रेलवे, ऑर्डिनेंस, विद्युत, शिक्षा, एनटीपीसी, एलआईसी, जल निगम, स्वास्थ्य विभाग, परिवहन, संचार (बीएसएनएल), कोल इंडिया और न जाने कितने ही विभागों को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी थी।
एक रोज एक हैवान आया …. हां सही पहचाना : कोरोना ….
तब संपूर्ण भारतीय सरकार सहित जनता को भी याद आए सरकारी कर्मचारी।

वही कर्मचारी जो अब तक निठल्ले कहे जाते थे। वही कर्मचारी जो कामचोर कहे जाते थे। वही कर्मचारी जिन्हें भ्रष्टाचारी बताते हुए निजीकरण का गुणगान किया जाता था। वही कर्मचारी जिनसे देश की अर्थव्यवस्था खतरे में जा रही थी। वह कर्मचारी जब उसको परितोष ( सैलरी ) मिलती थी तो लोगों के पेट में दर्द होता था कि यह तो व्यर्थ खर्च किया जा रहा है। सरकार प्रत्येक मौके पर खर्च हो रहे मोटे बजट का हवाला देते हुए इसी सरकारी कर्मचारी की सुविधाओं में कटौती करती रहती थी।

आज वह सब कहां है ….. आज वह न्यूज चैनल कहां है जो इन्हीं सरकारी विभागों को बेचने की तैयारी में इन्हें बेचने के लाभ गिना रहे थे? वह न्यूज चैनल्स के एंकर कहां हैं जो इन विभागों को बचाने के आंदोलन को दिखाने में परहेज कर रहे थे। आज वह मीडिया हाउस कहां है जो इन आंदोलनों को महज कुछ सिरफिरे आंदोलनकारियों की जिद कहा करते थे?

“सवाल तो उठेंगे……..और यह सवाल सभी सरकारी कर्मचारियों के हैं”

इस मुश्किल वक्त में अपने परिवार को छोड़कर दिन-रात देश की सेवा में समर्पित इन सभी सरकारी कर्मचारियों को हम दक्षिणा स्वरूप क्या देंगे? जब हालात बेहतर होंगे क्या फिर वही निजीकरण का तोहफा। मुझे उम्मीद है सरकार और जनता का नजरिया बदलेगा जरूर।

आप सोच रहे होंगे आज अचानक यह सरकारी विभागों के निजीकरण का जिक्र क्यों? तो आइए आपको यह भी बता देते हैं कि पूरे देश में सभी सरकारी डॉक्टर, नर्स एवं स्वास्थ्य कर्मी, दूरसंचार कर्मी (बीएसएनएल) है जो आपकी सेवा में दिन-रात अपना जीवन दाव पर लगाकर कर्तव्य पूर्ण करने में लगे हैं।

यह वही स्वास्थ्य विभाग की टीम है जिनकी कर्तव्यनिष्ठा पर देश और देश के लोग प्रश्नचिन्ह लगाते रहे हैं। यह वही सरकारी पुलिस है जो अपना सर्वत्र आपकी सुरक्षा में लगाए हैं उनके लिए दिन है और ना ही रात। यह वही सरकारी सफाई कर्मी है जिनके कार्य में आप प्रतिदिन कमियां इंगित करते रहे हैं। यह वही सरकारी विद्युत विभाग, दूरसंचार विभाग है जिसकी बुराई का गुणगान करने का कोई अवसर आप नहीं चूकते थे आज वही आपके सुकून एवं सुविधा हेतु इस इस विषम परिस्थिति में देश की लाइफ लाइन (विद्युत) को अपनी शरीर की धमनियों में दौड़ रहे रक्त के निरंतर प्रवाह के समान निर्बाध रूप से व्यवस्थित कर रहा है, जिससे कि किसी भी आकस्मिक सेवा में व्यवधान न हो।

यह वही रेलवे है जिसकी सेवाएं सुविधा का मूल्यांकन एक तुलनात्मक विवरण आप प्रतिदिन अपने व्याख्यान में करते रहे हैं। उसी रेलवे के कुछ डिब्बे में अस्थाई अस्पताल, रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पीपीई ड्रेसेस का निर्माण, सस्ते वेंटिलेटर का निर्माण आदि हो रहा है। जिन सरकारी शिक्षकों की काबिलियत पर आप हमेशा प्रश्न चिन्ह आप प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं आज वही शिक्षक अपने उसी समाज की रक्षा के लिए देश के बड़े वॉलिंटियर बनकर अपने प्राणों का दांव लगाए हुए हैं। और भी अनेकों ऐसे सरकारी कर्मचारी (युद्धवीर) हैं जो बिना किसी तरह की परवाह करें सदैव की तरह अपने दायित्व व कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा पूर्वक निर्वहन कर रहे हैं।

“सरकार की हर विपदा में यही सरकारी कर्मचारी अपनी उसी वेतन धनराशि से सर्वप्रथम देश हित एवं अपने समाज के प्रति दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने और अपने परिवार का 1 दिन का सर्वत्र दान करता रहा है। यह भी एक तरह से युद्ध ही है जिसमें यह पता नहीं कि कोरोना रूपी दुश्मन किस ओर से प्रहार कर देगा।”

सरकार से यह अनुरोध है कि कर्मचारियों के देश एवं समाज के प्रति त्याग, बलिदान एवं सर्वथ समर्पण को ध्यान में रखते हुए अपने आगामी निर्णयों के समय यह न भूलें की विपदा के समय सबसे पहले व्यक्तिगत, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सरकारी कर्मचारी ही हर लड़ाई की शुरुआत करता है एवं अंत तक अगर कोई उस लड़ाई को लड़ता है तो सरकारी कर्मचारी ही होता है ।

“सुन इस धरा के लिए मैं
बता और क्या क्या करूं मैं
बस यही आरजू शेष है मुझमे
कि सौ सौ बार मरूं मैं
सौ सौ बार जियूं में”

(एनसीएल बीना प्रोजेक्ट में कार्यरत प्रकाश पटेल की वाॅल से)

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