सरकार ने कर्ज के बोझ से दबी विमानन कंपनी एयर इंडिया के निजीकरण की राह आसान करने के लिए इसकी शर्तों में ढील देने का निर्णय किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि निजीकरण टलने से अगले दो साल में सरकारी खजाने पर करीब 12,000 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा।
संभावित बोलीदाताओं की सुविधा के लिए नियमों में बदलाव किया गया है। इसे तहत बोलीदाता एंटरप्राइज वैल्यू पर बोली लगा सकते हैं जो कर्ज एवं इक्विटी के एकीकृत मूल्य के बराबर होगा। यह किसी कंपनी के संभावित अधिग्रहण का लोकप्रिय तरीका है। इसके जरिये सरकार बोलीदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रही है।
विस्तारा और एयर एशिया इंडिया का परिचालन करने वाला टाटा समूह एयर इंडिया के पसंदीदा खरीदारों में से एक हो सकता है। मौजूदा बिक्री नियमों के अनुसार खरीदार को कंपनी का करीब 23,286 करोड़ रुपये का कर्ज लेना होगा। यह कर्ज मुख्य रूप से विमानों की खरीद से जुड़ा है, जिस पर सॉवरिन गारंटी दी गई है लेकिन निजी स्वामित्व में विमानन कंपनी के जाने पर यह गारंटी वापस ले ली जाएगी।
इस बीच सरकार एयर इंडिया का परिचालन जारी रखने के लिए 1,000 करोड़ रुपये और निवेश करेगी। हालांकि पूंजी निवेश किस तरह से किया जाएगा, यह अभी तय नहीं है। यह रकम सीधे इक्विटी निवेश या फिर ऋण के रूप में दी जा सकती है।
इस बारे में बुधवार को सचिवों की समिति की बैठक में निर्णय लिया गया और जल्द ही इसे मंत्रिसमूह की मंजूरी मिल सकती है। एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की समयसीमा 30 अक्टूबर को खत्म हो रही है, जिसे दो महीने के लिए और बढ़ाया जा सकता है। मामले के जानकार एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एयर इंडिया की इक्विटी वैल्यू ऋणात्मक है।
शायद ही कोई खरीदार इक्विटी के लिए पैसे लगाना चाहेगा। लेकिन मौजूदा विनिवेश नियमों के अनुसार ऋणात्मक बोली की अनुमति नहीं है। ऐसे में संभावित बोलीदाता कर्ज की राशि के आधार पर बोली लगा सकते हैं। बदले नियम के तहत बोलीदाता इक्विटी वैल्यू और कर्ज को मिलाकर बोली लगा सकते हैं। सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को एयर इंडिया का स्वामित्व मिलेेगा।’
कंपनी पर 29,464 करोड़ रुपये कर्ज पहले ही विशेष कंपनी (एसपीवी) को स्थानांतरित किया जा चुके हैं। अब इस अहम बदलाव के साथ बोलीदाताओं को बोली के बादेके चरण में मानव संसाधनों और परिसंपत्तियों से निपटने की भी अधिक स्वतंत्रता दी जाएगी। हालांकि ऐसा तब होगा जब महामारी से बोलीदाताओं की हालत और बिगड़ जाएगी।
इस बारे में एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘अभिरुचि पत्र सौंपना बोली प्रक्रिया का पहला चरण है। जब तक कोई वित्तीय इकाई वित्तीय बोली सौंपेगी तब तक यह स्पष्ट हो जाएगा कि मौजूदा महामारी एक बार फिर सिर उठाएगी या टीके की खोज जल्द हो जाएगी। टीके की खोज जल्द हो गई तो विमानन उद्योग में भी तेजी से सुधार आना शुरू हो जाएगा। चूंकि, अभी यह स्पष्ट नहीं है कि हालात कैसे रहेंगे इसलिए मानव संसाधान और परिसंपत्तियों के मामले में हमने अधिक स्वतंत्रता फिलहाल नहीं देने का निर्णय लिया है।’
मौजूदा नियमों के अनुसार नए मालिक को एयर इंडिया के 11,000 कर्मचारियों को एक साल साल तक नौकरी संबंधी सुरक्षा देनी होगी। अधिकारी ने कहा, ‘अगर महामारी की आंच एक बार फिर तेज हुई और लॉकडाउन लगने से विमानों की उड़ान पर असर पड़ा तो उस स्थिति में नए मालिक को और अधिक स्वतंत्रता दी जाएगी।’