भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एक महान लेखक भी थे। नेहरू की जीवनी ‘नेहरूः ए कन्टेमपररीज एस्टीमेट ’ लिखी थी जाने-माने लेखक और ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक सर वॉल्टर क्रॉकर ने। इस पुस्तक की प्रस्तावना महान इतिहासकार सर आर्नाल्ड टायनबी ने लिखी जिसमें उन्होंने कहा कि अगर नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के तौर पर नहीं जाने जाते तो वह अपनी आत्मकथा के लिए जाने जाते।
आत्मकथा से नेहरू की लेखकीय उत्कृष्टता का जरूर पता चलता है, लेकिन एक लेखक के रूप में उनमें इससे भी कहीं अधिक प्रतिभा थी। संभवतः विंस्टन चर्चिल के अलावा दुनिया में कोई ऐसा नेता नहीं, जिसने नेहरू जितनी समयातीत साहित्यिक कृतियों की रचना की हो। उनकी अन्य कृतियां ‘ग्लिम्पसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ और ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ हैं जो अपने आप में अद्भुत पुस्तकें हैं। इनके अलावा उनकी ‘लेटर्स फ्रॉम अ फादर टु हिज डॉटर’ भी बड़ी प्रसिद्ध हुई। नेहरू एक बेहतरीन पत्र-लेखक थे।
अंग्रेजी पर नेहरूजी की पकड़ लाजवाब थी। उनकी पुस्तकों के अनुच्छेद सर्वोत्कृष्ट लेखन शैली के उदाहरण के तौर पर उद्धृत किए जाते हैं। 1938 में भारत का दौरा करने वाले अमेरिकी पत्रकार जॉन गुंथर ने नेहरू की आत्मकथा की इसके “उत्कृष्ट गद्य” के लिए भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा था कि “दुनिया में नेहरू-जैसी अंग्रेजी लिखने वाले बामुश्किल एक दर्जन लोग होंगे।” अंग्रेजी गद्य में निपुणता के मामले में निश्चित ही नेहरू को बर्नार्ड शॉ, जॉर्ज ऑरवेल, बर्ट्रेंड रसेल और विंस्टन चर्चिल के समानांतर रखा जा सकता है। टाइम पत्रिका ने अपने सहस्राब्दी संस्करण के लिए नेहरू और बर्ट्रेंड रसेल को 20वीं शताब्दी के सबसे अच्छे दो लेखकों में रखा था।
नेहरू की पुस्तकें उन्हें विचारक, दार्शनिक और एक सुविज्ञ इतिहासकार के तौर पर स्थापित करती हैं। वह अपने, अपने देश और उसके लोगों के जीवन और इतिहास के बारे में लिखते हैं। हालांकि, इतिहास के बारे में उनका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी नहीं था। ‘ग्लिप्मसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में वह इतिहास को देखने के एक समग्र दृष्टिकोण की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि इतिहास को मानव सभ्यता की कहानी के रूप में पढ़ाया और समझा जाना चाहिए क्योंकि यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में विकसित हुआ है।
नेहरूजी की मेरी पसंदीदा पुस्तक है– ‘ऐन ऑटोबायोग्राफी’ जिसे ‘टॉवर्ड फ्रीडम’ के नाम से भी जाना जाता है और इसके शुरुआती तीन पन्ने पांचवीं कक्षा में हिंदी पुस्तक में ‘मेरी कहानी’ नाम के चैप्टर में मैंने पढ़ी। यह पुस्तक तब लिखी गई थी जब नेहरू जून, 1934 और फरवरी, 1935 के बीच जेल में थे। 1936 में इसका पहली बार प्रकाशन हुआ और तब से इसके एक दर्जन से ज्यादा संस्करण आ चुके हैं, तीस से ज्यादा भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह लेखक द्वारा अपनी पहचान को लेकर एक बेबाक आत्म-चिंतन है। नेहरू खुद को कोई छूट नहीं देते थे। वह लिखते हैं; “मैं पूर्व और पश्चिम का घालमेल बनकर रह गया हूं, कहीं के लिए भी उपयुक्त नहीं रहा, न घर, न बाहर।…पश्चिम में मैं एक अजनबी हूं। मैं उनकी तरह नहीं हो सकता। लेकिन अपने देश में भी, कभी-कभी मुझे बाहरी होने की अनुभूति होती है।”
‘ग्लिप्मसेज ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ का प्रकाशन 1934 में हुआ और यह 1930 से 1933 के बीच ब्रिटिश भारत में विभिन्न जेलों में रहने के दौरान इंदिरा गांधी को लिखे 196 पत्रों का संग्रह है जिसे नेहरू ने इसलिए लिखा कि इंदिरा को विश्व इतिहास का ज्ञान हो सके। इन पत्रों को बिना किसी संदर्भ ग्रंथ या पुस्तकालय की मदद के लिखा गया और उनके ये व्यक्तिगत नोट्स ईसा पूर्व 6000 से लेकर पुस्तक लिखे जाने तक के मानव इतिहास का एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इस पुस्तक की प्रस्तावना में नेहरू स्वीकार करते हैं कि उनकी कृति पर एच.जी. वेल्स की पुस्तक ‘दि आउटलाइन ऑफ हिस्ट्री’ का अच्छा-खासा प्रभाव है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पुस्तक के बारे में लिखा, “यह अब तक लिखी गई सर्वोत्कृष्ट पुस्तकों में से एक है… नेहरू ने तो जैसे एच. जी. वेल्स को भी पीछे छोड़ दिया… संस्कृति के बारे में नेहरू का विस्तार आश्चर्यजनक है”।
‘अ बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स’ के रूप में प्रकाशित दूसरा सेट 368 पत्रों का संकलन है जिसमें नेहरू के महात्मा गांधी, सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस समेत कांग्रेस पार्टी के अपने सहयोगियों के साथ हुए पत्राचार को शामिल किया गया है। इस पुस्तक के वर्ष 2005 के संस्करण की प्रस्तावना में सुनील खिलनानी लिखते हैं कि यह दिलचस्प बात है कि नेहरू ने इस संकलन के लिए उन पत्रों का भी चयन किया जिनमें उनके खिलाफ तीखी टिप्पणी की गई थी और कई बार तो व्यक्तिगत तौर पर भी उन पर प्रहार किए गए थे। इसके साथ ही इस पुस्तक के लिए उन्होंने अपने लिखे केवल 38 पत्रों को शामिल किया।
खिलनानी इस बात का भी उल्लेख करते हैं कि कैसे ये पत्र इस बात के गवाह हैं कि तमाम मतभिन्नताओं और कभी-कभी आवेशित संवादों के बाद भी राष्ट्रीय आंदोलन निरंतरता के साथ चलता रहा। खिलनानी यह भी कहते हैं कि नाजी और फासीवादी सरकारों के प्रति सुभाषचंद्र बोस के विचारों से वह असहमत थे और उन्होंने बोस को आगाह किया था कि वह गलत वामपंथी नारे फासीवादी अवधारणा की ओर जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त नेहरू ने सरदार पटेल को भी उग्र दक्षिणपंथी विचारधारा और सांप्रदायिक ताकतों के उभरने के प्रति आगाह किया था।