आंदोलन की अनिवार्यता के बारे में लिखा था।
19 वीं सदी के उत्तरार्ध में भारत में मजदूर आंदोलन पनपने लगा था। तब काम के घंटे आठ करने की मांग को लेकर दुनिया भर में जो आंदोलन चल रहा था, भारत उससे अछूता नहीं था। वर्ष 1862 में कोलकाता में पालकी उठाने वालों की एक महीने लंबी हड़ताल इतिहास में दर्ज है। उस वर्ष हावड़ा रेलवे के 1,200 मजदूर भी आठ घंटे ड्यूटी की मांग के साथ हड़ताल पर गए थे। उसी साल जून में ईस्टर्न इंडियन रेलवे के क्लर्कों ने हड़ताल की थी। वर्ष 1862 से 1873 के बीच कोलकाता के बैलगाड़ी वालों, घोड़ागाड़ी वालों, मुंबई के धोबियों, चेन्नई के दूध वालों और मुंबई के छापाखाना वालों ने अपनी मांग के लिए हड़ताल की थी।
वर्ष 1914 से मजदूर वर्ग संगठित होने लगा था और 1917 की रूसी क्रांति के बाद, जिसमें मजदूर वर्ग ने किसानों के साथ राजसत्ता हासिल की थी, भारत के मजदूर आंदोलन को जबर्दस्त ऊर्जा मिली। वर्ष 1917 में ही अहमदाबाद के बुनकरों ने यूनियन बनाई, 1918 में जहाज के मजदूरों ने यूनियन बनाई, और अप्रैल, 1918 में मास लेबर यूनियन का गठन हुआ।
वर्ष 1918 में मुंबई के कपड़ा मिलों में महंगाई भत्ते के लिए हड़ताल शुरू हुई, जो जनवरी 1919 तक दूसरे क्षेत्रों में भी फैल गई। उस हड़ताल में 1,25,000 मजदूर शामिल हुए।
ट्रेड यूनियनों को ध्वस्त करने के लिए 1913 में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) में संशोधन किया गया, पर मजदूर और अधिक जुझारू बन गए। इसी पृष्ठभूमि में 31 अक्तूबर, 1920 को मुंबई के एंपायर थियेटर में एटक की स्थापना हुई। देश भर के 64 यूनियनों के 1,40,854 सदस्यों के 101 प्रतिनिधियों ने उसमें हिस्सा लिया। मोतीलाल नेहरू, एनी
बेसेंट, जोसेफ बाप्तिस्ता, कर्नल जेसी वेजवुड (ब्रिटिश ट्रेड यूनियन काउंसिल के प्रतिनिधि) आदि सम्मेलन में शरीक हुए थे।
एटक ने देश के मजदूर आंदोलन के साथ स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन पर भी अमिट छाप छोड़ी। जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, देशबंधु चित्तरंजन दास, दीनबंधु एंर्ड्यूज, वीवी गिरी और श्रीपाद अमृत डांगे जैसे नेता एटक के अध्यक्ष बने। वर्ष 1927 में पहली बार एटक ने मई दिवस मनाने का आवाहन किया। आजाद भारत में मजदूरों के योगदान की पहचान करते हुए उनकी मांगों एवं प्रस्तावों को संविधान में सम्मिलित कर उन्हें पहचान दी गई। यूनियन एवं संगठन बनाने का लोकतांत्रिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन जीने योग्य मजदूरी, समानता का अधिकार, समान काम का समान वेतन, मातृत्व लाभ आदि अधिकार संविधान का हिस्सा बने। एटक के नेतृत्व में खासकर वामपंथी ट्रेड यूनियन ने मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र की बुनियाद रखने में बड़ी भूमिका निभाई।
इस सार्वजनिक क्षेत्र ने ही इस देश की संप्रभुता और अर्थव्यवस्था को बार-बार बचाया है। इसलिए आज अगर हमारे देश में लोकतंत्र, संप्रभुता और अर्थव्यवस्था खतरे में है, तो इसका एक बड़ा कारण एटक जैसे श्रमिक संगठन का कमजोर होना भी है। ऐसे में, देश को बचाने की कोशिश में हमारी चिंता एक मजबूत मजदूर आंदोलन को तैयार करने की भी होनी चाहिए।
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