नई दिल्ली, 28 जुलाई। कोयला कामगारों के 10वें वेतन समझौते को खत्म हुए एक साल हो चुके हैं, लेकिन 11वें वेतन समझौते को लेकर जेबीसीसीआई में अभी तक ठोस चर्चा नहीं हो सकी है। अब मामला कोयला मंत्री के पास पहुंच गया है। 2 अगस्त को होने वाली कोयला मंत्री और यूनियन की भेंट- मुलाकात काफी हद तक वेतन समझौते के स्वरूप को तय करेगी।
यहां बताना होगा कि नेशनल कोल वेज एग्रीमेंट- XI के लिए यूनियन ने संयुक्त रूप से चार्टर ऑफ डिमांड में 50 फीसदी मिनिमम गारंटी बेनिफिट (MGB) की मांग रखी है। हैदराबाद में हुई ज्वाइंट बाइपराइट कमेटी ऑफ कोल इंडस्ट्रीज- XI (JBCCI) की 5वीं बैठक में यूनियन 47 फीसदी एमजीबी पर आया था, लेकिन सीआईएल प्रबंधन 3 प्रतिशत एमजीबी पर अड़ा हुआ था। लिहाजा यहां बात बिगड़ी और यूनियन ने कोयला मंत्री के शरण में जाने का फैसला लिया। कोयला मंत्री के साथ होने वाली बैठक में चर्चा का प्रमुख मुद्दा निश्चित तौर पर एमजीबी होगा। संभवतः इस बैठक में कोयला मंत्रालय और सीआईएल के आला अधिकारियों की भी उपस्थिति होगी।
अब सवाल उठता है बैठक में एमजीबी पर यदि चर्चा होती है तो ऐसे में कोयला मंत्री का क्या रूख होगा? क्या वे इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे? या फिर अफसरों को ताकीद करा उन पर ही पूरे मामले को छोड़ देंगे? या फिर 3 और 47 फीसदी एमजीबी के बीच के किसी आंकड़े पर कोई बात बनेगी? यूनियन पिछले वेतन समझौते के एमजीबी से कम किसी भी स्थिति में तैयार नहीं होगा। क्या ऐसे में 20 और 47 फीसदी एमजीबी के बीच के आंकडे पर ही बात बन सकती है? कोयला मंत्री के साथ होने वाली बैठक में एमजीबी के किसी आंकड़े पर कोई ठोस निर्णय हो, इसकी संभावना कम ही। वेतन समझौते के मामले में कोयला मंत्री का सीधा हस्तक्षेप होता है तो कोई रास्ता निकल सकता है। इसके बाद जेबीसीसीआई की होने वाली 6वीं बैठक काफी महत्वपूर्ण हो जाएगी।
CIL प्रबंधन के अड़ियल रवैये की वजह
बताया गया है सीआईएल के आला अफसर केन्द्र सरकार के दबाव में हैं। दरअसल केन्द्र सरकार की मंशा 10 साल के वेतन समझौते की थी, लेकिन जेबीसीसीआई की तीसरी बैठक में 10 साल के वेतन समझौते के ऑफर को ठुकरा दिया गया था। वेतन समझौता पांच वर्ष के लिए हो इस पर सहमति बनी।
पिछली दफा कोल सेक्टर में 20 प्रतिशत एमजीबी पर वेतन समझौता हुआ था। कोल सेक्टर के अलावा इस दौर में करीब 19 पब्लिक सेक्टर या इससे संबंधित औद्योगिक प्रतिष्ठानों में जो वेतन समझौते हुए हैं वहां एक कंपनी (17 %) को छोड़ किसी में भी 15 फीसदी से अधिक एमजीबी नहीं दिया गया है। 10 से 15 फीसदी के बीच ही वेतन समझौते किए गए हैं। 80 फीसदी संस्थानों में 10 साल के लिए वेतन समझौता हुआ।
इसलिए माना जा रहा है कि कोल सेक्टर में इसी औसत पर वेतन समझौता करने सरकार का सीआईएल पर दबाव है। सीआईएल प्रबंधन तीन फीसदी से आगे इसलिए नहीं बढ़ रहा ताकि वो मामले को लटका का रखे, इससे वेतन समझौते में हो रही देरी की वजह से यूनियन दबाव में आएगा। फिर प्रबंधन निगोशीएशन करेगा।
हालांकि कोयला उद्योग की अन्य सार्वजनिक कंपनियों के मुकाबले स्थिति कुछ अलग है। क्योंकि कोल सेक्टर में यूनियन कहीं अधिक मजबूत है। यहां हड़ताल होने से बिजली, स्टील सहित अन्य सेक्टर पर प्रभाव पड़ता है। अर्थव्यवस्था डगमगाने की स्थिति में आ जाती है। ऐसी स्थिति में सरकार पर एक दबाव भी रहेगा।
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