महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में किसी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब नहीं कि यह आपको दूसरों के सांविधानिक अधिकार का उल्लंघन करने का लाइसेंस प्रदान करता है।
जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एमएस कार्निक की पीठ बृहस्पतिवार को समीत ठक्कर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सीएम उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ आपत्तिजनक ट्वीट करने के आरोप में ठक्कर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है।
इसे रद्द किए जाने की मांग को लेकर ठक्कर ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। ठक्कर के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने कोर्ट में अपनी दलील में कहा कि संविधान हर नागरिक को प्रधानमंत्री समेत दूसरे सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की आलोचना करने का अधिकार देता है। हालांकि, कोर्ट बचाव के वकील की दलील से सहमत नहीं हुआ।
अदालत ने कहा कि एक सार्वजनिक पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वस्थ आलोचना की जगह है, लेकिन किसी के खिलाफ अभद्र और अपमानजनक टिप्पणी उचित नहीं।
संविधान हमें बोलने और अपने विचार रखने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन यह दूसरों को मिले सांविधानिक अधिकार का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं देता। पीठ ने ठक्कर को 5 अक्तूबर को अगली सुनवाई पर हाजिर होने का निर्देश दिया है।