उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव है। योगी आदित्यनाथ को यूपी के सीएम बने करीब 4 साल पूरे हो गए हैं। अब योगी सरकार में यूपी में कितना विकास हुआ, इस पर चर्चा होने लगी है। बीजेपी सरकार की नीतियों और कामकाज की चर्चा और समीक्षा भी हो रही है। जनसत्ता की खबर के मुताबिक 2017 में योगी आदित्यनाथ के यूपी के सीएम बनने के बाद एक तरफ राज्य की जीडीपी में गिरावट आई तो दूसरी तरफ शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में बेरोजगारी भी बढ़ी। उधर, सोशल सेक्टर के खर्च में भी कटौती हुई।
आरबीआई के आंकड़ों पर गौर करें तो, साल 2011 से 2017 के बीच उत्तर प्रदेश की जीडीपी 6.9% की दर से बढ़ रही थी। लेकिन बीजेपी के 2017 में सत्ता में आने के बाद से इसमें कमी आई है। 2017 से 2020 के बीच यह घटकर 5.6% की दर पर आ गई। इसी तरह उत्तर प्रदेश में साल 2011 से 2017 के बीच सोशल सेक्टर पर जितना खर्च किया जा रहा था, इसमें भी 2.6% की कटौती कर दी गई।
जीडीपी के साथ-साथ रोजगार के मोर्चे पर भी यूपी वालों को झटके लगे। साल 2011-12 में शहरी इलाकों में 1000 में से 41 लोग बेरोजगार थे। 2017-18 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 97 तक पहुंचा और 2018-19 के बीच 106 तक पहुंच गया। वहीं ग्रामीण इलाकों में भी इस दौरान बेरोजगारी बढ़ी। ग्रामीण इलाकों में 2011-12 के बीच प्रति 1000 में से 9 लोग बेरोजगार थे। 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 55 तक पहुंच गया। हालांकि 2018-19 में थोड़ा घटकर 43 तक आया।
गौरतलब है कि साल 2017 में बीजेपी की सरकार आने के बाद से यूपी में राजराज लाने के दावे किए गए। उत्तर प्रदेश में अपराध मुक्त बनाने और विकास की गंगा बहाने की भी बाते हुईं, लेकिन अब 4 साल के बाद आंकड़े सच्चाई इसके उलट कहानी कह रहे हैं। इतना ही नहीं ताबड़तोड़ एनकाउंटर के बाद भी अपराध में भी बढ़ोतरी हुई। योगी राज में खासकर दलितों के खिलाफ अपराध की घटनाए बढ़ी हैं। आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में जहां दलितों के खिलाफ होने वाली कुल आपराधिक घटनाएं 27.7% थीं। वहीं, 2019 में ये बढ़कर 28.6 प्रतिशत तक पहुंच गई।
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