नई दिल्ली, 26 फरवरी। भारतीय मजदूर संघ (BMS) के कोल प्रभारी एवं जेबीसीसीआई सदस्य के. लक्ष्मा रेड्डी के नेतृत्व में कोयला मंत्री से की गई मुलाकात क्या टीआरपी (Target Rating Point) बढ़ाने के लिए थी। दरअसल कोयला कामगारों के बीच इस तरह की चर्चा चल रही है।
यहां बताना होगा कि 15 फरवरी को नई दिल्ली में बीएमएस के कोल प्रभारी, जेबीसीसीसीआई सदस्य श्री रेड्डी एवं अखिल भारतीय खदान मजदूर संघ (ABKMS) के महामंत्री व जेबीसीसीआई सदस्य सुधीर घुरडे ने नई दिल्ली में कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी से मुलाकात की थी।
बताया गया था कि दोनों श्रमिक नेताओं ने कोयला मंत्री के समक्ष एमजीबी के अलावा चार्टर ऑफ डिमांड में सम्मिलित अन्य बिंदुओं का समाधान करने तथा 11वें वेतन समझौते को शीघ्र ही अंतिम रूप देने की मांग रखी थी। इसको लेकर मंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा गया था, हालांकि ज्ञापन को मीडिया को जोरी नहीं किया था। मुलाकात करने वाले श्रमिक नेताओं के अनुसार कोयला मंत्री ने इस संदर्भ में कोल इंडिया प्रबंधन को उचित दिशा निर्देश जारी करने आश्वस्त किया था। सूत्रों ने बताया था कि केन्द्रीय कोयला मंत्री से की गई इस मुलाकात का अन्य मकसद भी था।
बीएमएस नेताओं की कोयला मंत्री से मुलाकात के 11 दिन गुजर जाने के बाद भी 11वें वेतन समझौते को अंतिम रूप देने को लेकर किसी प्रकार की कोई सुगबुगाहट नहीं है। 19 फीसदी एमजबी का मामला डीपीई में अटका हुआ है और अन्य मुद्दों के निराकरण व निर्णय के लिए जेबीसीसीआई की 9वीं बैठक का अता-पता नहीं है। ऐसे में कोयला कामगारों के बीच चर्चा हो रही है कि बीएमएस नेताओं की यह मुलाकात केवल टीआरपी बढ़ाने जैसी वाली है। इस दौरान बीएमएस ने दो दिन का सांकेतिक आंदोलन भी किया था।
इधर, लोक उद्यम विभाग (DPE) द्वारा कोयला कामगारों के लिए तय किए गए 19 फीसदी एमजीबी को लागू करने नियमों को शिथिल किया जाएगा या नहीं इसको संशय की स्थिति बनी हुई है। पूरा मामला डीपीई के कार्यालय ज्ञापन 24.11.2017 के निहित प्रावधानों के कारण लटक गया है।
3 जनवरी, 2023 को जेबीसीसीआई की 8वीं बैठक में 19 फीसदी न्यूनतम गारंटीड लाभ (MGB) देने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे। कोल इंडिया (CIL) प्रबंधन ने कोल मंत्रालय को इस हेतु सिफारिश भेजी। कोल मंत्रालय ने 10 जनवरी को 19 फीसदी एमजीबी पर स्वीकृति प्रदान करने डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक इंटरप्राइजेस (डीपीई) को प्रस्ताव प्रेषित किया। डीपीई की छूट के बगैर एमजीबी पर सहमति बना बनाई है और यही कारण है कि अब तक इसे लागू करने के लिए हरी झण्डी नहीं मिली है।
सूत्रों की मानें तो लोक उद्यम विभाग 19 फीसदी एमजीबी के लिए सहमत नहीं है। कहा जा रहा है कि डीपीई ने यदि इसके लिए सहमति दी तो दूसरे सार्वजनिक उपक्रमों से भी इसी तरह की आवाज उठेगी। दूसरा यह कि डीपीई सीधे वित्त मंत्रालय के अधीन है। ऐसे में कोयला मंत्रालय डीपीई को निर्देश नहीं दे सकता है। इसके पहले कई बार ऐसे उदाहरण सामने आ चुके हैं, जहां डीपीई ने कोल सेक्रेटरी रहे अनिल जैन जैसे लोगों की बात नहीं सुनी थी।
हालांकि कोयला मंत्रालय ने अपने संयुक्त सचिव भबानी प्रसाद पति को मामले को लेकर डीपीई के साथ लाइजिनिंग के लिए लगा रखा है, लेकिन अब कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। कहा जा रहा है प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बगैर डीपीई द्वारा 19 फीसदी एमजीबी को हरी झण्डी नहीं दी जाएगी।