कहावत है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। जी हां, मनुष्य को समय, काल और परिस्थिति सब सिखा देती है। आज के कालखंड की बात करें तो कोरोना महामारी ने लोगों को बिलकुल बदल कर रख दिया है। इस महामारी के समय में दुनिया की विभिन्न सरकारों, समूहों और समाज के प्रत्येक व्यक्ति ने बहुत कुछ सीखा है। खास बात यह है कि भारत इस क्रम अग्रणी भूमिका में रहा है। कोरोना कालखंड में भारत दुनिया के समक्ष नेतृत्वकारी भूमिका में रहा है।
भारत दुनिया के समक्ष नेतृत्वकारी भूमिका में
दरअसल, कोरोना महामारी से बचाव और उसके प्रसार की रोकथाम के लिए भारत में एक तरफ जहां कोविड टीकाकरण महाअभियान चलाया गया वहीं दूसरी ओर नए-नए तकनीकी इनोवेशन भी किए जाते रहे हैं। भारत ने एक प्रकार से दवा से लेकर मेडिकल इक्विपमेंट की झड़ी लगाकर रख दी। हालांकि अब कोरोना संक्रमण का ग्राफ भारत में लगातार गिर रहा है लेकिन इसे महामारी का अंत तो बिलकुल नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे पहले भी कोरोना महामारी की तीन लहरें देखी जा चुकी हैं।
टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर से वायरस पर लगेगी लगाम
इसलिए भारत अभी भी कोरोना से बचाव के अपने तमाम प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में एक नई तकनीक को इजाद किया गया है। यह एक प्रकार की अनोखी टच-लेस टच स्क्रीन प्रौद्योगिकी होगी जो संपर्क से फैलने वाले वायरस पर लगाम लगा सकती है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत में किया करिश्मा
भारतीय वैज्ञानिकों ने कम लागत वाला एक टच-कम-प्रॉक्सिमिटी सेंसर अर्थात स्पर्श-सह-सामीप्य संवेदक विकसित करने के लिए प्रिंटिंग तकनीक के जरिए एक किफायती समाधान प्रदान किया है जिसे टचलेस टच सेंसर कहा जाता है।
ATM और वेंडिंग मशीनों के लिए टच-लेस टच स्क्रीन बेहद आवश्यक
कोरोनावायरस महामारी ने हमारी जीवन शैली को महामारी परिदृश्यों के अनुकूल बनाने के प्रयासों को तेज कर दिया है। कामकाज स्वाभाविक रूप से वायरस फैलने के जोखिम को कम करने के लिए रणनीतियों से प्रेरित हो गया हैं, खासतौर से सार्वजनिक स्थलों पर जहां सेल्फ-सर्विस कियोस्क, एटीएम और वेंडिंग मशीनों पर टचस्क्रीन लगभग अपरिहार्य हो गए हैं।
भारत सरकार के DST विभाग के दो संस्थानों के प्रयासों से मिली सफलता
हाल ही में भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के स्वायत्त संस्थानों के नैनो और सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CENS) और जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस एंड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने प्रिंटिंग एडेड पैटर्न (लगभग 300 माइक्रोन का रिजॉल्यूशन) पारदर्शी इलेक्ट्रोड के उत्पादन के लिए एक अर्ध-स्वचालित उत्पादन संयंत्र स्थापित किया है जिसमें उन्नत टचलेस स्क्रीन प्रौद्योगिकियों में उपयोग किए जाने की क्षमता है।
टच सेंसर कैसे करेगा काम ?
प्रोफेसर जी. यू. कुलकर्णी और सहकर्मियों के नेतृत्व में और सीईएनएस में डीएसटी-नैनो मिशन द्वारा वित्त पोषित टीम द्वारा किया गया यह कार्य हाल ही में ”मैटेरियल्स लेटर्स” पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
9 सेमी की दूरी से भी डिवाइस स्पर्श को कर सकती है महसूस
इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे वैज्ञानिक डॉ. आशुतोष के. सिंह ने कहा, ”हमने एक टच सेंसर बनाया है जो डिवाइस से 9 सेमी की दूरी से भी नजदीकी या आसपास मंडराने वाली चीजों के स्पर्श को महसूस करता है।”
अन्य स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक एप्लीकेशन के लिए भी आ सकता है काम
फिलहाल इस तकनीक को अन्य स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक एप्लीकेशंस के लिए इस्तेमाल में लिए जाने को लेकर कार्य किया जा रहा है। इसमें स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक एप्लीकेशंस के लिए उनकी व्यावहारिकता साबित करने के लिए अपने पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड का उपयोग करके कुछ और प्रोटोटाइप बनाए जा रहे हैं। इन पैटर्न वाले इलेक्ट्रोड को सहयोगी परियोजनाओं का पता लगाने के लिए इच्छुक उद्योगों और आरएंडडी प्रयोगशालाओं को अनुरोध के आधार पर उपलब्ध कराया जा सकता है।
नए, कम लागत पैटर्न वाले पारदर्शी इलेक्ट्रोड में उन्नत स्मार्ट इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे टचलेस स्क्रीन तथा सेंसर में उपयोग किए जाने की काफी संभावना है। यह टचलेस टच सेंसर तकनीक संपर्क से फैलने वाले वायरस को फैलने से रोकने में मदद कर सकती है।
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