अयोध्या में नई मस्जिद बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाले ट्रस्ट के सदस्यों ने लॉकडाउन के दौरान वर्चुअल बैठकों में इस बात पर विचार-विमर्श किया कि कोविड महामारी की वजह से दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जोर दिए जाने जरूरत बनी रहेगी। उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा स्थापित ट्रस्ट इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सचिव अतहर हुसैन कहते हैं, ‘वैश्विक स्तर पर इलाज को लेकर बनी आपातकाल जैसी स्थिति और अस्पतालों में बेड की कमी से जुड़ी इतनी खबरें देखने को मिली हैं कि हम सबने महसूस किया कि मस्जिद परिसर में कम से कम एक चैरिटेबल अस्पताल जरूर होना चाहिए।’ पिछले हफ्ते ट्रस्ट ने नई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में वास्तुशास्त्र के प्रोफेसर एस एम अख्तर को इस मस्जिद का डिजाइन तैयार करने के लिए चुना जो पहले के बाबरी मस्जिद से 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में बनाया जाएगा।
पिछले नवंबर में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर अंतिम फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने किसी एक वैकल्पिक स्थल पर मस्जिद बनाने का आदेश दिया था जिसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच एकड़ जमीन की पेशकश की थी। मुस्लिम बहुल गांव धन्नीपुर और अयोध्या शहर में अल्पसंख्यक समुदाय और विशेषतौर पर युवा वर्ग लंबे समय से बाबरी मस्जिद से जुड़ी सांप्रदायिक राजनीति को खत्म होते देखना चाहते थे और वे अब आगे बढऩे की इच्छा जताते हैं। लखनऊ-गोरखपुर राजमार्ग से दूर धन्नीपुर में सरकार के स्वामित्व वाली प्रस्तावित जमीन पर मंदिर के अलावा अन्य सुविधाएं तैयार करने के लिए भी पर्याप्त जमीन होगी।
हुसैन का कहना है कि अयोध्या में मुसलमानों की ख्वाहिश है कि मस्जिद का परिसर भविष्य को प्रतिबिंबित करने वाला होना चाहिए। हालांकि अतीत पर नजर डाले बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है। वह कहते हैं, ‘अतीत पर नजर डालने का सबसे अच्छा तरीका भारतीय-इस्लामी संस्कृति की हमारी साझा विरासत को उजागर करना है।’ वह इस बात पर अपनी नाराजगी जताते हैं कि समन्वयात्मक इतिहास को एक तरफ कर दिया गया है।
ट्रस्ट ने एक भारतीय-इस्लामी सांस्कृतिक अनुसंधान केंद्र स्थापित करने की योजना बनाई है जो भारतीय समाज पर मुस्लिम प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए हजार वर्षों की साझा विरासत का उल्लेख करेगा। यह ट्रस्ट इस पहलू को सामने लाने के लिए सामग्री प्रकाशित करना चाहता है। ट्रस्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पुष्पेश पंत को एक प्रस्तावित संग्रहालय और पुस्तकालय का अध्यक्ष नियुक्त किया है। संग्रहालय और पुस्तकालय अनुसंधान केंद्र का हिस्सा होगा और यह अवध की विरासत पर केंद्रित होगा जो ऐतिहासिक क्षेत्र अब उत्तर-पूर्वी उत्तर प्रदेश का हिस्सा है। हुसैन कहते हैं, ‘अब लोग यह भूल गए हैं कि अंतिम मुगल बादशाह, बहादुर शाह जफर नाममात्र के मुखिया थे लेकिन उत्तर भारत के राजाओं और अमीर लोगों ने उन्हें राज्याधिकारी के रूप में चुना और 1857 में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ उनके अधीन ही लड़ाई लड़ी। इसी तरह 1857 के बाद लखनऊ और बरेली सहित अवध के प्रमुख मुस्लिम धार्मिक स्कूलों ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस का साथ दिया।’
बाबरी मस्जिद के लंबे समय तक खींचे इस विवाद में शामिल मुस्लिम पक्ष ने वैकल्पिक भूमि की मांग नहीं की थी। हालांकि समुदाय के ही कुछ लोगों ने उच्चतम न्यायालय द्वारा वहां राम मंदिर बनाए जाने के पक्ष में फैसला सुनाए जाने के बाद एक मस्जिद बनाए जाने की अनुमति पाने की इच्छा जताई थी जो विवादित स्थल से ज्यादा दूर न हो। इसका तर्क यह था कि मस्जिद एक विशेष क्षेत्र के लोगों के लिए होती है। नई मस्जिद के शहर से दूर होने की बात पर हुसैन का कहना है कि मुसलमानों में इसको लेकर असंतोष का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि वादी सहित सभी मुसलमानों ने पहले ही इस फैसले का पालन करने के लिए अपनी सहमति जताई थी।
मस्जिद के नामकरण में अमूमन इससे जुड़े लोकप्रिय स्थानों के आधार को ध्यान में रखा जाता है और धन्नीपुर के मस्जिद में भी यही बात लागू हो सकती है। हुसैन का साफतौर पर कहना है कि मस्जिद का बाबर या किसी अन्य बादशाह से कोई संबंध नहीं होगा। अख्तर इस बात पर जोर देते हैं कि इसे धर्मनिरपेक्ष क्षेत्र बनाए जाने का नजरिया है जो पूरी तरह से धार्मिक न हो। वह कहते हैं, ‘विचार यह है कि एक ऐसी जगह हो जहां लोग एक साथ आ सकें और अंतर को पाट सकें। यह भविष्य के लिए एक समकालीन डिजाइन होगा और इस पर अतीत की छाया नहीं होगी। मेरा मानना है कि वास्तुकला को दोहराया नहीं जा सकता। यह केवल बनाया जा सकता है।’ दिलचस्प बात यह है कि मस्जिद परिसर में एक सामुदायिक रसोईघर का भी प्रस्ताव दिया गया है।